भौतिकता बाद ने अपनी भोगवादी पद्धति में ईश्वर को बाधा समझकर उसे सर्वथा अस्वीकार करने का हठ सा बना लिया। अपने पक्ष में तर्क व प्रमाण जुटाने के लिए विज्ञान की बैसाखी का सहारा लिया। यह सहारा तभी तक रहा जब तक वैज्ञानिकों का मस्तिष्क अपरिपक्व रहा। इस अपरिपक्वता के कारण ही यह भाव उपजा कि प्रकृति स्वसंचालित है न कोई उसका सृजेता है न ही संचालक। इसमें कर्ता के रूप में ईश्वर एक आरोपित नाम है जिसका कहीं न तो कोई अस्तित्व है न विश्व ब्रह्मांड से इसकी गतिविधि का कोई संबंध।
पिछले दिनों विज्ञान के क्षेत्र में हुई शोधों ने इस संबंध में एक नवीन दृष्टि प्रदान की है। इस संदर्भ में पार्टिकल फिजिक्स में हाइजन वर्ग का “ अनिश्चितता का सिद्धान्त बहुचर्चित रहा है। इसके अनुसार एक ही समय में एक ही तरह के कण किस तरह का व्यवहार करेंगे, यह नहीं जाना जा सकता। कण विशेष की गति एवं परिस्थिति के संबंध में कुछ भी कह पाना संभव नहीं। मात्र अनुमान भर लगाया जा सकता है और कोई अनुमान सही निकाले यह आवश्यक भी नहीं। इस संबंध में अनेक प्रयोग किये गये कि किन परिस्थितियों में कौन से कण किस तरह व्यवहार करते हैं ? एक ही परिस्थिति में एक प्रक्रिया से एक ही तरह के कणों का हजारों बार अध्ययन किया गया । किन्तु यह जानकर हैरानी हुई कि प्रत्येक बार हर कण का व्यवहार अनुमान से भिन्न था। इस आधार पर यह घोषणा करनी पड़ी कि पदार्थ की जैसी परिभाषा की जाती रही है वैसा कोई पदार्थ इस जगत में है ही नहीं। दूसरे शब्दों में यह घोषणा की गई कि पदार्थ मर गया। पहले कभी नास्तिक वादियों में अग्रणी फ्रेड्रिक नीत्शे ने घोषणा की थी कि ‘ईश्वर मर गया, पर अब विज्ञान को यह घोषणा करनी पड़ रही है कि ‘पदार्थ मर गया’ विज्ञान विदों को यह स्वीकार करना पड़ रहा है कि पदार्थ विज्ञान से बाहर भी एक विशाल दुरूह एवं अज्ञान क्षेत्र रह जाता है जिसके अन्वेषण के लिए अभी तक कोई उपाय नहीं खोजा जा सका। पर यही क्षेत्र विज्ञान की सभी ज्ञात धाराओं का मूल स्त्रोत एवं नियंत्रण कर्ता है।
विज्ञानवेत्ता मैक ब्राइट का कथन है कि विश्व में परोक्ष में किसी ऐसी चेतन सत्ता के होने की पूरी और निश्चित संभावना है जो ज्ञान युक्त और इच्छा युक्त हो। उसी के कारण विश्व की गति विधियाँ संचालित हो रही हैं। डॉ0 मोर्डेल का मत है कि अणु और पदार्थ के सूक्ष्मतम कणों के इस विचित्र व्यवहार से यही सिद्ध होता है कि कोई चेतन शक्ति है अवश्य जिसके प्रभाव से ही अणु अथवा कणों का स्वभाव पकड़ में नहीं आता।
विज्ञान विदों के लिए अविज्ञेय सत्ता ही ऋषि के द्वारा परमात्म चेतना के रूप में जानी गई हैं । यह विश्व उसी चेतना से उत्पन्न हुआ है। उसी की सत्ता में स्थित है, उसी में मिलता घुलता जा रहा हैं जड़ चेतन की संपूर्ण सक्रियता का आधार वह परम प्रभू है, जो सृष्टि के प्रत्येक कला कृति में ओत-प्रोत है। न तो कुछ परमात्मा से भिन्न है और न परमात्मा की किसी से पृथक् है।
पवन, अग्नि, जल, मृतिका चार व्यक्त एवं आकाश रूप एक अव्यय इन पाँच महाभूतों से विश्व विनिर्मित हुआ है यह सभी पदार्थ अपने में जड़ और निर्जीव है। किन्तु उनमें एक जीवन, एक सक्रियता, सजीवता दृश्यमान होती है, उससे ही ईश्वरीय चेतना शक्ति की उपस्थिति का अनुमान सहज की लगाया जा सकता है। हवा की गतिशीलता अग्नि की तेजस्विता, जल की तरलता, मिट्टी की उर्वरता का गुण उस सर्वशक्तिमान परमात्मा से ही संभव है। अन्यथा किसी जड़ अथवा निर्जीव पदार्थ में सक्रियता की संभावना कहाँ ? अणु अथवा चेतनशील प्राण के रूप में विद्यमान परमात्मा ही शक्ति का जब इन पदार्थों से तिरोधान हो जाता है तो ऐसी स्थिति में कोई भी पदार्थ सक्रियता का प्रमाण नहीं दे पाता।
सृष्टि के किसी भी पदार्थ में अपनी कोई क्षमता अथवा अपना कोई गुण नहीं है। यह सब केवल उस चेतन स्वरूप परमात्मा का ही चमत्कार है जो प्रत्येक अणु के गुण एवं सक्रियता के रूप में दृष्टिगोचर होता है। ऐसे सर्वव्यापक, सर्वसमर्थ चेतन शक्ति के अस्तित्व से इनकार करना अपनी अज्ञानता का परिचय देना है।