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February 1983

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योगस्य प्रथमं द्वारं वांग् निरोधोऽपरिग्रहः। निराशा च निरीहा च नित्यमेकान्तशीलता।।

योग-साधना में प्रवृत्त लोगों के लिए प्राथमिक स्तर पर वाणी पर संयम, धन का अनावश्यक संग्रह न करना, भौतिक साधनों की (आर्थिक मात्रा में) आशा छोड़ना, कामनाओं का त्याग करना और नित्य एकान्त में रहना- अपेक्षित होता है।


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