चीनी कभी घुलकर भी अपना अस्तित्व नहीं खोती, और जल घुलाकर अस्तित्व नहीं बनाए रख पाता। वस्तुतः जिसमें घुलने की क्षमता है, वही अपने को बृहद् रूप में अभिव्यक्त कर पाता है। यदि हम विवेक सम्मत ढंग से समर्पित होना- घुलना सीख लें तो मान लेना चाहिए कि हमारी तौल बढ़ गयी। ऐसे में हमारा उद्देश्य सदैव सच्चा हो, समर्पण को भुनाने की कभी कोई कामना न हो।