अविज्ञात को जगाने के लिए मस्तिष्क खुला रखें

December 1994

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मानवी बुद्धि जो कुछ भी दिखती समझती है, वह अत्यल्प है। उसे धर्म सत्य ही कहना उचित होगा। यदि तथ्यों को सर्वांगीण जानने, समझने और उसके ज्ञात विज्ञात हर पहलू को पाने जितनी सामर्थ्य रहती होती, तो विदित हो पाता कि यहाँ सीधा चलने पर जो उलटा क्रम दिखाई पड़ता है, उसे अपवाद नहीं कहा जा सकता। सहायता करने वालों को असहयोग ही असहयोग प्रेम बाँटने वाले को घृणा ही घृणा प्रतिदान मिलते भी कई बार देखा गया है। यह सब एक सुनिश्चित विधान के अंतर्गत होता है। इसमें उलटा नियम अथवा आधा कानून जैसी कोई बात नहीं।

कई बार प्रगति प्रयासों के असफल होने के संबंधों में भी ऐसे अपवाद सामने आते रहते हैं। उसी योग्यता के उसी मार्ग पर चलने वाले उसी उपाय का अवलंबन करने वाले, दूसरे लोग बाजी बाजी जीतते, सफलता पर सफलता पाते चलें जाते हैं, पर पूरी ईमानदारी व समझदारी के साथ किये गये अपने प्रयत्न बहुत स्वल्प परिणाम दे पाते हैं। अनेक बार तो बुरी तरह निराशा ही हाथ लगती है। यदि अपनी ही भूल से ऐसा हुआ, तो वह भूल क्या थी?, यदि थी तो क्या जान बूझकर की गयी?इन प्रश्नों का उत्तर ढूंढ़ खोजने पर भी ऐसे प्रश्न तथ्य हाथ नहीं लगते, जिन्हें असफलता का कारण ठहराया जाय, भूल माना जाय और भविष्य में उसे सुधारने का प्रयत्न किया जाय। अनेक बार मनुष्य स्वयँ बिल्कुल निर्दोष होता है। परिस्थितियाँ ही कुछ ऐसी विचित्र बन जाती हैं कि सब कुछ करा कराया मिट्टी हो जाता है। अतिवृष्टि, पाला, टिड्डी कीड़ों आदि के कारण किसान का तत्परतापूर्वक किया गया श्रम जब निरर्थक चला जाता है, तो उसकी समझ में नहीं आता कि उससे कहाँ क्या भूल हुई? वैसी ही भूल फिर न होने पाये, इसके लिए वह भविष्य में क्या सावधानी बरतें? ऐसे ही अगणित प्रसंग सामने आते रहते हैं।

इन्हीं आशंकाओं के मध्य भाग्य वाद का जन्म होता है। कहा जाता है-” मनुष्य नियति के हाथ की कठपुतली है। भाग्य टलता नहीं। विधि का विधान अकाट्य है। जो होनी है जो हो कर रहती है। “ इसी प्रकार के और भी कथन तब कहें जाते हैं, जब प्रयत्न निष्फल हो जाते हैं। अप्रत्याशित संकट सामने आ खड़े होते हैं अथवा सफलता मिलते मिलते अपना रुख बदलती और बिजली की तरह आशा की चमक दिखाकर कहीं से कही चली जाती है। ऐसा ही तब भी कहा जाता है, जब अंधे के हाथ बटेर लगती है और सर्वथा समर्थ योग्य और श्रमशील को दिखती है। कितनों को ही ऐसी सफलताएँ वारतलबत हो जाती है जिनके लिए उनके पुरुषार्थ का श्रेय किसी भी प्रकार नहीं दिया जा सकता। पूर्वजों की बड़ी संपत्ति उत्तराधिकार में मिल जाय, तो उसमें प्राप्ति कर्त्ता का श्रेय क्या? लाटरी खुल जाने जैसी सफलताओं में किस कौशल ओर पौरुष को सराहा जाय? तेजी मंदी के दौर में कई व्यापारी देखते देखते दिवालिया होते तथा कई लखपति होते दृष्टिगोचर होते हैं। इनमें किसको मूर्ख किसको विद्वान कहा जाय? नदी में बाढ़ आती है किसी का खेत कटकर उसकी आजीविका को उदरस्थ कर जाती है। किसी के ऊपर खेत में कहाँ से लाकर ऐसी मिट्टी उपजाऊ पटक दी गयी कि वह उसकी पैदावार को देखते देखते अमीर बन जाता है।

