सबसे अधिक कठिन होता है, अपना ही निर्माण। क्योंकि स्वयं से लड़ते रहना काम नहीं आसान॥
अपने सारे गुण-अवगुण का रहता हमको बोध। करनी होती है प्रतिफल ही निज कलुपों की शोध॥
खुद को ही खुद का देना पड़ता है प्रबल-प्रमाण। सबसे अधिक कठिन होता है, अपना ही निर्माण॥
छुपने और छुपाने जैसी बात न रहती शेष। अपना सब कुछ देखा करती, अन्तः दृष्टि विशेष।
धोखे की टट्टी को इसमें तनिक नहीं स्थान। क्योंकि स्वयं से लड़ते रहना, काम नहीं आसान॥
अपने ऊपर अपने हाथों करनी होती चोट। निर्ममता से ही निकालनी पड़ती अपनी खोट॥
अपने ही दश-मुख को मारे जाते अपने बाण। सबसे अधिक कठिन होता है अपना ही निर्माण॥
किन्तु, व्यक्ति-निर्माण, सभी निर्माण का ओधार॥ क्योंकि व्यक्ति से निमित्त होता है समाज-उत्थान॥
व्यक्ति-व्यक्ति का होकर, होता है समाज, परिवार॥ इसलिये तो आवश्यक है प्रथम व्यक्ति निर्माण॥
आओ! युग निर्माण करें हम इसी तरह प्रारम्भ॥ औरों का निर्माण करेंगे गढ़ निज जीवन स्तम्भ॥
सिन्धु-शोध का बिन्दु-शोध ही तो है बिभल-विधान॥ सबसे अधिक कठिन होता है, अपना निर्माण।
त्याग, तपस्या का जीवन जी, करें स्वयं की शोध॥ करना है तो करें स्वयं के कलुषों पर ही क्रोध॥
हुआ व्यक्ति निर्माण अगर तो होगा युग-निर्माण। किन्तु स्वयं से लड़ते रहना काम नहीं आसान॥
*समाप्त*