निद्रा और स्वप्न का मध्यवर्ती तारतम्य

March 1983

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यह सच है कि गहरी नींद में या ता स्वप्न आते ही नहीं, आते हैं तो छोटे होते हैं। निरर्थक और असंगत स्वप्न उथली नींद में आते हैं। वे उद्विग्न करने वाले और असमंजस में डालने वाले भी होते हैं। गहरी नींद का न आना इस बात का चिन्ह है कि आहार-बिहार को प्रकृति के अनुशासन में नहीं चलाया जा रहा है। अनावश्यक तनाव या दबाव के बीच रहा जा रहा है। स्वप्नों की विसंगतियों को देखकर जीवनक्रम की अस्त-व्यस्तता की जानकारी मिलती है। साथ ही चेतावनी भी प्रस्तुत होती है कि तनावयुक्त जीवन क्रम को बदलने का समय रहते प्रयत्न किया जाय। इस प्रकार स्वप्न हमें अपने सम्बन्ध की अविज्ञात एवं उपेक्षित जानकारियों को सचित्र की तरह प्रस्तुत करते हैं और सुधार के लिए परामर्श प्रोत्साहन भी प्रस्तुत करते हैं।

नींद की आवश्यकता तो मात्र आहार के समान ही समझी जानी चाहिए, थकान के बाद थोड़ा सुस्ताने से दैनिक कार्यों का ढर्रा ठीक तरह चलता है। बिना रुके लगातार काम करने वाले आरम्भ में तो कुछ अधिक काम भी कर लेते हैं किन्तु बाद में शरीर में बढ़ी हुई गर्मी कष्टकारक सिद्ध होती है। इंजन को लगातार बहुत देर नहीं चलाया जाता, उसे बीच-बीच में ठण्डा होते रहने का अवसर दिया जाता है। श्रम और विश्राम का भी ऐसा ही तारतम्य है। एक से दूसरे को राहत मिलती है। श्रम की महत्ता जिस प्रकार समझी जाती है उसी प्रकार विश्राम की भी समझी जानी चाहिए किन्तु स्मरण रहे इस बहाने कोई आलसी बनने का प्रयत्न न करने पाये। ठलुआ रहने से तो विश्राम ही विश्राम हाथ रह जाता है और थकान के कारण जो गहरी नींद आती है उस लाभ एवं आनन्द से वंचित रहना पड़ता है।

नींद न आने की व्यथा, रक्त न बनने या आहार न मिलने जैसी ही हानिकारक है उससे बचने के लिए ऐसे प्रयत्न करने चाहिए जो स्थायी समाधान कर सकें। अन्यथा लगातार नींद से वंचित रहने की स्थिति में मानसिक दक्षता धीरे-धीरे घटती चली जाती है। लम्बे समय तक वह स्थिति चलती रहे तो पागलपन जैसी स्थिति भी बन सकती है। नाजी यंत्रणा गृहों में कैदियों को सोने नहीं दिया जाता था फलतः वे अर्ध विक्षिप्त की स्थिति में पहुँचकर कुछ समय में ही अकाल मृत्यु के ग्रास बनते थे।

हर व्यक्ति जिन्दगी का प्रायः एक तिहाई भाग नींद में गुजरता है। देखने में यह व्यर्थ गया प्रतीत होता है पर बात ऐसी है नहीं। यह अवधि थकान उतारने और नई क्षमता अर्जित करने की दृष्टि से नितान्त आवश्यक है। रात्रि न हो और सदा दिन ही बना रहे तो कोई अदूरदर्शी ही यह अनुमान लगा सकता है कि इससे दूना काम एवं उपार्जन होने लगेगा। सच तो यह है कि ऐसी स्थिति में काम करने वाली मशीन कुछ ही समय में इतनी गरम और अशक्त हो जायगी कि उसके लिए अपने मस्तिष्क की रेखा तक सम्भव न रहेगी। नींद के सम्बन्ध में भी यही बात है उसमें कटौती करना या होना सौभाग्य का नहीं दुर्भाग्य का ही चिन्ह है।

निद्रा विशेषज्ञ डॉ. माइकेल जुवेट का कथन है कि निद्रा को मनःसंस्थान की विद्युत प्रक्रिया के साथ सम्बन्ध जोड़े रहने की बात भूल है। उसमें शरीरगत रसायनों की भी बड़ा योगदान रहता है। यदि आहार गले और साँस के द्वारा मिलने वाले रसायनों को शारीरिक आवश्कताओं के अनुरूप होने की बात न बनी तो अन्य विकृतियाँ उत्पन्न होने के साथ-साथ नींद में भी विक्षेप पड़ेगा। अधूरी नींद में जो स्वप्नों की भरमार रहती है उससे उपयुक्त विश्राम मिलने में विघ्न खड़ा होता रहेगा। उनसे पेट साफ रखने की तथा सुपाच्य आहार पद्धति अपनाने की व्यवस्था बनाने की सलाह भी अनिद्राग्रस्तों तथा डरावने स्वप्न देखने वालों को दी है।

