आकाँक्षा छोड़ी तो सर्वस्व मिला (Kahani)

July 1994

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फकीर होने से पूर्व यह दमिश्क का बहुत बड़ा धनपति था दमिश्क में जगत प्रसिद्ध मस्जिद है। मन में विरक्ति भाव आया तो अपना वैभव त्याग कर मस्जिद में जाकर सुबह से शाम तक पूजा पाठ करता। बहुत दिन व्यतीत हो गये तो उसने सोचा कि वह अकेला ही सुबह से शाम तक पूजा पाठ करता है। अतः हो सकता है नगर के लोग कभी उसका त्याग, लयलीनता देखकर शायद मस्जिद का व्यवस्थापक बना दें। एक बरस बीत गया किंतु किसी ने एक दिन भी उसके पास आकर कभी नहीं कहा कि आप अव्वल नंबर के नमाजी है। उसने मनमें सोचा इस नगर के लोग भी अजीब हैं एक बार भी आकर कुछ नहीं पूछा उसने सोचा फिजूल ही वह सोचना रहा कि शायद कोई आकर उसकी झूठ-मूठ को तारीफ करेगा और पूछेगा आप ही मस्जिद की व्यवस्था सम्हाल लें।

रात को जब बिस्तर पर जाने लगा तो उसने ईश्वर से प्रार्थना की क्षमा करना प्रभु मुझ से बड़ी भूल हो गई। विरक्ति का भाव जागा। सोचने लगा कि यदि मैंने सच्चे मन से प्रार्थना की होती तो अब तक अल्लाह मिल गया होता। “क्षमाकर मुझे नहीं चाहिए कोई पद, प्रतिष्ठा, प्रशंसा सम्मान।” बड़े सच्चे मन से प्रार्थना की थी उसने। प्रातः जागा देखा। बहुत हैरानी में पड़ गया। लोगों की भीड़ घर के सामने लगी है और प्रार्थना कर रही है कि आप जैसे नमाजी हमने नहीं देखा। आप बड़े त्यागी हैं आप तो हमारी मस्जिद की व्यवस्था सम्हालने योग्य हैं।

आकाँक्षा छोड़ी तो सर्वस्व मिला। वास्तव में सब कुछ छोड़ने के बाद ही सब कुछ मिलता है।


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