सोच-सोच कर ही हँस रहा हूँ (Kahani)

July 1994

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परिवार के सभी लोग स्वर्ग सिधार गये तो एक व्यक्ति अपने छोटे बच्चे को लेकर हिमालय में तपोवन जाकर तप करने लगा। वर्षों बीत गये। बच्चा भी पिता के साथ तप करता रहा। जब पिता स्वर्गवासी हुए। बच्चा जवान हो चुका था। एक दिन उसे हिमालय से उतरकर नीचे आने की सूझ पड़ी। रात्रि विश्राम एक गाँव में किया उस रात उसने देखा कि कुछ लोग बाजा ढोल पीट रहे हैं। एक व्यक्ति घोड़े पर बैठा है। महिलाएँ गीत गा रही है। वह देखकर हैरान हुआ कि यह क्या है। लोगों ने कहा बाबा शादी हो रही है। घोड़े पर दूल्हा बैठा है। इसकी शादी होगी। युवक संन्यासी देखकर हैरान हुआ यह क्या तमाशा। रात पड़ गई खाना पीना खाकर कुएँ की मुण्डेर पर चद्दर बिछाकर सो गया गर्मी के दिन थे।

अचानक गहरी नींद से सपना देखा युवक संन्यासी ने कि वह घोड़े पर चढ़ रहा है और जैसे ही उसने पैर ऊपर उठाया कि धड़ाम कुएँ में जा गिरा। वह चिल्लाया निकालो मुझे ! लोग दौड़े। देखा ! युवक संन्यासी हँस रहा है लोगों ने कहा “बाबा ! कुएँ में गिरकर भी हंस रहे हो “ वह बोला निकालो तो सही पहले।

लोगों ने निकाला और पूछा । कुएँ में कैसे गिरे ? गिरे, फिर, हँसे क्यों ? उसने सारी बात बताई और कहा जब सपने की शादी इतना दुख दे सकती है तो सचमुच की शादी तो क्या दुर्गति बनाती होगी। मैं तो बच गया पर बाकी की क्या हालत होती होगी, सोच-सोच कर ही हँस रहा हूँ।


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