नदी द्वारा एक ही भूमि को काट ले जाना और दूसरे को समृद्धि का वरदान बरसा जाना इसे क्या कहा जाए? इसके लिए दोष का श्रेय किसको दिया जाय? आँधी तूफान में जिसका छप्पर उजड़ गया और घर बिगड़ गया, उसमें उसकी क्या भूल बताई जाय ओर भविष्य में क्या सावधानी बरतने के लिए कहा जाय?सामान्य बुद्धि कुछ समझ नहीं पाती संयोग अथवा अपवाद कह कर टाल देती है। समय समय पर ऐसे प्रसंग उपस्थिति होते रहते हैं, जिसमें बुद्धि असमंजस में पड़ जाती है। और कोई भी निष्कर्ष व निर्णय नहीं निकाल पाती॥

एक ऐसे ही प्रसंग का वर्णन महात्मा आनन्द स्वामी ने अपनी पुस्तक “ एक ही रास्ता” में किया है। घटना सन् 1946 की है। दोपहर का समय था। मुँगेर के लोग तब घरों में विश्राम कर रहे थे। कई दिनों से वहाँ भूकंप के हल्के झटके महसूस हो रहे थे। झटके अत्यंत मंद होने के कारण लोग उस ओर से असावधान बने हुए थे और किसी प्रकार की सुरक्षा के कोई कदम नहीं उठायें गये। किसी को क्या पता कि आज उनके जीवन का आखिरी दिन है। प्रकृति की ओर से लगातार दी जा रही उपेक्षा का सामूहिक दण्ड इसी दिन मिलने वाला है। लोग अपने बिस्तर में अभी गये ही थे कि तीव्र भूचाल हुआ और देखते ही देखते घर धराशायी हो गये। सब कुछ इतनी शीघ्रता से पलक झपकते हो गया कि लोगों को बाहर भागने का मौका ही नहीं मिला। पूरा नगर श्मशान में परिवर्तित हो गया। प्रथम और दूसरे दिन तो लोग जीवित चोट खाये निकलते रहे, पर तीसरे दिन तो लाशों की कतारें लगी थी कि पन्द्रह दिनों तक निकलती चली गयी। दृश्य साकार मरघट में उपस्थित हो गया।

अभी तो मलबे की सफाई चल रही थी और उसके नीचे मरे पड़े लोगों की खोज की जा रही थी। एक स्थान पर जब काम चल रहा था, सफाई करने वाले अचानक चौंक उठे। नीचे से बार बार एक स्वर उभर रहा था, जिसमें धीरे ओर सावधानी पूर्वक खोद कर निवेदन किया जा रहा था। 15 दिनों तक जमीन में डूबे रहने पर भी यह कौन जीवित पड़ा है। इस आश्चर्य से कुछ समय तो लोग विस्मय मूढ़ में बने रहे, पर आपात स्थिति का ध्यान आते ही अधिक तत्परता और शीघ्रता दिखाई गई?

