अंधड़ आया और पीटर की नाव निर्जन द्वीप के समीप जाकर डूब गई। पीटर तैर कर किनारे जाने लगा। नाव उथले पानी में आकर डूबी थी। अतः आधा हिस्सा अभी भी दिखाई देता था। पीटर ने सोचा कि यदि शरीर सामान बच गया हो तो निकाल लेना चाहिए। निर्जन प्रदेश है। कुछ काम आयेगा। नाव के पास गया। कुछ खाने पीने की सामग्री और वस्त्रादि हाथ लगे और वह पेटी भी हाथ लग गई जिसमें स्वर्ण मुद्राएँ थी। मन प्रसन्नता से भर गया। किंतु दूसरे ही क्षण उदासी छा गई। क्योंकि निर्जन प्रदेश में वे स्वर्ण मुद्राएँ किस काम की । न वहाँ बाजार न कोई जीवन न जीवन उपयोगी सामग्री। वहाँ तो नीरवता व नीरसता का साम्राज्य था।
समुद्र के किनारे बैठा वह सोचने लगा कि सागर के दूसरे छोर पर इसी धन के लिए मारकाट मची हुई है किंतु इसमें इतनी शक्ति भी नहीं जो निर्जन द्वीप में उसकी सहायता कर सके। ऐसी धन-दौलत किस काम की।