स्वजनों के माध्यम से त्रिकालदर्शी बनें

December 1994

Read Scan Version
<<   |   <   | |   >   |   >>

स्वप्न को जाग्रत और आत्मस्थिति का संधिस्थल माना गया है। ये न केवल जीवन की सच्चाइयों का अभ्यास कराते हैं, वरन् आत्मा की सर्वव्यापकता, सर्वज्ञता, कालातीत आदि के जो लक्षण तत्वदर्शियों ने बताये हैं, उसका भी प्रतिपादन करते हैं। प्रश्नोपनिषद् 4/5 में स्पष्ट रूप से कहा गया है - “अत्रैशः देव देवः स्वप्ने महिमानमनु भवति....!” अर्थात् स्वप्नों में आत्मचेतना मन के द्वारा अपनी विराट् का ही अनुभव करता है। जो देखा है उसे फिर से देखता है, सुनी हुई बातों को सुनता भी है। देश-देशांतर में देखी-सुनी बातों को फिर-फिर देखता-सुनता है। देखा, न देखा, न सुना और जो अनुभव में भी नहीं आया, वह भी भी देखता, सुनता और अनुभव करता है। यदि इन स्वप्न संकेतों को समझा और उनका यथार्थ अर्थ निकाला जा सके तो आत्मा जो एक चिर जाग्रत शाश्वत, सनातन और विश्वव्यापी तत्व है, उसकी दिव्य सामर्थ्यों का आनंद हर घड़ी लिया जा सकता है और स्वप्न संकेतों को भी आत्मकल्याण में नियोजित किया जा सकता है।

यही कारण है कि भारतीय अध्यात्मवेत्ता मनीषियों ने भौतिक जगत के विकास की अपेक्षा अतीन्द्रिय चेतना के विकास पर अधिक बल दिया है और कहा है कि मानवी काया पं, कलेवरों से विनिर्मित प्रतीत अवश्य होती है, पर उसके कण-कण में सर्वव्याप्त दिव्य चेतना उतनी ही तक सीमित नहीं है-वरन् वह विश्व-ब्रह्मांड के विस्तार जितनी आसीन है। मानो मन जितना शुद्ध, परिष्कृत और पवित्र होता है, अदृश्य जगत के वास्तविक जगत चलचित्र को चेतनाजगत में परिभ्रमण कर वह स्वप्नों के माध्यम से उतना ही स्पष्ट देख सकता है। भविष्य के गुण रहस्यों की स्पष्ट ध्वनि भी सुन सकता है। महान गणितज्ञ और वैज्ञानिक आइन्स्टीन से एक बार पूछा “ गया” आपकी सृजनात्मक प्रक्रिया का क्या रहस्य है? “ उत्तर में आइन्स्टीन का कहना था कि सोते समय स्वप्न में एक ऐसी स्थिति आती है जब बुद्धि एक लम्बी सी छलाँग लगाकर बोध के उच्चस्तर पर पहुँच जाती है। संसार के अधिकांश वैज्ञानिक आविष्कार इसी स्थिति में सम्भव हुये है। उनका विश्वास था कि गणित और विज्ञान की सहायता से यह सिद्ध किया जा सकता है यह संसार एक स्वप्न के अतिरिक्त कुछ नहीं है।

