प्रतिभा और योग्यता अपने स्वार्थों में ही खपती रहें। इससे अधिक बदतर स्थिति और कुछ नहीं हो सकती। यह कथन है-छय रोग के टीके का अन्वेषण कराने वाले डॉक्टर काल्मे का। उन दिनों फ्राँस में छय रोग जोरों पर था। इसका समूल नाष कैसे हो, इसका कोई उपाय समझ नहीं आ रहा था।
डॉक्टर काल्मे ने अपनी सारी साधन सुविधाओं को परे झटक दिया और महत्वपूर्ण कार्य में लग गये। सहयोगी के रूप में एक सहपाठी मित्र डॉक्टर गुएंरा आगे आये। उनका विवाह उसी वर्ष हुआ था किन्तु गृहस्थ को तपोवन बनाने की अपेक्षा मानव जाति की सेवा के लिए समाज को तपोवन बनाना उन्होंने अधिक महत्वपूर्ण माना।
इस शोध कार्य के दौरान उन्हें कई-कई दिन बिना भोजन के गुजारने पड़ते थे। उनके अथक परिश्रम से मिली लोकोपकारी सफलता के कारण इस टीके का नाम वैसील्स काँमले गुएंरा (बी.सी.जी.) रक्खा गया। इसी के बल पर करोड़ों मनुष्यों को छय के प्रकोप से मुक्त कराया जा सका।
उन्होंने न तो बी.सी.जी. की विधि पेटेण्ट कराई और न इनसे आविष्कार की कोई रियाल्टी ली। क्योंकि उनका स्पष्ट मत था कि मानव में निहित प्रतिभा सिर्फ उसी के लिए नहीं है-अपितु उस समूची मानव जाति का बराबर का अधिकार है।