एक महीने के कल्प साधना सत्र जिस आश्चर्यजनक सफलता के साथ सम्पन्न हो रहे हैं उनमें ने केवल सम्मिलित होने वाले साधकों को आशातीत सन्तोष मिला है वरन् दर्शकों को भी चकित कर दिया हैं अमृताशन के आहार से पुराने कब्ज दूर हुए हैं। जिसके पेट सदा भारी रहते थे, सड़ी वायु नीचे ऊपर चलती रहती थी और धड़कन बढ़ा देने तथा सिर दर्द जैसे उपद्रव खड़े करती थी, उनका समाधान हो गया। इस आहार-उपचार से सभी को विश्वास हुआ है कि पाचक-रेचक औषधियाँ खाते रहने की अपेखा यह कहीं अधिक अच्छा है कि आहार पर संयम बरता जाय और जीभ प अंकुश रखा जाय। यह अब सैद्धान्तिक रुप् में तो अनेक वार सुना जाता रहा है, पर व्यवहार में वैसा कभ्ज्ञी वन ही नहीं पड़ा। कल्प साधना सत्र में यह अनुशासन सहज ही निभ गया। जिनने इसका लाभ देख लिया है वे अब उसे सदा अपनाते ही रहेंगे और दस वर्ष अधिक जियेंगे, ऐसी आशा की गई हैं। कल्प-सत्रों की अद्वितीय विशेषता यह है कि यहाँ हर शिक्षार्थी को शारीरिक और मानसिक जाँच-पड़ताल उच्च शिक्षित एम.डी., एम.एस. स्तर के डॉक्टरों द्वारा बारीकी से की जाती है। प्रत्येक अंग अवयव का परीक्षण करके यह जाना जात है कि शिक्षार्थी में न्यूनता एवं रुग्णता के बीजाँकुर कहाँ हैं? इसी आधार पर जड़ीबूटी कल्प का प्रबन्ध होता है। ब्राह्मी, अश्वगंधा, शंख पुष्पी, शतावरि, आँवला, वच, तुलसी आदि औषधियों में से जिसके लिए जो निर्धारिण होता है उसे उसी का सेवन नित्य प्रति प्रातःकाल सर्व प्रथम कराया जाता है।
वातावरण का प्रभाव कैसा होता है उसे इस गायत्री तीर्थ के आध्यात्मिक सेनेटोरियम में साधना के साथ-साथ भली प्रकार संपर्क में आने वालों को अनुप्राणित करती है। उच्चस्तरीय विचार-विनिमय और परामर्श मार्ग-दर्शन से किस प्रकार भ्रान्तियों से उबरने और श्रेय पथ पर चल पड़ने की प्रेरणा मिलती है, इस तथ्य को भी यहाँ रहकर भली प्रकार अनुभव किया जा सकता है। अनुदान, वरदान, आशीर्वाद किसे कहते हैं और वे किस आधार पर कितनी मात्रा में किसे कहते हैं और वे किस आधार पर कितनी मात्रा में किसे मिलते हैं। इसका तत्व-दर्शन यहाँ पहुँचने पर जिस प्रकार समझने को मिलता है उससे नया प्रकाश मिलता है। नये सिरे से सोचने और नया आधार प्राप्त करने का द्वार खुलता है। लोग अधिकतर यही अनुभव प्रकट करते हुए पाये गये कि इस दरवाजे पर से कोई खाली हाथ नहीं जाता।
घर जाने के उपरान्त किसकी क्या परिवर्तित रीति-नीति, दिशाधारा और दिनचर्या, कार्यपद्धति और विधिव्यवस्था होगी। इसका बहुत कुछ निर्धारण यहीं हो जाता है। देखा गया है कि यहाँ किये गये निश्चय, संकल्प वान होने या घर जाने पर भी टूटे नहीं, यथावत् निभे हैं। घर लौटने के उपरान्त सत्र शिक्षार्थियों ने अपने जो अनुभव लिखे है उन सबमें एक ही ध्वनि निकलती है कि जो भी इन सत्रों में आया उपलब्धियों के लिए अपने भाग्य को सराहता रहा। उनके परिवार एवं सम्बन्धियों का भी यही मत सुनने को मिला है कि एक महीने का समय लगने के बदले जो परिवर्तन देखने को मिला उसे कोड़ी के भाव हीरा खरीदने जैसा सुयोग ही माना जा सकता है।
भेले-बुरे अनुभवों की चर्चा सर्वत्र होती है। लम्बे समय बाद कोई लौटता है तो सहज ही उसके प्रवास का विवरण पूछने की सभी मित्र संबंधियों की इच्छा होती है। उत्सुकों को जो सुनने को मिला है वह ऐसा है कि हर किसी का मन इस सुयोग सौभाग्य से लाभ उठाने का होता है। यही कारण है कि अब इन सत्रों में सम्मिलित होने का आग्रह करने वाले आवेदनकर्त्ताओं की संख्या अप्रत्याशित रूप से बढ़ गई है।
स्थान कम, व्यवस्था सीमित, शिक्षकों, परीक्षकों पर दबाव आदि कारणों से कल्प साधकों की संख्या पूर्व निर्धारण से अधिक बढ़ा देने की अब कोई गुँजाइश नहीं है किन्तु किया क्या जाय? इसी संदर्भ में एक और नई समस्या यह उठी कि बहुत से लोग सचमुच ही इस स्थिति में हैं कि वे एक महीने का समय बाहर रहने के लिए निकाले जो उत्तरदायित्वों के कारण उनका व्यवसाय ही चौपट हो जाय। विवशता में कोई मार्ग न देखकर वे कितने हैरान होते हैं। इस व्यथा का हल्का सा आभास उनके पत्रों को पढ़कर ही जाना जा सकता है।
इस समूचे धर्म संकट पर गम्भीरतापूर्वक विचार करने के उपरान्त नया मार्ग यह खोजा गया है कि व्यस्त लोगों के लिए कल्प-साधना सत्र का एक दस दिवसीय ‘मिनी कल्प साधना सत्र’ भी साथ-साथ चलाया जाय। जिसमें साधना तो वे ही सब हो, उपक्रम तो ठीक वैसा ही चले और अन्तर इतना ही रखा जाय कि एक महीने के स्थान पर उसे सिकोड़कर दस दिन का कर दिया जाय। इस प्रकार न कुछ से कुछ अच्छा वाला साधन तो सच ही जायेगा।’ अधिक लोगों का अधिक समाधान सन्तोष बन पड़ने और सुयोग का लाभ कम समय में अधिक लोगों द्वारा उठाये जाने का अवसर मिलने की बात को ध्याम में रखते हुए यह नया निर्धारण भी अपने स्थान पर उपयुक्त ही समझा गया है और उसका भुभारम्भ वसन्त पर्व से आरम्भ कर दिया गया है। जब पूर्ववत् हर महने 1 से 29 तक एक मास के कल्प साधना सत्र तो चलेंगे ही। साथ-साथ (1) 1 से 10, (2) 11 से 20 (3) 21 से 30 तक के दस दिवसीय सत्र भी आरम्भ कर दिये गये हैं। साधना नौ दिन की, हरिद्वार कनखल, ऋषीकेश, लक्ष्मण झूला, तीर्थों का परिभ्रमण एक दिन का। इस प्रकार यह सत्र रहेगा तो दस दिन के ही पर साधना नौ दिन करने से काम चल जायेगा। जिन्हें दोनों में से जिस सत्र में स्थान प्राप्त करना हो वे समय रहते अपनी सुविधा वाले सत्र में आवेदन पत्र भेजकर स्थान सुरक्षित करालें।