देव दुर्लभ देह में जिसने स्वयं ढाला हमें (Kavita)

July 1994

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हम न भूलेंगे कभी माता-पिता के प्यार को। स्नेह से भीगे सहज शीतल विमल व्यवहार को॥

माँ, कि जिसने गर्भ में नौ माह तक पाला हमें, देव दुर्लभ देह में जिसने स्वयं ढाला हमें,

वह पिता, संतान हित जो पूर्ण न्यौछावर हुआ, जिस पुजारी के लिये परिवार ही मंदिर हुआ,

हम न भूलेंगे पिता-माँ के उसी उपकार को। स्नेह से भीगे सहज शीतल विमल व्यवहार को॥

मुस्कुराती माँ, कि जो एकाँत में रोयी स्वयं, दे हमें आराम, कष्टों में सदा सोयी स्वयं,

जिस पिता के त्याग से परिवार उपवन बन गया, आत्मसंयम और सेवा से तपोवन बन गया।

हम कभी भी भूल पाएँगे न उस परिवार को। स्नेह से भीगे सहज शीतल विमल व्यवहार को॥

धन्य वे माता-पिता जिनसे हमें यह तन मिला, पर हमें गुरुदेव से अध्यात्म का जीवन मिला,

पा गये पग एक से, तो दूसरे से प्रेरणा, एक ने दी देह, दूजे ने अलौकिक चेतन,

हम न छोड़ेंगे कमी ऐसी सबल पतवार को । स्नेह से भीगे सहज शीतल विमल व्यवहार को॥

वंदनीया माँ, स्वयं जो शक्ति हैं गुरुदेव की, जो स्वयं आकार सेवा-शक्ति हैं गुरुदेव की,

हम उन्हीं माता-पिता के अंश है, संतान हैं, पा गये उनसे अजर अध्यात्म का जलयान है,

पाल कर लेंगे इसी से हर भयंकर धार को । स्नेह से भीगे सहज शीतल विमल व्यवहार को॥

- शचीन्द्र भटनागर


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