वस्तुतः स्वप्नों का अपना एक स्वतंत्र विज्ञान है। इस तथ्य पर वैज्ञानिकों ने भी अब ध्यान किया है और परामनोविज्ञान की अनेकानेक शोधों के केन्द्र उन्होंने इसी विशय को बनाया है। परोक्ष रूप से विज्ञान भी अब सूक्ष्म जगत की सत्ता-उसकी अलौकिकता को महत्व देने लगा है। स्वप्न-विज्ञानियों की अवधारणा है कि कोई भी घटना अपने दृश्य रूप में आने से पूर्व अंतरिक्ष जगत में विकसित होने लगती है। अदृश्य सूक्ष्म जगत में जो भी होने जा रहा है उसकी पृष्ठभूमि तैयार होने लगती है। मानवीय अचेतन मन यदि थोड़ा भी परिष्कृत हो तो इन हलचलों को एवं परिणाम स्वरूप पूर्वाभास कर भविष्यवाणी कर सकता है। यह तथ्य मन की अलौकिकता तथा पवित्र-सात्विक-उच्चस्तरीय वृत्ति की महत्ता को उद्घाटित करता है। यदि स्वप्न में इन संकेत-संदेशों का बुद्धिमत्तापूर्वक गहराई से विश्लेषण किया जा सके तो दैनिक जीवन की अनेकानेक समस्याओं को सुलझाने की कुँजी हस्तगत हो जाती है। प्रख्यात मनोवेत्ता कार्ल जुँग ने फ्रायडवादी मान्यताओं का खण्डन कर इसी तथ्य को प्रतिपादित किया है कि स्वप्न दमित वासनाओं के काल्पनिक चित्र नहीं, वरन् जीवन की गहराइयों से भरे सूत्र हैं। ये मन का विनोद नहीं, वरन् भूत और वर्तमान की विवेचना तथा भवितव्य के संकेतों की एक माइक्रोफिल्म के प्रतीक हैं।

अध्यात्मवेत्ताओं के अनुसार मन की तीन अवस्थायें होती हैं- स्वप्नावस्था, जाग्रतावस्था और सुषुप्तावस्था। जाग्रत और सुषुप्तावस्था स्वप्न के बीच की होती है। इसी जीवन प्रवाह की जाग्रत और सुषुप्ति के बीच की मध्य धारा कहा जा सकता है। मानव मन जाग्रत अवस्था में जिस प्रकार इन इन्द्रिय सामर्थ्य से कई गुना अधिक काम कर दिखाता है, इससे भी अधिक विलक्षण चमत्कारपूर्ण कार्य वह स्वप्नावस्था में कर सकता है। इस अवस्था में प्रायः दो क्रियायें होती हैं। एक तो बुद्धि व इन्द्रियों का बाह्य जगत से सम्बन्ध विच्छेद होना था दूसरा मन का अंतर्जगत में विचरण करना। इस तरह स्वप्न मन की एक विशेष अवस्था है जिसमें वे दोनों क्रियायें अनिवार्य रूप से होती हैं। मनःशास्त्री इस सम्बन्ध में केवल यही जान और कह पाये हैं कि स्वप्न अचेतन मन की भाषा है। स्वप्न का संसार जितना जटिल और जितना उलझा हुआ है, उतना चमत्कारी एवं विमुग्ध कर देने वाला है। अंतर्जगत की गुत्थियों का हल निकालने के लिए सपनों की भूल-भुलैया में प्रवेश करके उसी प्रकार जानना और समझना पड़ेगा। जिस प्रकार जिन्दगी की समस्यायें सुलझाने के लिए हमें संसार क्षेत्र में विचरण करना पड़ता है। प्राचीन काल में इस विद्या का बहुत विकास हुआ था और ऐसे अनेक मनीषी मौजूद थे जो सपनों को ध्यानपूर्वक सुनने के बाद उनमें सन्निहित तथ्यों का भी विश्लेषण कर देते थे। उन सपनों को त्रिकालदर्शन की विद्या कहा जाता था। अर्थात् स्वप्नों का ध्यान करने की ऐसी पद्धति उन दिनों विकसित हुई थी, जिसके आधार पर सपनों के माध्यम से भूतकाल की वे स्मृतियाँ जो भुला दी गई, वर्तमान की प्रस्तुतियों तथा मानवीय संभावनाओं के बारे में जान पाना सम्भव था। लेकिन विद्या भी स्वप्नों को पूरी तरह समझने या उनका विश्लेषण कर पाने में समर्थ नहीं थी। ऐसे कई उदाहरण हैं जिनमें अचेतन ने अपनी भाषा में लोगों को ऐसे-ऐसे वरदान दिये हैं कि उन्होंने मनुष्य जाति के इतिहास को नये मोड़ दिये।

