प्रेतात्माओं का स्वरूप एवं स्वभाव समझने में हर्ज नहीं

February 1983

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प्रचलित अन्धविश्वासों में एक ‘भूतों की भयानकता’ भी है। पिछड़े क्षेत्रों में पिछड़े समुदायों में तनिक भी असाधारण प्रतीत होने वाली घटना के साथ भूतों का भी सम्बन्ध जुड़ जाता है। चेचक, बुखार, खाँसी, सिर दर्द, मासिक धर्म की गड़बड़ी, गर्भपात के बाद संक्रमण आदि कोई भी रोग क्यों न हो, उसके पीछे भूत नाचते दीखते हैं और सियाने दिवानों की झाड़ फूँक चल पड़ती है। बच्चों को दस्त लगना, पसली चलना, किसी की नजर लगने का कारण ठहराया जाता है। मानसिक दुर्बलता कई बार उग्रता के स्तर तक चली जाती है तो चित्र, विचित्र प्रकार के उन्मादी, लम्पट प्रकट होने लगते हैं, उसकी मानसिक चिकित्सा कराने के स्थान पर भूतों का आक्रमण ठहराया जाता है और मेंहदीपुर के वालावीर से लेकर न जाने कहाँ-कहाँ पहुँचा जाता है।

यह भूतवाद मूर्खों और धूर्तों के संयोग से चला है। अन्यान्य अन्धविश्वासों की तरह उसकी परिणति भी हर दृष्टि से हानि उत्पन्न करने के रूप में ही होती है। काम चोर तबियत के स्त्री, बच्चे इन कल्पनाओं और प्रतिवादनों से भयभीत, स्व सम्मोहित होकर ऐसे आचरण करने लगते हैं, मानो उन्हें सचमुच ही भूतों का सामना करना पड़ रहा हो। देवी का आवेश आने के नाम पर असंख्यों को भ्रमित किया जाता है एवं लाखों की सम्पत्ति ऐसे धूर्त कमाते देखे जाते हैं। यह पिछड़ेपन की निशानी है। जो भारत के पिछड़े क्षेत्रों में इस बुद्धिवाद के युग में भी अपनी जड़ें गहरायी तक जमाये बैठी है।

एक और जहाँ इस अन्धविश्वास और भ्रम जंजाल का उन्मूलन करने की आवश्यकता है वहाँ दूसरी और मरणोत्तर जीवन में पुनर्जन्म से पूर्व की मध्यवर्ती स्थिति से आत्मा के स्वरूप एवं कार्यक्रम को खोजने, समझने की भी आवश्यकता है। जब शरीर धारियों की परिस्थितियों और समस्याओं को समझने में इतना प्रयत्न किया जाता है, तो उन अदृश्य मनुष्येत्तर प्राणियों की क्यों उपेक्षा की जाय जो कल, परसों हमारी ही तरह पूर्ण समक्ष और दृश्यमान थे। मरना सभी को है। अपनी बारी भी देर सवेर में आनी ही है। जिस क्षेत्र में प्रवेश करना अवश्यंभावी है, उसका पूर्व परिचय प्राप्त करने से सुविधा ही रहेगी। फिर जो इन दिनों अदृश्य है उनमें से कई महत्वपूर्ण भी हैं। कई स्नेही सम्बन्धी भी हैं। कइयों में विलक्षण सामर्थ्य भी है। उनके साथ सहयोग एवं ताल-मेल का सूत्र बिठाया जा सके तो निश्चय ही अपनी शक्ति सामर्थ्य एवं कार्यक्षमता के विस्तार में भारी सुविधा होती है।

प्रेतात्माओं का अस्तित्व, लोक एवं कार्य विधान यदि समझा जा सके तो प्रतीत होगा कि दृश्य होने पर भी दृश्यमान मनुष्यों में भी अपनी सजातियों में भारी दिलचस्पी रखते हैं। इसलिए अपनी ओर से भी सम्बन्ध साधने का प्रयत्न करते हैं। यह प्रक्रिया अटपटी हो जाने के कारण लोग डरने लगते हैं और उस सूत्र को तोड़ने का प्रयत्न करते हैं जो वस्तुतः किसी अहित के लिए नहीं जुड़ रहा था, वरन् उससे कुछ न कुछ हित ही होने जा रहा था। उदारमना मित्र, परिचितों, स्नेही सहयोगियों की तरह अशरीरी आत्माएँ हमारे जीवन से रस लेने लगें, सहयोगी आदान प्रदान से सन्तुष्ट रह सकें तो उपयोगी सहायता भी कर सकती हैं।

सहायता मिले या न मिले- प्रेतात्माओं के साथ दिलचस्पी रखने में इतना तो हो ही सकता है कि उनमें से जो विक्षुब्ध स्थिति में हैं उनका सन्तोष सम्मान कर सकें। छेड़खानी किये जाने पर, उत्पन्न होने वाले उनके रोष, आक्रोश से बच सकें। इस संदर्भ में प्रेत संसार से सम्बन्धित कुछ घटनाओं के आधार पर उपयोगी जानकारी मिलती है। इन्हें ध्यानपूर्वक समझने की पर्यवेक्षण दृष्टि तो बनाये ही रहना चाहिए।

