धूर्त कौवा (Kahani)

December 1994

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कबूतर की सुविधाएं देखकर कौए को ईर्ष्या होती कि उसका सब ओर से तिरस्कार होता है और दुत्कारा जाता है और कबूतर से बुलाकर दाना-पानी दिया जाता और सुरक्षा सुविधा दी जाती है। घर लौटते कबूतर के साथ एक दिन कौआ भी साथ हो लिया। कबूतर बोला। आप कौन हैं? मेरे पीछे क्यों लगे हैं? कौआ भोला बनकर बोला। “न जाने क्यों आप की सज्जनता और विनम्र स्वभाव देखकर कुछ आप से सीखने, सत्संग करने और सेवा लाभ लेने का मेरा मन करता है इसीलिए चला आया हूँ। कृपया, अधम की सेवाएँ स्वीकार करें। ”

भोला कबूतर कपटी कौए की बातों में आ गया। कौआ साथ रहने लगा। कबूतर अपने दाना-पानी में से उसे भी हिस्सा देता। कौआ छककर खता, किंतु ताक-झाँक से बाज न आता। कबूतर के मालिक ने दड़बे में कौआ देखा तो उसे आश्चर्य हुआ कि यह कैसी विचित्र मित्रता। किंतु कार्य व्यस्तता में उसने अधिक ध्यान नहीं दिया एक दिन प्रातः कबूतर बाहर जाने को हुआ तो कौए से बोला चलें बाहर सैर करें। कुछ दाना भी चुग लेंगे। कौआ बोला क्षमा करें आज बड़ी उदर पीड़ा है। रात्रि को इतना खाया कि भूख भी नहीं लगी। मैं आज विश्राम करूंगा आप ही घूम आवें। कबूतर चला गया। कौए ने अच्छा मौका देखकर मालिक की रसोई में प्रवेश कर भगौनी में रक्खी खीर खाने में लगा है उसने तुरंत रसोई का दरवाजा बंद कर दिया और पकड़ कर पंख और पैर बाँधकर कोने में पटक दिया। कौआ पछताया कि छल, कपट धोखे और लोभ के कारण ही उसकी यह दुर्दशा हुई है।


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