श्रम से सामान्यतया लोग कतराते देखे जाते हैं। वे भूल जाते हैं कि हर महान घटना को, ऐतिहासिक परिवर्तनों के तथा महामानवों की उत्पत्ति के मूल में श्रम की ही प्रधानता रही है।
राज सरकार द्वारा संचालित रेलवे लाइन के मास्को-कजान उपखण्ड में कई जगह टूट-फूट हो गयी थी। लेनिन व उनके श्रमिकों ने निश्चय किया कि अपनी साप्ताहिक छुट्टी के दिन भी वे सभी काम करेंगे ताकि राष्ट्र की हो रही हानि बचायी जा सके। इस संकल्प को लेनिन ने रूसी क्रान्ति का आधार स्तम्भ माना था। एक आतंकवादी द्वारा उन पर पिस्तौल चला देने से वे स्वयं घायल हो गए थे। पर फिर भी वे बीमार बनकर बैठे नहीं रहे। वे स्वयं काम पर आते। कंधों पर लकड़ी के लट्ठे उठा कर सुबह से शाम तक जुटे रहते। एक वर्ष तक यही क्रम चलता रहा। इसी अवधि में वे पूर्ण स्वस्थ हो गए। इस तप साधना के सहारे इस नेता ने सहज ही साम्यवादियों की श्रमशीलता का -कर्तव्य निष्ठा का- शिक्षण दिया और इसी के बलबूते वे समाज निर्माण के साम्यवादी स्वरूप को आधे विश्व में फैला सकने में सफल हुए।