अमरावती के नगर सेठ की मृत्यु हुई। मुनीम ने सबसे बड़े पुत्र को पिता की सम्पत्ति का हिसाब किताब समझाया। किस का लेना किसको देना। सब बताने के बाद वह उसे नीचे बने तलघर में ले गया जहाँ अरबों-खरबों की संपत्ति से तिजोरियाँ भरी पड़ी थी।
मुनीम ने का- “ मालिक यह सब आपके पूर्वजों की कमाई हुई है। “ सेठ पुत्र उदास हो गया। सेठ ने पूछा आप उदास क्यों हो गये?सेठ पुत्र बोला “इतनी संपत्ति जोड़ जोड़कर रखते गये किन्तु मेरे पूर्वज कुछ भी इनमें से अपने साथ नहीं ले जा सके। ” मुनीम ने कहा- “कोई ले भी जाता है संपत्ति, जो वे ले जाते?” सेठ पुत्र ने कहा तब ठीक है। इसके सदुपयोग की बात सोची जानी चाहिए और कहते हैं कि पीढ़ियों से पड़ी धन दौलत को उसने स्कूल, अतिथिगृह, अस्पताल और गरीब बच्चों की छात्रवृत्ति के लिए तुरन्त दान दें दिया। संपत्ति का मोह संग्रह के लिए उकसाता है। उदारता यदि बनी रहे तो सदुपयोग की बात सूझ पड़ती है।