चिकित्सा के लिए जड़ी बूटियों की ओर लौटें

March 1983

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मनुष्य का प्रमुख आधार वनस्पति है। इसलिए उसकी कार्य संरचना में वे ही पदार्थ पाये जाते हैं जो वनस्पतियों में हैं। यह प्रकृति का एक अद्भुत चमत्कार है, जिसे आँख खोलकर चारों ओर देखा जा सकता है। स्वास्थ्य विपर्यय में इन पदार्थ घटकों की ही न्यूनाधिक मात्रा में घट बढ़ होती रहती है, जो बीमारी के रूप में दृष्टिगोचर होती है। इसका निराकरण करने के लिये यदि अमुक विशेषता वाली वनस्पतियों का सहारा लिया जाना है तो उसे उचित उपयुक्त ही कहा जायेगा।

पुरातन काल की चिकित्सा प्रणाली वनस्पति प्रधान है। चरक संहिता में उसी की प्रधानता है। संसार के इतिहास में सर्वत्र उपचार पद्धति में यही विनियोग काम आता रहता है। अब धीर-धीरे आधुनिक चिकित्सा पद्धति के प्रतिपादक भी इसी दिशा में सोचने लगे हैं।

पिछली शताब्दियों में विज्ञानवादी घुड़दौड़ ने चिकित्सा पद्धति को भी प्रभावित किया है और खनिजों क्षारों, रसायनों, मद्यों, विषों को जिस-तिस प्रकार तोड़ मरोड़कर औषधि रूप में प्रयुक्त करने का प्रचलन बढ़ा है। तात्कालिक उत्तेजना की दृष्टि से कभी-कभी चमत्कारी प्रभाव भी इनका होता रहा है पर नशा पीने से जैसे वे आदत में सम्मिलित हो जाते हैं और न पीने पर शिथिलता-व्याकुलता उत्पन्न करते हैं उसी प्रकार इन उत्तेजक औषधियों का परिणाम भी देखा गया है। क्षणिक लाभ पहुँचाने की दृष्टि से जिनने प्रलोभन वश इन्हें अपनाया, वे दूसरी प्रकार की व्याधियों में फस गये और सोचा गया लाभ अन्ततः घाटे के रूप में दृष्टिगोचर होता रहा। ऐलोपैथिक दवायें औषधीय पौधों के सक्रिय संघटकों के शुद्ध अणुओं से बनाई तो गयी पर उनकी प्रतिक्रिया दुष्परिणाम उत्पन्न करने वाली ही रही।

अब चिकित्सा शास्त्रियों का ध्यान नये सिरे से जड़ी बूटी उपचार की ओर मुड़ा है। वे सस्ती भी हैं और सरलतापूर्वक उपलब्ध होने वाली भी। फिर उनमें वे तत्व भी हैं जो मनुष्य शरीर में पच और खप जाते हैं। कृत्रिम औषधियों में यह विशेषता नहीं होती। विटामिन ‘बी कम्पलेक्स’ की गोलियाँ पीले पेशाब के रूप में बाहर निकल जाती हैं, शरीर में उसका न्यूनतम अंश ही रुक पाता है। कैल्शियम के इन्जेक्शन हड्डियों में प्रवेश करने और उन्हें मजबूत बनाने का उद्देश्य पूरा नहीं कर पाते पर अस्थियों पर परत की तरह वह चूना जम जाता है।

इस दृष्टि से वनस्पतियाँ अपने प्राकृतिक रूप में सर्वोत्तम हैं। उनमें अन्यान्य गुणों के साथ पचने और रक्त में घुलने की भी विशेषता है। अस्तु चिकित्सा में उनका अवलम्बन लेना ही बुद्धिमता है।

भारत सहित विश्व के अन्यान्य महत्वपूर्ण देशों ने इस सम्बन्ध में जो अनुसंधान किये हैं, उनसे नये परिणाम प्रकाश में आये हैं। भारत में पाई जाने वाली पीला कनेर, सर्पगंधा, गुग्गुल, विड़ंग, कुमारी, जटामांसी, हल्दी जैसी औषधियों में से ऐसे गुण पाये गये हैं जिससे उन्हें चिकित्सा क्षेत्र में बहुत ऊँचा सम्मान मिल सके।

पीली कनेर हृदय रोगों में सर्पगंधा- मस्तिष्कीय रोगों व उच्च रक्त चाप में रामबाण पाई गयी है। सदाबहार में ( विन्कारोजिया व अल्बा) में कैंसर दूर करने की क्षमता है। दमे में लाल प्याज तथा मधुमेह व गठिये में लहसुन का चमत्कारी प्रभाव देखा गया है। रूस में इसे पेनीसिलिन के समतुल्य माना जा रहा है। विड़ंग में सन्तति निग्रह के गुण पाये गये हैं।

दिल्ली के नेशनल ऐलर्जी सेण्टर, बल्लभ भाई पटेल चेस्ट इन्स्टीट्यूट, आल इण्डिया इन्स्टीट्यूट आफ मेडिकल साइन्सेज, पंजाब विश्व विद्यालय, महाराष्ट्र राष्ट्रीय रसायन प्रयोगशाला, जामनगर आयुर्वेद विद्यालय, जम्मू की क्षेत्रीय अनुसंधानशाला (आर. आर. एल.) जैसे भारत स्थित शोध संस्थानों ने जड़ी बूटियों पर जो नवीनतम शोधें की हैं उनसे यह आशा बंधती है कि भारत जैसे निर्धन देशों में चिकित्सा प्रयोजन के लिये जड़ी बूटियों का उपयोग अधिक कारगर सिद्ध होगा।


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