निद्रा लाने वाली औषधियों का उपयोग इन दिनों संसार भर में आश्चर्यजनक गति से बढ़ रहा है। अकेले अमेरिका से अब हर रोज प्रायः बीस लाख डालर की निद्रा औषधियां सेवन की जाती हैं। इसमें से अधिकांश ‘वाविचुरेट’ नामक रसायन से बनती हैं। इसी श्रेणी में प्रोमाइड, क्लोरल हाइडेट, पैरिल्डिहाइड, फिनोबार्बीटोन जैसे रसायन भी आते हैं। प्रकारान्तर से इन्हीं को उलट-पुलट कर निद्रा औषधियां बनती हैं। इनका आरम्भ के दिनों में तो अभीष्ट प्रभाव होता है पर धीरे-धीरे शरीर उनका अभ्यस्त हो जाता है तो असर भी घटने लगता है ऐसी दशा में मात्रा बढ़ानी पड़ती है इतने पर भी असर कम होते चलने की कठिनाई बढ़ती ही जाती है।

मनोरोग विशेषज्ञों ने स्वप्नों की कल्पना स्वप्न, निद्रा स्वप्न और दृश्य स्वप्नों में विभाजित किया है। कल्पना स्वप्न वे जिन्हें व्यक्ति अपने निजी निर्धारण में गढ़ता है और चिन्तन में इस प्रकार संजोये रहता है मानो वे वास्तविक हैं। प्रेमी-प्रेमिकाओं ने एक दूसरे की भावना का चित्रण अपनी-अपनी कल्पना के आधार पर करते हैं। इसी प्रकार मित्रता, शत्रुता की थी, सम्भावना, आशंका आदि के सम्बन्ध में भी ऐसे ही सर्जनाएं कर लेता है जो वास्तविक जैसी लगती है और मस्तिष्क पर छाई रहती हैं और तद्नुसार काम करने की प्रेरणा देती है।

निद्रा स्वप्न जो सोते समय रात को दीखते हैं। उसमें से अधिकाँश विस्मृत होते रहते हैं। याद तो उनमें से थोड़े से ही रहते हैं सो भी आधे अधूरे रूप में।

जिस प्रकार प्रत्यक्ष जीवन से सुखद घटनाक्रमों परिस्थितियों के मध्य रहने पर प्रसन्नता अनुभव होती है उसी प्रकार स्वप्नों में दृष्टिगोचर होने वाली अनुकूलताएं भी प्रोत्साहन प्रदान करतीं और मनोबल बढ़ाती है। जागृत स्थिति में कलह, शोक, अपमान, हानि सफलता आदि के कारण चित्त खिन्न होता है। उसी प्रकार अशुभ स्वप्न भी सामर्थ्य का क्षरण करते हैं।

स्वप्न देखना यदि अनिवार्य है तो हर कोई उन्हें सुखद स्तर के देखना पसन्द करेगा। पर क्या यह अपने हाथ की बात है? उसका उत्तर ‘हां’ में दिया जा सकता है। स्वस्थता के नियमों का पालन करने पर गहरी और मीठी नींद आने में सन्देह नहीं। पेट हलका रखा जाय और थकाने वाला शारीरिक श्रम करते रहा जाय तो गहरी नींद आयेगी।

परिस्थितियों को अनुकूल बना सकना अपने हाथ की बात नहीं है। पर मन अपना है उसे एक तरह सोचने की अपेक्षा दूसरी तरह सोचने का अभ्यास कराया जा सकता है। इसी प्रकार शरीर चर्या की अवाँछनीय आदतों से मुक्त करके नये सिरे से इस प्रकार निर्धारित किया जा सकता है जिससे रुग्णता को न्यौत बुलाने के कारण आये दिन खड़े रहने वाले स्वास्थ्य संकट का सामना न करना पड़े। इस प्रकार का सरल सौम्य जीवन क्रम जिन बुद्धिमानों ने अपनाया है, उन्हें तत्काल गहरी निद्रा का वरदान मिलता है। उस कारण वे न केवल थकान मिटाने, अभिनव स्फूर्ति पाने में सफल होते हैं वरन् सुखद स्वप्नों का उत्साहवर्धक चलचित्र भी बिना टिकट खरीदे देखते रहते हैं और दुहरे आनन्द का लाभ लेते हैं।

स्वप्नों को परिस्थितियों का सांकेतिक चित्रण ही नहीं समझा जाना चाहिए उनमें कई महत्वपूर्ण समाधान भी रहते हैं। इसी प्रकार यदि थोड़ी समझदारी से काम लिया जाय तो इस आधार पर हम अपने लिए आवश्यक उपचार भी उपलब्ध कर सकते हैं। वे हमारे लिए चिकित्सक या परामर्शदाता की भूमिका भी निभा सकते हैं। स्वप्नों से न खिन्न होने की आवश्यकता है और न उन्हें असमंजस का निमित्त कारण बनाने की। यह मानकर चला जा सकता है कि वे स्वाभाविक और हानि रहित होते हैं। उनका अर्थ समझा जा सके तो बहुत उपयोगी भी हो सकते हैं। मार्गदर्शक एवं सहयोगी भी सिद्ध हो सकते हैं।

