किसी से दो टूक शत्रुता मत करो। शत्रु से भी इतना संबंध तो बनाए रखो कि साथ-साथ बैठ सको और घुल-घुलकर बातें कर सको। मित्र से मित्रता छोड़नी है तो उससे झगड़ों मत वरन् धीरे-धीरे प्रेम कम कर दो।
किसी से दो टूक शत्रुता मत करो। शत्रु से भी इतना संबंध तो बनाए रखो कि साथ-साथ बैठ सको और घुल-घुलकर बातें कर सको। मित्र से मित्रता छोड़नी है तो उससे झगड़ों मत वरन् धीरे-धीरे प्रेम कम कर दो।
केवल योग्यता से ही काम नहीं चलता। उसके साथ चातुर्य भी होना चाहिए। उसके साथ चातुर्य भी होना चाहिए। जो अपनी योग्यता प्रकट कर सकता है, यह योग्य है और यह “प्रकट कर सकना” चतुरता पर निर्भर है।
पत्थर से सिर मत मारो। जो तुम्हारी शक्ति के बाहर की बात है, उसे करना अपनी शक्ति का अपव्यय करना है। पत्थर तोड़ने वाले उसके मुकाबिले का शत्रु ढूँढ लाते हैं। बारूद की सुरंगों से ही बड़ी-बड़ी चट्टानें उड़ाई जाती हैं।