वंदनीया मातु को संदेश हमारा (Kavita)

December 1994

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अश्वमेधों से उठी ऊर्जा! विनय हम कर रहे, वंदनीय मातु से, यह बात कह देना जरा।

हर दिशा के छोर ऊर्जा ! सिर्फ छू सकती तुम्हीं, दूरियों को नापने में भी, नहीं थकती तुम्हीं,

पूज्य गुरुवर तक पहुँच जाना, लेंगी माँ वहीं, हम उन्हीं के पद्म-चरणों पर, चढ़ाते अर्घ्य-सी, भाव-श्रद्धा से भरी सौगात, कह देना जरा।

तुम यही कहना कि हम, दुख-सुख सभी भूले रहे, माँ तुम्हारी गोद में हम, गर्व से फूले रहे,

मन विकल जब भी हुआ, तब स्नेह भीगा स्वर मिला, द्वार तक प्यासे अगर पहुँचे, हमें निर्झर मिला,

कौन संकट से उबारेगा हमें, यह सोचकर, रुक न पाती आँख से, बरसात कह देना जरा।

गलतियाँ हमसे हुई, फिर भी दुलारा आपने, जब कभी भटके कदम, फौरन पुकारा आपने,

आपसे संकल्प-बल सद् बुद्धि-बल हमको मिला, देवसंस्कृति दिग्विजय को चल पड़ा अब काफिला,

आपके बल पर भगीरथ, श्रम सदा करते रहें, है हमारा क्या भला औकात, कर देना जरा,

मातु से कहना, सतत्, संबल हमें देती रहें, स्नेह-ममता से भरा, आँचल हमें देती रहें,

बस उसी की छाँह में, बढ़ते रहेंगे हम सदा, काम जो सौंपा उसे, करते रहेंगे हम सदा, माँ! हमें प्रेरक उजाला, आपसे मिलता रहे,

फिर मिटेगी हर अँधेरी रात, कर देना जरा।

- शचीन्द्र भटनागर


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