अगली पीढ़ी समझदारों की होगी

March 1983

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लन्दन के दीर्घायुषी अनुसंधान केन्द्र तथा कैलीफोर्निया की दीर्घजीवन अनुसंधानी संस्था के निदेशक नाथान प्रिटिकिन ने अपनी खोजों के आधार पर दो पुस्तकें प्रकाशित की हैं एक “लिव लाँगर नाऊ” दूसरी “दि प्रिटिकिन प्रोग्राम फॉर डाइट एण्ड एक्साइज”। इन ग्रंथों में उनने इस बात पर विश्वास किया है कि मनुष्य की समझदारी वापस लौटेगी। वह स्वास्थ्य का महत्व समझेगा और उन आदतों को छोड़ देगा जिनके कारण उसे दुर्बलता, रुग्णता, असमय की वृद्धता और अकाल मृत्यु का शिकार बनना पड़ रहा है। बुरी आदतें मजेदारी के लिए अपनाई जाती हैं किन्तु आदमी इतना नासमझ सदा नहीं बना रह सकता है कि मजेदारी के लिए अपनी स्थिरता और सत्ता को ही गँवा बैठे। वे विश्वास करते हैं कि समझदारी का जमाना वापस लौटने में अब देर नहीं है। यह कार्य करारी ठोकरें और भी जल्दी करने के लिए मजबूर करेंगी।

प्रिटिकिन ने इक्कीसवीं सदी का सुनहरा चित्र खींचा है और कल्पना की है कि आदमी अब की अपेक्षा भोजन की मात्रा आधी कर देगा। माँसाहार छोड़कर शाक-भाजी मात्र पर निर्वाह करेगा। फलतः खाद्य संकट की समस्या सहज ही हल हो जायगी और जितनी खाद्य सामग्री इन दिनों खपती है। उतने में ही वर्तमान जनसंख्या दूनी हो आने पर भी आहार सम्बन्धी कोई संकट खड़ा न होगा

वे कहते हैं, तब बच्चों की तुलना में वृद्धों की समस्या सामने होगी। समझदार लोग कम बच्चे पैदा करेंगे किन्तु दीर्घ जीवी होने पर उन्हें अनेक वर्ष वयोवृद्ध स्थिति में गुजारने पड़ेंगे इसलिए उन दिनों बाल कल्याण केन्द्र- वृद्धों की सुविधा जुटाने का काम करेंगे।

इन दिनों आदमी की मजेदारी- नशेबाजी और काम-क्रीडा के इर्द-गिर्द केन्द्रित दीखती है। अगली शताब्दी में इनकी हानियों को भली प्रकार समझ लिया जायेगा। तब लोग संगीत और कला की ओर मुड़ेंगे तथा खेल-कूदो में रुचि लेंगे। आहार औषधि कि तरह लिया जायगा। कपड़ों की डिजाइनें और भोजनों की स्वाद भिन्नताएँ जितनी अब दीखती हैं उनका सफाया हो जायेगा। लोग संग्रह की बात नहीं सोचेंगे वरन् काम-चलाऊ साधनों पर ही सन्तोष करेंगे। इतना परिवर्तन होने से आदमी का खर्च चौथाई रह जायगा और जिन लोगों को इन दिनों अहिर्निशि फँसा रहना पड़ता है उनमें से किसी का भी महत्व न रह जायगा। उन दिनों ‘सन्तोषी सर्वदा सुखी’ की कहावत चरितार्थ होगी।

डॉ. थामस के अनुसार प्रदूषण के कारण बिगड़े हुए वातावरण का दबाव अनेक प्राणी सहन न कर सकेंगे और उनकी जातियां इस धरती पर से उसी प्रकार लुप्त हो जायेंगी जैसे भूतकाल के महागज और महा सरीसृप (डायनासोर्स) परिस्थितियों के साथ तालमेल न बिठा पान के कारण अपना अस्तित्व खो चुके। इसी संदर्भ में वातावरण विशेषज्ञ ‘बाल्डर’ का कहना है कि अगले दिनों आदमी समेत अन्य प्राणियों का समुदाय जहरीला हो जायगा। ऐसी दशा में उसकी आकृति और प्रकृति में भी परिवर्तन होगा। फिर भी आदमी अब इतना समझदार हो गया कि अपनी सत्ता किसी रूप में बनाये रहेगा और परिस्थितियों के साथ तालमेल बिठाने की बात इसी प्रकार खोज लेगा जैसा कि उसने विगत सहस्राब्दियों में अपने को बदला है।

आशा करनी चाहिए कि इन सभी वैज्ञानिकों के कथन मिथ्या नहीं हैं। वार्धक्य एक समस्या नहीं है यदि वह स्वस्थ-समर्थ काया एवं प्रफुल्लता से भरी मनःस्थिति वालों का हो। आज की तुलना में कल अधिक शानदार है। आहार-बिहार के नियमानुशासनों पर इस दशक में जिस प्रकार चिन्तन चल पड़ा है, उससे यही विश्वास दृढ़ होता चला जाता है।


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