प्राचीनकाल के उदाहरणों को छोड़ भी दिया जाये तो भी इसी युग में ऐसे अनेकों प्रमाण हैं, जिनके आधार पर कहा जा सकता है कि मनुष्य का अचेतन मन कितना समर्थ है। इस संदर्भ में मूर्धन्य मनीषी एरिकफ्राम ने अपनी कृति”दि फारगाटेन, लाँग्वेज” में कहा है कि स्वप्न अवस्था में पारस्परिक संबंधों तथा भविष्य की झाँकी ही नहीं निकलती, वरन् उच्चस्तर की बौद्धिक समस्याओं का भी समाधान मिल जाता है। जिन्हें जाग्रत अवस्था में हल नहीं किया जा सकता है। जाग्रत अवस्था में किसी विशेष समस्या पर समाधान नहीं हो पाता, जबकि स्वप्न अवस्था में यह सम्भव है। आधुनिक युग में जिन आविष्कारों और सिद्धान्तों की धूम मची हुई है, उनमें से कई अति महत्वपूर्ण उपलब्धियों के सूत्र वैज्ञानिकों ने स्वप्न की साँकेतिक भाषा को संयोगवश पढ़ लेने के बाद पकड़े थे। प्रख्यात वैज्ञानिक नील्सबोर द्वारा परमाणु संरचना की खोज से लेकर एलियास द्वारा सिलाई मशीन की सुई की खोज-जेस्सवाँट द्वारा बन्दूक के छर्रे-गणितज्ञ हेनरी फेहर एवं स्वामी रामतीर्थ द्वारा कठिन गणितों के समाधान तथा आइन्स्टीन की अधिकांश खोजों का श्रेय स्वप्न संकेतों को ही जाता है। बेन्जीन अणु की जटिल संरचना का हल रसायनशास्त्री फ्रेडरिक कैकुले को स्वप्न में ही मिला था। विख्यात दार्शनिक रेने देकार्ते से लेकर अनेकानेक महान कवियों, दार्शनिकों, कलाकारों ने अपनी ख्यातिलब्ध कृतियों के लिए स्वप्न संकेतों को ही उत्तरदायी बताया है और कहा है कि यदि इस भाषा पढ़ा और समझा जा सके तो बहुत सम्भव है प्रत्येक मनुष्य अपनी प्रगति यात्रा को पूरा करता हुआ सत्य तक पहुँच सके। स्वप्नों के इसी महत्व को बताते हुये प्रसिद्ध वैज्ञानिक फ्रेडरिक कैकूले ने कहा था कि यदि हम स्वप्नों की भाषा समझना सीख लें तो सृष्टि का कोई भी रहस्य, रहस्य नहीं रह जायेगा और हम सत्य को प्राप्त कर सकेंगे।

स्वप्नों की भाषा क्या है? वह व्यवहार में प्रयुक्त होने वाली भाषा से सर्वथा भिन्न है व्यवहार में प्रयुक्त होने वाली भाषा तो मनुष्य द्वारा अपनी सुविधा के लिए गढ़ी गई है और वह वाह्य आदान-प्रदान तक ही सीमित रहती है। उसे चेतन मन द्वारा आविष्कृत या गढ़ी हुई भाषा कहा जा सकता है, जबकि स्वप्न अचेतन मन की व्यवस्था में आते हैं जाग्रत अवस्था में जो व्यवहार किया जाता है, जो क्रियाकलाप सम्पन्न किये जाते हैं, वे चेतन मन की व्यवस्था के अंतर्गत आते हैं और अपने अवचेतन की व्यवस्था में आते हैं अतः अचेतन के सम्बन्ध में यही कहा जा सकता है कि वह सपनों की भाषा बोलता है और यह भाषा सांकेतिक या प्रतीकात्मक होती है।

