नौ दिवसीय जीवन साधन सत्र

February 1988

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नौ दिवसीय जीवन साधना सत्रों का कार्यक्रम अब और भी अधिक सघन एवं व्यस्त कर दिया गया है। किस-किस प्रयोजन के लिए क्या आत्म साधना करनी चाहिए? इसका निर्णय करने से पूर्व शिक्षार्थी की शारीरिक एवं मानसिक स्थिति की जाँच पड़ता बहुमूल्य वैज्ञानिक यंत्रों से की जाती है। अब तक के जीवन का विवरण, वर्तमान में अड़े हुए अवरोध एक उज्ज्वल भविष्य के लिए किस दिशा में चलने का विचार है यह विस्तारपूर्वक पूछा जाता है और तद्नुसार साधना विषयक परामर्श दिया जाता है। साधारणतया गायत्री का एक लघु अनुष्ठान आवश्यक है। जिन्हें किसी अन्य साधना मार्ग पर विश्वास है उनका तद्नुरूप निर्धारण कर दिया जाता है।

साधारण जप, ध्यान, हवन, संचम का स्थूल, सूक्ष्म और कारण तीनों शरीरों पर प्रभाव पड़ता है। इसलिए सर्वतोमुखी प्रगति क लिए व्यक्तित्व के अन्तराल में जमे नये और पुराने संस्कारों का परिशोधन, परिष्कार करने के लिए यह साधना विद्या दूरगामी परिणाम उत्पन्न करती है, जो इन सत्रों में सम्मिलित होने वाले प्रत्येक व्यक्ति से कहीं उसकी शक्ति एवं स्थिति के अनुरूप कराई जाती है। सभी साधनाएं ऐसी है। जिन्हें सरलता पूर्वक बिना किसी जोखिम के हर कोई अपना सके।

जीवन साधन सत्रों में (1) आत्म परिष्कार व्यक्तित्व का निखार (2) परिवार निर्माण इस छोटी दुनिया में सत्प्रवृत्तियों के संवर्धन का अभ्यास (3) वे लोक व्यवहार “समाज का पुनर्निर्माण”। जैसे महत्वपूर्ण विषयों को जटिल गुत्थियों का सहज समाधान उपलब्ध कराया जाता है। शारीरिक, मानसिक, आर्थिक, भावनात्मक परिस्थितियों में किस प्रकार सुधार किया जाय संतुलन बिठाया जाय। जैसे विषयों का ऐसा मार्गदर्शन प्रस्तुत किया जाता है। जिसका अनुसरण करना हर किसी के लिए संभव हो सके। इस प्रशिक्षण को उज्ज्वल भविष्य की संरचना का महत्वपूर्ण चरण समझा जा सकता है।

इन दिनों शांतिकुंज में जीवन साधना के अतिरिक्त तीन मास की लोकनायक युगनायक शिक्षा पद्धति भी चल रही है। इसमें शिक्षा संवर्धन (1) स्वस्थता संरक्षण (3) कुटीर उद्योगों के माध्यम से गरीबी उन्मूलन की अनेक विद्याएं सिखाई जा रही है। भाषण कला एवं संगीत शिक्षा को प्रमुखता दी जा रही है ताकि लोकमानस का परिष्कार करने के साथ-साथ अपनी प्रतिभा में भी चार चाँद लग सकें।

नौ दिवसीय सत्रों में आने वाले इन विद्याओं को इतने अल्प समय में सीख तो नहीं सकते पर देखने समझने का अवसर उन्हें भी मिल जाता है। इस आधार पर नौ दिवसीय सत्रों में सम्मिलित होने वाले भी यह अनुमान लगा सकते हैं। इन विद्याओं में से उनके अपनाने योग्य क्या हो सकती है? यहाँ देखे आधार पर वे जिन्हें उपयोगी समझें उन्हें सीखने के लिए भविष्य में कभी यहाँ आने की और तीन महीने रहने की योजना बना सकते हैं।

इन नौ दिवसीय सूत्रों में दो दिन का इतना अवकाश मिल जाता है, जिनमें ऋषिकेश, लक्ष्मणझूला, हरिद्वार, कनखल के प्रमुख देवालयों को देखा जा सके और तीर्थ यात्रा या पर्यटन का उद्देश्य भी एक सीमा तक पूरा किया जा सके।

अब तक जितने शिक्षार्थी इन सत्रों में सम्मिलित होकर गये है उनमें से अधिकाँश ने ऐसी प्रेरणा प्राप्त की है जिसके सहारे पिछले जीवन की तुलना में भावी गतिविधियों में अति उपयोगी परिवर्तन हो सका और उज्ज्वल भविष्य की संरचना का नया मार्ग खुल सका। उनमें उत्साहवर्धक परिवर्तन देखकर नये शिक्षार्थियों के आने पर उत्साह जगता रहता है और पिछले शिविरों की तुलना में अगले शिविरों की संख्या का काल तथा स्तर बढ़ता रहता है।

यह अनुमान सही नहीं है कि हरिद्वार में ठंड अधिक पड़ती है। अब क्रमशः मौसम में आश्चर्यजनक परिवर्तन होने लगा है। हरिद्वार का मौसम भी लगभग वैसा ही रहता है जैसा अन्य समशीतोष्ण स्थानों का।

*समाप्त*


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