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Akhand Jyoti
Year 1994
Version 2
VigyapanSuchana
VigyapanSuchana
December 1994
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Page Titles
अपने भाग्य विधाता हम स्वयं
मुक्ति के लिए संसार से पलायन क्यों?
विशेष लेख - युगान्तरीय चेतना के उद्गम केन्द्र से सम्बन्ध जोड़ें
नये युग के नये आधार व नये पंचशील
डाकू बना महात्मा
स्वजनों के माध्यम से त्रिकालदर्शी बनें
गायत्री महामंत्र में निहित रोगोपचार की शक्ति सामर्थ्य
प्राण प्रवाह के सुनियोजन से चिरयौवन
वातावरण की महिमा गायी ऋषियों और मनीषियों ने
Quotation
पूर्णतत्व की प्राप्ति का एक ही राजपथ
पक्षी को छाया नहीं फल लागे अति दूर (Kahani)
अशिष्टता को शिष्टता से जीता
हजरत लुकमान (Kahani)
“सतयुग की वापसी” शुरुआत ऐसे होगी
Quotation
खतरों से डरे या उनसे जूझें?
धूर्त कौवा (Kahani)
अंतर्जगत का देवासुर संग्राम ही अष्टांग योग का प्रत्याहार
संपत्ति का सदुपयोग (Kahani)
अविज्ञात को जगाने के लिए मस्तिष्क खुला रखें
बड़प्पन के प्रदर्शन में घाटा ही घाटा
Quotation
मनोरोग – हमारी अपनी ही उपज
वृत्तियों का परिमार्जन, व्यक्तित्व का उदात्तीकरण
आत्मविश्वास बढ़ाने की एकमात्र कुँजी
जीवित रहने की इच्छा (Kahani)
क्या सचमुच ईसा कभी भारत आए थे?
अपना व्यक्तित्व प्रभावशाली बनायें
अंतस् की गंगोत्री देती है, सच्चा सुख व संतोश
विवाद होने तक इन्तजार करो (Kahani)
नैतिक अवमूल्यन व हम सबके दायित्व
प्रतिभा और योग्यता (Kahani)
सुखी बनने के लिए जीवन कला का शिक्षण
Quotation
वंदनीया मातु को संदेश हमारा (Kavita)
तरने चला सकल संसार (Kavita)
नारी उत्कर्ष की सुखद संभावनाओं से भरा गंगावतरण
परमपूज्य गुरुदेव की अमृतवाणी- - आध्यात्मिक कायाकल्प की एक ही शर्त-पात्रता संवर्धन
अपनों से अपनी बात- - पराशक्ति का अवतरण अभिषेक अनुष्ठान
नवयुग से संबंधित पूज्यवर के उद्गार
VigyapanSuchana
ॐ भू र्भुवः स्वः
तत्
स
वि
तु (र्)
व
रे
णि
यं
भ
र्गो
दे
व
स्य
धी
म
हि
धि
यो
यो
नः
प्र
चो
द
या
त्
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