सम्पन्न और सफल कौन बन सकेगा, इसका विवेचन बाइबिल की कई ऋचाओं में आया है। भविष्य किसका उज्ज्वल है। बड़ों की पंक्ति में कोन खड़ा होने वाला है। इस सम्भावना का आधार बताते हुए बाइबिल में कहा गया है-
“यदि ऐसा कोई व्यक्ति देखें जो तत्परता और तन्मयता पूर्वक अपना काम-काज करता हो तो समझना वह अगले दिनों पिछड़ों की पंक्ति में नहीं, शासकों और मार्ग दर्शकों के ऊंचे स्थान पर खड़ा होगा।”
इसी तथ्य की पुष्टि में एक और भी उक्ति है-
“लाभ में सिर्फ परिश्रमी रहते हैं। बकवादी तो अपनी रही बची इज्जत और ताकत को गंवाते चले जाते हैं।”
“जिसके पास आज धन नहीं वह चिन्ता न करे। जो परिश्रमरत है, वह समेटेगा और बढ़ेगा।”
वस्तुतः यह शारीरिक और मानसिक परिश्रम ही है जिसे यदि ईमानदारी और दिलचस्पी के साथ करते रहा जाय तो मनुष्य की योग्यता बढ़ती है। प्रतिभा निखरती है। साथ-साथ सुविधा साधनों की भी कमी नहीं रहती।
कई व्यक्ति सुयोग्य भी होते हैं और कमाऊ भी। किन्तु उन्हें पिछड़ी एवं गई-गुजरी स्थिति में पड़ा देखा जाता है। इसका कारण क्या है। इसमें बताते हुए बाइबिल ने दुर्व्यसनों की ओर इशारा किया है और कहा है कि बुरी लतें लग जाने पर जो कमाया जाता है वह सब कुछ गुम जाता है। ऐसे लोग आवश्यक कामों के लिए खर्च करने और बचाने की स्थिति में ही नहीं रहते। छेद वाले बर्तन में दुहने या दुधारू काम भी निरर्थक सिद्ध होता है। बुरी आदतें वह छिद्र हैं जिनके रहते किसी के सुख-शांति से रहने एवं उज्ज्वल भविष्य के सुनहरे दिन देखने की आशा नहीं करनी चाहिए।
दुर्व्यसनों की हानियाँ दर्शाते हुए बाइबिल ने कहा है- “पियक्कड़ और चटोरे अपने भाग्य के साथ खिलवाड़ करते हैं। जो पियेगा सो चिथड़े पहनेगा और नंगा उघाड़ा मारा-मारा फिरेगा।”
यही बात बेईमानी के संबंध में भी है। वे लालच के वशीभूत होकर जिस-तिस उपाय से उचित अनुचित का विचार छोड़कर जल्दी ही सम्पन्न बनने के लिए उतारू होते हैं और कुमार्गगामिता अपनाकर अनीति पूर्वक धन कमाते हैं। कृपण लोग भी इसी प्रकार के होते हैं वे कमाते तो हैं पर जोड़ते भी हैं। उपयोगी और आवश्यक कामों में भी खर्च करने से कतराते हैं। ऐसों की कमाई भारभूत होती है और संग्रहकर्ता को सुख देने के स्थान पर उलटे ले डूबने का कारण बनती है। बाइबिल का एक सूक्त इस प्रकार है- “लोभी उतावला होकर विवेक खो बैठता है और कोई अनीति पूर्वक कमाता है तो वह नहीं सोचता की ऐसा करने पर हर दृष्टि से घाटा ही घाटा है।”
जो दुष्टता करने का साहस नहीं कर पाते वे लालच की पूर्ति के लिए दूसरों को ठगते हैं और विश्वास देकर घात करते हैं। जिस तिस बहाने उधार माँगकर फिजूल-खर्ची की ललक पूरी करते हैं। कर्ज लेकर उसे शौक-मौज अथवा प्रमाद प्रसंगों में खर्च कर डालने वाले भी इसी श्रेणी में आते हैं। दुष्ट भ्रष्ट एक ही थैली के चट्टे-बट्टे हैं। ऐसे लोग आत्म-प्रताड़ना सहते और लोक भर्त्सना से नीचे आंखें किये रहते देखे गये हैं। बाइबिल की उक्ति है-
“जो उधार लेता है उसे देने वाले के सामने दास दीन या अपराधी की तरह नीची आँख करके रहना पड़ता है।”
इन तथ्यों को समझने वाले जहां परिश्रम और मनोयोग पूर्वक उपार्जन करते हैं, जहाँ अपनी योग्यता बढ़ाकर अधिक कमाने की सामर्थ्य अर्जित करते हैं वहाँ वे इस बात का भी ध्यान रखते हैं कि खर्च में मितव्ययिता बरती जाय। जितनी आजीविका है उतनी सीमा में ही बजट बनाकर चला जाय। बेईमानी से न कमाया जाय और ठगने उधार लेने की अवांछनीयता को अपनाया जाय। नीतियुक्त और पसीना बहाकर कमाया हुआ धन ही किसी को सुख दे सकता है और भविष्य बना सकता है। इसका ध्यान रखा ही जाना चाहिए।