कुछ ही समय के परिश्रम के उपराँत भारी शहतीरों और ध्वस्त दीवारों के बीच विशाल ढेर के नीचे एक अधेड़ आयु का व्यक्ति बाहर निकाला गया। आस पास केले के ढेर सारे छिलके पड़े थे। उससे सुरक्षित बचे रहने के बारे में पूछा गया, तो बताया कि वह एक फल बेचने वाला है और इसी आय से वह अपना पेट पालता है। उक्त दिन केले की टोकरी लादे इस मकान की दलान के नीचे खड़ा था कि अकस्मात छत तीव्र कंपन से गिर पड़ी और वह उसी मलबे के नीचे दब गया। टोकरी इस प्रकार उल्टी कि सारे केले उसके नीचे सुरक्षित पड़े रहे और वह भी कुछ इस प्रकार दबा कि किसी प्रकार की कोई हानि नहीं पहुँची। धरती एक बार फिर काँपी इसी के साथ पता नहीं मलबे के मध्य कैसे एक छोटा सुराख हों गया। हवा और धूप गर्मी आने के कारण इतना पर्याप्त था। जीवन के लिए एक मात्र ही चीज की आवश्यकता रह गयी थी-पानी। दैव योग से पृथ्वी तीसरी बार फिर काँपी और जब मकान का फर्श टूट गया और पानी की एक लहर उधर आयी तो इस गड्ढे को ऊपर तक भर गई। हवा धूप यों छिद्र से उपलब्ध हो गये। केले पास ही थे। पानी भी परमात्मा ने भेज दिया था।

इस आधार पर अब तक जीवित रहा। आज अंतिम दिन है जब केले सब समाप्त हो गये है। पानी नहीं बचा है। प्रकाश भी नहीं आ रहा है, पर आप लोग आ गये, सो मैं आप सबों को भगवान की मदद ही मानता हूँ। इतना कहकर उसकी आंखें भर आयीं और भगवान को लाख लाख धन्यवाद देता हुआ चला गया।

यह ठीक ही है कि प्रसंग बार बार नहीं घटते यह अपवाद है। सामान्य क्रम इन्हें नहीं कहा जा सकता फिर भी अपवाद सर्वथा उपेक्षणीय नहीं है। उनका भी कारण खोजना होगा। अत्युक्ति न समझी जाय और पौरुष सार्थकों को बुरा न लगता नम्रता पूर्वक यहाँ तक कहा जा सकता है कि “भाग्य का खेल” 30 प्रतिशत घटनाक्रमों में काम कर रहा होता है। यों महत्ता तो कर्मनिष्ठा की ही रहेगी और खुला समर्थन उसी को दिया जायेगा पर इन अप्रत्याशित परिणामों के संबंध में भी तो विचार ही किया जाना चाहिए।

विज्ञान कहता है कि संसार में कभी भी ऐसा कुछ नहीं हो सकता, जो प्रकृति नियम के विपरीत हो। भूकम्प, बिजली गिरना, ज्वालामुखी फटना, तूफान जैसी घटनायें साधारण बुद्धि को आकस्मिक लगती है और उसके पीछे विपर्यय दीखता है, पर वस्तुतः वैसा कुछ होता नहीं।

उसके पीछे भी प्रकृति के सूक्ष्म नियम ही काम करते हैं। यह दूसरी बात है कि उन नियमों की जानकारी सर्वसाधारण को न हो अथवा उस तरह के घटनाक्रम आये दिन घटित न होने के कारण आश्चर्यजनक लगते हैं। चमत्कार उन्हीं को कहते हैं, जो दृश्य आमतौर पर देखने को नहीं मिलते हैं। जब भी विज्ञान का आविष्कार प्रथम बार हुए तो उन्हें भारी चमत्कारों के रूप में देखा गया था। रेल, टेलीफोन, बिजली, रेडियो, सिनेमा, टी. वी, आदि पूर्व काल में अप्रचलित आविष्कार जब सामने आये तो सामान्य बुद्धि हतप्रभ रह गयी और उसे जादू जैसा करामात समझा गया। पीछे अब जब विज्ञान के आविष्कारों का सिलसिला समझ में आ गया, तो अंतर्ग्रही यात्रा, अणु आयुधों, रोबोटों, कम्प्यूटर जैसी आश्चर्यजनक उपलब्धियों तक को साधारण बात मान लिया गया।

