एक प्रख्यात सन्त सोमवती अमावस्या पर गंगा स्नान के लिए जा रहे थे। रैदास से उनका पूर्व परिचय था। सोचा उन्हें भी साथ ले लें। दो साथी रहने से रास्ता अच्छा कटेगा और सत्संग भी होता चलेगा। सो वे रैदास के घर पहुँचे और अपना प्रस्ताव कर सुनाया।
रैदास ने आगन्तुक का समुचित सत्कार किया। पधारने के लिए कृतज्ञता प्रकट की, पर साथ ही असामंजस्य भी प्रकट किया कि वे जा न सकेंगे।
कारण पूछने पर उनने बताया, कि कितने ही लोगों के जूते मरम्मत के लिए उनने ले रखें और उन्हें जल्दी ही ठीक करके देने का वचन दिया है। यदि मैं गंगा स्नान को चला जाऊँ तो वचन से झूठा पड़ूंगा और साथ ही काम सौंपने वालों को कई दिन नंगे पैर चलने का कष्ट उठाना पड़ेगा। मैंने कर्तव्य पालन को प्रथम और भजन को सदा दूसरा स्थान दिया है, ऐसी दशा में आपका परामर्श टालते हुए दुःख तो होता है, पर विवशता ऐसी है कि दूसरा कोई रास्ता सूझता नहीं है।
सन्त ने इसे गंगा जी की उपेक्षा समझा। उनमें भक्ति भाव पर संतोष किया। माया लिप्त समझा और अपना रोष असंतोष जताते हुए अकेले ही जाने को उठ खड़े हुए।
बचत पूँजी की कुल राशि दो पैसे मेरे पास हैं। इन्हें कृपापूर्वक लेते जाइये और गंगा माता के हाथ में सोमवती के दिन थमा दीजिए। सन्त ने पूछा - हाथ में? यह कैसे? उनके हाथ कहाँ है? रैदास कहते रहे यदि हाथ न होते तो आप जैसे ज्ञानी उनके दर्शन करने के लिए क्यों जाते?
बहस का अन्त करते हुए रैदास ने कहा-जल में से यदि कोई हाथ ऊपर निकालें तो एक हाथ में एक और दूसरे में दूसरा पैसा था दीजिए। यदि हाथ न निकलें तो पैसे वापस लौटा कर ले आइये। मेरे पैसे पूरे परिश्रम, कर्त्तव्य पालन और गहरे भक्तिभाव से सने है। उन्हें स्वीकार करने में गंगा माता आनाकानी न करेगी।
सन्त का क्रोध असामंजस्य में बदल गया। वे आश्चर्य और अविश्वास कर रहे थे कि भला ऐसा भी कहीं हो सकता है? गंगा माता के हाथ भला क्यों कर पैसे लेने के लिए निकलेंगे? फिर भी उनने दोनों पैसे गाँठ में बाँध लिए और कौतुक देखने के लिए उत्सुकतापूर्वक व्यग्र होने लगे। सन्त एकाकी चल पड़े।
रैदास के शिष्यों ने प्रसंग सुना तो इकट्ठे हो गये। गंगा जाने का अनुरोध करने लगे। जूतों की मरम्मत बाद में होती रहेगी। इतने दिन हम फटे जूतों से भी तो काम चला सकते हैं।
रैदास का एक ही उत्तर था-कर्तव्य पालन और जन हित प्रथम है। पूजा का द्वितीय स्थान है। मेरा निर्णय यदि ठीक है तो उसका प्रमाण देखने के लिए तुम लोग सोमवती अमावस्या के दिन मेरे पास आ जाना और वास्तविकता का प्रमाण देखना।
सोमवती अमावस्या आई। भक्तजन जमा हुए? रैदास की कठौती में से गंगा की धारा उबली और उसमें सभी उपस्थित जनों ने स्नान किया। दूसरी और उन बड़े सन्त ने गंगा से एक भक्त के भेजे दो पैसे और हाथ निकलने पर उन्हें देने की शर्त कह सुनाई।
चमत्कार हुआ, गंगा की धारा में से दो हाथ निकले दोनों में दो पैसे थमाये गये। उन्हें लेकर वे लुप्त हो गये।
दोनों घटनाओं की चर्चा सुनने वालों ने निष्कर्ष निकला कि सच्ची भक्ति इसी प्रकार हो सकती है जैसी कि रैदास करते हैं।