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December 1994

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मनुष्य को एक प्रकार की कठपुतली की उपमा दी जा सकती है। यदि वह अपनी मनोवृत्तियाँ तथा साधन संपत्ति कर्तव्यों के धागों में बाँधकर ईश्वर रूपी कुशल कलाकार के हाथों सौंप दे तो निस्संदेह उसका जीवन आदर्श, अनुकरणीय, प्रकाश-प्रद तथा ऐतिहासिक बन सकता है।

संत विनोबा अपने संस्मरण में लिखते हैं कि “व्यक्ति को न्दापूर्ण आलोचनाओं से डरकर सेवा के मार्ग से विचलित नहीं हो जाना चाहिए। क्योंकि उँगली उठाने वाले को यदि ध्यान से देखें तो ज्ञान होगा कि वह दूसरों की ओर एक ही उँगली उठा रहा होता है। जब कि तीन उँगलियाँ स्वतः उसकी ओर उठती हैं और चेतावनी देती हैं पहले स्वयं को देख फिर किसी और को देखना। ”


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