यद्यपि इस भाषा को समझना कई दुरूह नहीं है। इसके लिये आवश्यकता केवल पर्यवेक्षण, निरीक्षण और अभ्यास की है। इसके अभाव में सपनों को समझ पाना सम्भव नहीं होता है। प्रत्येक व्यक्ति के अपने संस्कार होते हैं, मान्यतायें होते हैं और अपनी भावनायें होती हैं। अपनी कल्पनाओं और संस्कारों के अनुरूप ही मनुष्य का अचेतन प्रतीक गढ़ता है जो प्रत्येक व्यक्ति के लिए अलग-अलग हो सकते हैं। अब तक फ्रायडवादी मनःशास्त्री जो यही मान रहे थे कि सपनों के माध्यम से मानव मन अपनी दलित भावनाओं-इच्छाओं की पूर्ति करता है। स्वप्न मन की अतृप्त वासनाओं और कामनाओं की पूर्ति मात्र का उपक्रम है, इसके अतिरिक्त और कुछ नहीं है। लेकिन युग से लेकर आधुनिक मूर्धन्य अनुसंधानकर्ता मनोवेत्ता मनीषियों ने सप्रमाण यह सिद्ध कर दिया है स्वप्न अचेतन की कल्पनाओं का ताना-बाना एवं असामंजस्य में डालने वाली मृग-मरीचिका नहीं, वरन् उसका हर पक्ष हमारी सूक्ष्म से सूक्ष्म भावनाओं को पूरी कुशलता से उद्घाटित करने वाला होता है। उसके संकेतों को पढ़कर जहाँ एक मनोवैज्ञानिक से छुटकारा पाया जा सकता है, वहीं दूसरी ओर अपने व्यक्तित्व समुन्नत-परिष्कृत बनाने में सहायता भी मिलती है।

स्वप्न अचेतन में निहित विद्वता का उद्घाटन कर व्यक्ति को ऊँचा उठाने में सहायक होते हैं। इस सम्बन्ध में महान दार्शनिक प्लेटो ने अपनी कृति “फीडो” में कहा है कि स्वप्न अन्तरात्मा की ध्वनि का प्रतिनिधित्व करते हैं जिसे गम्भीरता से लिया जाना चाहिए। अरस्तू ने अपनी पुस्तक “डिवीनेशन” में स्वप्नों के तर्कसंगत होने पर महत्व दिया है और कहा है कि स्वप्न के आधार पर हम अपने उच्च सिद्धान्तों एवं योजनाओं का भली प्रकार निरीक्षण कर उन्हें मूर्तरूप दे सकने में समर्थ हो सकते हैं। शल्फवाल्डो इमरसन के अनुसार स्वप्न में हमारा अपना चरित्र ही परिलक्षित होता है स्वप्न संकेतों को पढ़कर हम न केवल अपने व्यक्तित्व को परिष्कृत कर उच्च स्तरीय बना सकते हैं, वरन् अदृश्य शक्तियों एवं आत्मचेतना से भी अपना सम्बन्ध जोड़ सकते हैं। वस्तुतः स्वप्न चेतना की वह आंशिक अनुभूति है जो यह प्रमाणित करती है कि आत्मसत्ता दिक्-काल से किसी बन्धन में बंधी नहीं है और विकास करके वह अपने विराट स्वरूप को प्राप्त कर सकती है।


<<   |   <   | |   >   |   >>

Write Your Comments Here:


Page Titles






Warning: fopen(var/log/access.log): failed to open stream: Permission denied in /opt/yajan-php/lib/11.0/php/io/file.php on line 113

Warning: fwrite() expects parameter 1 to be resource, boolean given in /opt/yajan-php/lib/11.0/php/io/file.php on line 115

Warning: fclose() expects parameter 1 to be resource, boolean given in /opt/yajan-php/lib/11.0/php/io/file.php on line 118