मनो विज्ञान सी. जी. जुंग ने एक विशेष सिद्धांत प्रतिपादित किया है। उसका नाम उन्होंने दिया है- ‘यूनिवर्सल पैटर्न आव कलेक्टिव अनकान्शस।’ इसमें वे स्वप्नों की व्याख्या विवेचना करते हुए कहते हैं कि इच्छानुसार स्वप्न देख सकना तो किसी के बस की बात नहीं, पर यदि बारीकी से इनमें रहने वाले संकेतों और संदेशों को समझा जा सके तो एक उच्चस्तरीय परामर्श दाता के सहयोग जैसा लाभ मिल सकता है।

फ्रायड पर एक सनक सवार रही कि वे मनुष्य की हर महत्वपूर्ण गतिविधि की संगति ‘सेक्स’ के साथ जोड़ते थे। फलतः उन्होंने स्वप्नों में भी यौन आकाँक्षा की अतृप्ति को जिस-तिस माध्यम से प्रकट होने की संगति बिठाई है। किसी भी स्थिति में यह नहीं कहा जा सकता है कि समूचा स्वप्न तो इसी धुरी पर परिभ्रमण करता है।

स्वप्न याद रहें या ना रहें पर आते सभी को हैं। कोई व्यक्ति अपवाद रूप में ही ऐसा हो सकता है। जिसे स्वप्न आते ही न हों उनसे छोटे या बड़े- स्पष्ट या धुंधले होना अलग बात है किन्तु यह सम्भव नहीं कि कोई व्यक्ति उन्हें देखे ही नहीं। मनुष्य तो क्या जानवर तक स्वप्न देखते हैं यह निद्रित स्थिति में उनकी बदलती हुई मुखाकृति को देखकर सहज ही जाना जा सकता है कि वे कोई दृश्य देख रहे हैं और उनकी प्रभाव प्रतिक्रिया व्यक्त कर रहे हैं। नवजात शिशुओं तक को सोते-सोते हँसते मुस्कराते, डरते और अप्रसन्नता व्यक्त करते देखा जा सकता है। कोन किस स्तर के स्वप्न देख सकता है इसका उत्तर उसकी जानकारियों इच्छाओं तथा समस्याओं के साथ जोड़कर ही खोजा पाया जा सकता है।

जिस प्रकार दिनमान को चार प्रहरों में बांटा जाता है उसी प्रकार रात्रि के भी चार खण्ड हैं। यह नवभाजन स्वप्न प्रक्रिया के सम्बन्ध में और भी सही बैठता है। औसत निद्रा अवधि छह घण्टे की होती है। इसमें एक-एक घण्टे के चार स्वप्न उभार आते हैं। एक उभार उठता चढ़ता और ठण्डा होता है। इसके उपरान्त कुछ समय विश्राम जैसी स्थिति आती है। तदुपरान्त फिर वह पिछले वाला दौर चल पड़ता है। दूध में जिस प्रकार एक के बाद दूसरा उफान आता है वैसा ही स्वप्नों के सम्बन्ध में भी होता है। सामान्यतया ऐसे चार दौर आते हैं पर यह अनिवार्य नहीं। ऐसा भी हो सकता है कि वे कम या अधिक सोपानों में अपना दौर पूरा करें। एक घंटे से न्यून या अधिक भी हों। इस सम्बन्ध में कुछ न कुछ अन्तर हर व्यक्ति के मध्य पाया जाता है। स्वप्नों की अवधि या प्रक्रिया सभी की एक जैसी नहीं होती।

सामान्यतया स्वप्नों से किसी को भी परेशान नहीं होना चाहिए। यह अचेतन मन द्वारा अपने दबावों को हलका करने के लिए किया गया एक क्रीडा विनोद है। अपने बनाये चित्र खिलौने से वह स्वयं खेलता है और थकान को दूर करने का अपना रास्ता निकाल लेता है।

इसके अतिरिक्त उनकी उपयोगिता इस दृष्टि से समझी जा सकती है कि वे शारीरिक मानसिक प्रस्तुत परिस्थितियों की सांकेतिक भाषा में जानकारी देते हैं। उस पर्यवेक्षण के आधार पर अपनी त्रुटियों को सुधारा जा सकता है। कहना न होगा कि अनुपयुक्तताओं का सुधार करके ही प्रगति पथ पर बढ़ सकना सम्भव होता है। इस दृष्टि से स्वप्नों का लाभ भी है और उपयोग भी।


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