भविष्य को जानने की सामर्थ्य मनुष्य में विद्यमान है। यदि अचेतन से उठती स्फुरणाओं को गंभीरतापूर्वक जाना समझा जा सके तो न केवल यह ज्ञात हो सकता है कि भविष्य की हाँड़ी में क्या पक रहा है वरन् उसके अशुभ पक्ष से भी बचा और सुखद संभावनाओं से लाभान्वित हुआ जा सकता है।
मार्गन रावर्टसन उनमें से एक हैं, जिन्होंने सन् 1898 में “ रेक आँफ द टाइटन और फ्यूटीलिटी” नामक एक उपन्यास लिखा था। इसमें अटलाँटिक महासागर की यात्रा कर रहे ‘टाइटन’ नामक एक विशाल जलयान के समुद्र में डूब जाने और सैकड़ों लोगों के जल समाधि लेने का वर्णन था। 14 वर्ष बाद 16 अप्रैल 1912 को मार्गन का काल्पनिक उपन्यास जीवंत हो उठा जब सचमुच टाइटैनिक नामक जहाज एक हिमखण्ड से टकराकर ध्वस्त हो गया। इसमें सवार चौदह सौ से भी अधिक लोग जलमग्न हो गये। 1898 में लिखित उपन्यास के सर्जन में और उस दुर्घटना ग्रस्त जलयान के दृश्य में इतना अधिक साम्य था कि न केवल उसका नाम और उसमें सवार यात्रियों की संख्या, लाइफ बोटों की संख्या वही थी वरन् यान का वजन, उसकी लम्बाई, गति और डूबने के समय में भी अद्भुत समानता थी। मार्टिन ऐबन के अनुसार लगता था राबर्टसन ने 14 वर्ष पूर्व ही भविष्य का सारा चित्र खींचकर रख दिया था।
अमेरिका के एक वरिष्ठ पत्रकार यूजीन पी0 लाइल जूनियर ने द्वितीय विश्व युद्ध का सारा खाका सन् 1918 में ही खींचकर रख दिया था। “ एवरीबडीज मैगज़ीन” नामक पत्रिका के सितम्बर 1918 के अंक में “ द वार ऑफ 1938” शीर्षक से उसे प्रकाशित भी कराया था। उसमें कहा गया था कि यदि जर्मनी को पूरी तरह नष्ट न किया गया तो वह पुनः उठ खड़ा होगा जिसका संचालन एक तानाशाह करेगा और देखते ही देखते सारे विश्व को महामारी की तरह अपनी लपेट में ले लेगा। लेख पढ़ने वालों में से विश्वास किसी को भी नहीं हुआ क्यों की उस समय जर्मनी बुरी तरह परास्त हो चुका था और शाँति समझौते की शर्तों पर हस्ताक्षर कर चुका था।
परन्तु बीस वर्ष बाद उसमें वर्णित सभी घटनाक्रम ज्यों के त्यों घटित होते चले गये। सन् 1920 के बाद से ही जर्मनी ने अपनी सैन्य शक्ति बढ़ानी आरंभ कर दी थी। हिटलर को पचास हजार से अधिक नाजी सेना सुसज्जित तैयार थी। सन् 1939 के पश्चात जो घटित हुआ वह युजीनलाइल की भविष्य वाणी में वर्णित था। विद्वानों का कहना है कि उनके इस भविष्य कथा पर यदि ध्यान दिया और उसे गंभीरता से लिया गया होता तो संभवतः द्वितीय विश्व युद्ध न होता तथा आज विश्व युद्ध न होता तथा आज विश्व का स्वरूप भी कुछ और ही होता।
इस संदर्भ में कैम्ब्रिज विश्वविद्यालय के मूर्धन्य भौतिकीविद् एड्रियन डाब्स का कहना है कि भविष्य मनुष्य के वर्तमान में एक प्रकार की सूक्ष्म तरंगें उत्पन्न करती हैं जिन्हें “ साइट्रोनिक वेव फ्रण्ट” कहा जा सकता है। मानवी मस्तिष्क प्रायः स्वप्न अवस्था या ध्यान की ‘अल्फा स्टेट’ में इन स्फुरणाओं या तरंगों को पकड़ लेता है। अतः मनःमस्तिष्क को सचेतन बनाये रखकर संभावित घटनाओं की जानकारी प्राप्तकर सकना हर किसी के लिए संभव है। सुप्रसिद्ध मनीषी विल्हेम वान लिबनीज इस संदर्भ में अंतः प्रज्ञा के जागरण पर बल देते हैं और कहते हैं कि प्राचीन काल के ऋषि मनीषी इसी क्षमता की जाग्रत कर भविष्य की झाँकी कर लेते थे और उसी आधार पर वर्तमान ढाँचे को बदलते, परिष्कृत परिमार्जित करने का उपाय सुझाते थे।
“सुपर नेचर“ नामक अपनी कृति में ख्यातिलब्ध विद्वान लायल वाटसन ने कहा है कि कितने ही व्यक्तियों को भविष्य में घटित होने वाली घटनाओं का पूर्वाभास अंतः स्फुरणा के आधार पर चेतन या अचेतन अवस्था या स्वप्नावस्था में हो जाता है। इसे ही विज्ञान की भाषा में ‘ प्रीकागनीशन ‘ अर्थात् पूर्वानुमान कहते हैं, जिसका अर्थ है जो कुछ घटित होने वाला है उसकी पहले से जानकारी हो जाना। यह वह ज्ञान है जो मनुष्य को भविष्य की विवेक सम्मत तैयारी करने और अशुभ पक्ष से बचने की दिशा देती है। वस्तुतः यह क्षमता स्त्रष्टा ने हर किसी को प्रदान की है कि वह अपनी अंतःप्रज्ञा को जाग्रत कर दिक्−काल की सीमा को लाँघकर भूतकाल, वर्तमान और भविष्य के गर्भ में झाँक सके और उसकी परिणति को जानकर उसमें वाँछित परिवर्तन के लिए कटिबद्ध हो सके। कुछ व्यक्ति ऐसे होते हैं जो शत्-प्रतिशत भविष्य कथन की क्षमता बिना किसी साधना पुरुषार्थ के भी रखते हैं। वह या तो दैवी अंतः स्फुरणा के आधार पर, स्वप्नों के माध्यम से अथवा व्यष्टि चेतना के समष्टि चेतना के सीधे संपर्क में होने के आधार पर अर्जित संपदा के रूप में भी प्रस्फुटित हो जाती है, पर यह एक सुनिश्चित तथ्य है कि अभ्यास करने पर हर कोई इस क्षमता को जाग्रत और विकसित कर सकता है और एक अच्छा भविष्यवक्ता बन सकता है।
स्वामी विवेकानन्द का कहना है कि समष्टिगत विश्व-ब्रह्मांड जिसे ‘ मैक्रोकास्म’ भी कहते हैं, अपने गर्भ में अगणित व्यष्टि घटकों- ‘माइक्रोकास्म’ को समाहित किये हुए है। इसमें चेतन-अचेतन से संबंधित सभी घटनाक्रम विद्यमान है। जीव-जंतुओं से लेकर वृक्ष-वनस्पतियों तथा जड़ कही जाने वाली वस्तुएँ इसी विराट की घटक है। इनसे संबंध स्थापित करने , तादात्म्य बिठाने की अद्भुत क्षमता मानव मस्तिष्क में विद्यमान है भविष्य विज्ञान का यही आधार है।