जादू नाम की कोई वस्तु दुनिया में नहीं है लोगों की परख क्षमता को चकमा देने की सफलता का नाम जादूगरी है। अध्यात्म क्षेत्र में सिद्धि चमत्कारों का वर्णन बहुत होता है। उन्हें देख कर आश्चर्य तो किया जा सकता है पर ऐसा नहीं माना जा सकता है कि यह आकस्मिक है। इनके पीछे प्रकृति के सामान्य नियम परम्परा का हाथ नहीं है। इसमें अव्यवस्था के लिए रंग मात्र की गुंजाइश नहीं है यहाँ ऐसा कुछ हो ही नहीं सकता, जिसे अप्रत्याशित, चमत्कारी या असंभव कहा जा सके। जिसे हम नहीं जानते उस अविज्ञात को ही अपवाद कह सकते हैं। वस्तुतः उन अपवादों के पीछे भी प्रकृति का पूर्ण व्यवस्था क्रम काम कर रहा है। आदि काल में सूर्य, बिजली, आग, वर्षा आदि तत्वों को देवता माना जाता था उनकी मनौती मानयी और बलि चढ़ाई जाती थी। चन्द्रग्रहण और सूर्यग्रहण किन्हीं राक्षसों का आकस्मिक आक्रमण समझा जाता था, पर अब यह बात रही नहीं। विज्ञान के शोध निष्कर्षों ने भली प्रकार समझा दिया है कि यहाँ अप्रत्याशित कुछ नहीं है। अविज्ञात को ही अपवाद कहते हैं। वस्तुतः इस सृष्टि में अंधेरगर्दी के लिए व्यक्तिक्रम के लिए कहीं रत्ती भर भी गुंजाइश नहीं है।

अविज्ञात-अप्रत्याशित को ही अपवाद कहा जाता है वस्तुतः यहाँ अर्थवाद का ही अस्तित्व है। अपवाद का अर्थ इतना ही है कि जिस आधार पर वह असामान्य घटनाक्रम उपस्थित हुआ, उसकी जानकारी अपने पल्ले नहीं पड़ी है। क्यों अपवादों का सिलसिला चलता ही रहेगा, क्यों कि सामान्य व्यवस्था की ही हमें जानकारी है और उसी को देखने-समझने की आदतें भी हैं। सृष्टि के अविज्ञात नियमों के आधार पर जब भी कुछ असामान्य घटित होगा, तभी उसे अपवाद कर दिया जायेगा। प्रकृति के रहस्य अनंत हैं और मनुष्य की बुद्धि अत्यंत स्वल्प। ऐसी दशा में असाधारण तो घटित होता ही रहेगा। उचित यही है कि उसके संबंध अत्यंत स्वल्प। ऐसी दशा में असाधारण तो घटित होता ही रहेगा। उचित यही है कि संबंध में हम अपना दृष्टिकोण साफ कर लें। अपनी समीपता को स्वीकार करें और असमंजस में न पड़ कर तथ्यों तक पहुँचने का यथासंभव प्रबल करते रहें।

पिछले दिनों एक ही तरीका अपनाया जाता रहा है कि हर अपवाद को देव-मानवों के क्रिया-कृत्य मानकर समाधान कर लिया जाता रहा है। भाग्यवाद भी कुछ इसी प्रकार दर्शन है, जिसमें देवताओं के द्वारा भाग्य-निर्माण की बात कह कर एक विचित्र प्रकार भ्राँति उत्पन्न कर दी गई है। विचारशील वर्ग में अपवादों को ‘चान्स’ ‘काँइन्सीडेन्स, ’ ‘लक’ आदि कहा जाता रहा है। उसे अप्रत्याशित अवसर मात्र या दोष नहीं दिया गया है। उसमें अविज्ञात को अपवाद को मान्यता भर दी गई है और उसका कारण विविदत को मान्यता भर दी गई है और उसका कारण विदित न होने पर उसे किसी देवता का कोष या अनुग्रह कहकर एक नया भ्रम गढ़ने की चेष्टा नहीं की गई है। यह समझदारी का चिह्न है। सर्वज्ञ होने का दावा करना मिथ्या गर्व है। जो ज्ञात नहीं है, उसे जानने के लिए मस्तिष्क खुला रखा जाय और धैर्यपूर्वक रहस्योद्घाटन के सूत्र खोज निकालने का प्रयत्न करते रहा जाय। इसी में बुद्धिमानी है।


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