भीम की मुनादी

February 1988

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उसी दिन गले में ढोल डालकर भीम स्वयं ही नगर में मुनादी पीटने निकल पड़े। लोगों को आश्चर्य हो रहा था कि जहाँ यह कार्य एक साधारण कर्मचारी किया करता था वहाँ उसे भीम स्वयं ही करने क्यों निकल पड़े है? संभवतः कोई बड़ी और महत्वपूर्ण बात होनी चाहिए। जिसको पता चला वही सुनने के लिए दौड़ पड़ा। भारी भीड़ जमा होने लगी।

भीम की घोषणा विचित्र थी। वे जगह-जगह ढोल बजाते, जनता को एकत्रित करते और कहते कि “सज्जनो कितनी प्रसन्नता की बात कि महाराज युधिष्ठिर ने कालबली को जीत लिया है। यह विजय हम सभी के लिए गर्व की बात है।

मुनादी दिन भर बजती रही। चर्चा एक से दूसरे के कानों पहुँची। सारा नगर अवगत हो गया, साथ ही आश्चर्यचकित भी। भला काल किस प्रकार जीत लिया गया? इससे तो मृत्यु को भी टाला जा सकेगा।

मुनादी की सूचना गुप्तचरों ने महाराज युधिष्ठिर तक पहुँचाई। वे स्वयं आश्चर्यचकित थे कि ऐसी अनहोनी बात भीम जैसे जिम्मेदार द्वारा जनता तक स्वयं पहुँचाई गई? यह तो और भी अधिक असामंजस्य की बात है।

भीम को दरबार में बुलाया गया। महाराज ने कड़ककर पूछा- क्या तुमने काल जीतने वाली मुनादी की है? यदि की है तो एक मिथ्या भ्रम फैलाने का क्या कारण था?

भीम अविचल थे। वे न तो झिड़की पर डरे और न तनिक भी लज्जित हुए। उनमें शान्त भाव से उत्तर देते हुए कहा- राजन कल आपने ही तो एक ब्राह्मण के दान माँगने पर यह उत्तर दिया था कि “कल आना तब मिलेगा।”

इस उत्तर से मैंने जाना कि आपको जीवन का पूरा पक्का विश्वास हो गया है कि कल तक आप भी जीवित रहेंगे और वह ब्राह्मण भी। यदि इसमें कुछ संदेह होता तो आप कल की बात कैसे कहते? आप दोनों में से मृत्यु किसी को उठा ले जाती तो आपका वचन झूठा पड़ जाता और आप पर मिथ्यावादी होने का दोष लगता। काल को बस में करने वाला ही किसी को ऐसा वचन दे सकता है जैसा कि आपने उस ब्राह्मण को दिया। इसलिए मैंने जो निष्कर्ष निकाला वह वास्तव में बड़ा आनन्ददायक था। मैं भी आनन्द विभोर हो गया और सेवक को बुलाने की अपेक्षा उत्साह के आवेश में स्वयं ही मुनादी करने निकल पड़ा। इसमें कोई भूल हुई हो तो बतायें?

युधिष्ठिर गंभीर हो गये। कल के लिए ब्राह्मण को टाल देने की बात पर दार्शनिक दृष्टि से गंभीर विचार करने लगे। घटना तो छोटी थी। उस समय व्यस्त रहने के कारण याचक को कल आने के लिए कह दिया गया था। पर इतनी गहराई से नहीं सोचा गया कि काल का क्या ठिकाना? वह कभी भी आ धमक सकता है। ऐसी दशा में वचन भंग का दोष लगने की बात तो निश्चय ही सारगर्भित थी।

याचक को सेवक भेजकर तुरन्त बुलाया गया। जो देना था सो दे दिया गया। युधिष्ठिर को बोध हुआ। उनने प्रतिज्ञा की कि वे वहीं कहेंगे जो आज कर सकते हैं। कल की बात तो कल की परिस्थितियों पर ही निर्भर रह सकती है।

याचक को सेवक भेजकर तुरन्त बुलाया गया। जो देना था सो दे दिया गया। युधिष्ठिर को बोध हुआ। उनने प्रतिज्ञा की कि वे वहीं कहेंगे जो आज कर सकते हैं। कल की बात तो कल की परिस्थितियों पर ही निर्भर रह सकती है।


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