थियॉसाफी आन्दोलन की जन्मदात्री मैडम ब्लैवट्स्की ने एक बार भाई को एक हलकी-सी मेज उठाकर लाने को कहा। वह ले आया। मैडम ने उसे दुबारा उठाने को कहा लेकिन इस बार वह पूरा जोर लगाने पर भी नहीं उठ सकी। घर के सभी लोगों ने सम्मिलित रूप से भी उठाने की कोशिश की फिर भी सफलता नहीं मिली। तब मैडम ने उस मेज पर सवार प्रेतों को वहाँ से हट जाने को कहा जिससे मेज पुनः पूर्ववत् हल्की हो गई। रहस्योद्घाटन करते हुए मैडम ब्लैवट्स्की ने बताया कि उनके पास अदृश्य सहायक सात प्रेतों की एक पूरी मण्डली है जो समय-समय पर उन्हें उपयोगी परामर्श देते और मुक्त हस्त से उनकी सहायता किया करते हैं। अदृश्य सहायकों के अस्तित्व पर थियॉसाफिस्ट अपनी संस्थापिका मैडम ब्लैवट्स्की के मत से अत्यधिक प्रभावित होने के कारण दृढ़ विश्वास रखते हैं। उनके ग्रन्थों में इनका वर्णन मिलता है।

घटना सन् 1968 की है। रोजेनहीन (प. जर्मनी) के एक लब्ध प्रतिष्ठ वकील ने अपने अनुभव दर्ज करते हुए आश्चर्यजनक विवरण दिये हैं। उनके टेलीफोन की घंटी बार-बार बजती वकील साहब चोंगा उठाकर कान से लगाते किन्तु दूसरी ओर से किसी के बोलने की आवाज न सुनाई देती। वे ऐसा करते-करते थक गये। झल्लाकर टेलीफोन के मोनीटर को इस शरारत की जाँच करने के लिए रिपोर्ट लिखा दी गई। किन्तु अब बिजली के बल्ब का नम्बर था कभी तेज कभी धीमा। कभी ट्यूबलाइट जलती बुझती तथा एक दो बार तेज रोशनी कर फूट भी गई। हार कर बिजली विभाग में रिपोर्ट लिखा दी गई। सारे सर्किटों की छान-बीन की गई किन्तु कहीं गड़बड़ी न मिली। टेलीफोन विभाग ने भी उत्तर में यही कहा कि क्षमा करें! पूरी जाँच कर ली गई है किन्तु हमें शरारत का कोई सुराग हाथ नहीं लगा है। इसके उपरान्त 8 या 9 महीने बाद यह सारी घटनाएँ ब्यौरे वार प्रो. हाँस वेण्डर (अध्यक्ष ‘फ्री वर्ग इन्स्टीट्यूट ऑफ पैरा साइकोलॉजी’) को बताई गईं तो उन्होंने बारीकी से जाँच करके बताया कि यह मामला पदार्थ संचालन (साइको-काइनेसिस) का है। कुछ सूक्ष्म शक्तियाँ भी भौतिक पदार्थों पर नियन्त्रण कर सकने की क्षमता का आभास देती रहती हैं और यही वह अवस्था है जो भूत-प्रेत के रूप में परिचय देती रहती हैं।

जापान में उन दिनों सामन्तशाही का समय था। प्रजा के लिए यह सम्भव नहीं था कि वह अपने कष्ट क्लेशों और जागीरदारों के जुल्मों की फरिआद सम्राट तक पहुँचा सके। किन्तु सोगोरों के नेतृत्व में 136 ग्रामों के किसान एकत्रित होकर राजधानी में पहुँचे। किन्तु अधिकारियों ने उन्हें सम्राट् से नहीं मिलने दिया। सम्राट जब अपने पूर्वजों की समाधि पर पूजा करने आने वाले थे अवसर पाकर सोगोरो ने उनके हाथ में अर्जी थमा दी। सोगोरो को आशा थी उसे अवश्य न्याय मिलेगा किन्तु परिणाम ठीक विपरीत, कठोर क्रूर, जघन्य और बर्बरता पूर्ण निकला। सोगोरो पत्नी, बच्चे, बच्चियों सहित जनसमूह के समक्ष कत्ल करा दिया गया। दर्शक मूक देखते रहे। सोगोरो सपरिवार दफना दिया गया। सोगोरो के परिवार की लाशें रफा-दफा तो करदी गईं किन्तु इस घटना के बाद वातावरण में न जाने कैसा भयंकर उभार आया कि सर्वत्र एक आग और घुटन अनुभव की जाने लगी। शासकों को विचित्र भयानकता ने घेर लिया। तीसरे ही दिन सुधार की घोषणाएं हुईं। किसानों पर अत्याचार की जाँच प्रारम्भ हुई और अत्याचारी शासनाध्यक्ष, बाईस अफसर, सात न्यायाधीश, तीन लेखापरीक्षक बर्खास्त कर दिये गये और किसानों पर से बढ़े हुए कर तथा प्रतिबन्ध हटा लिये। यह सब एकाएक परिवर्तन कैसे हुआ। यदि यही सब होना था तो सोगोरो परिवार की बलि क्यों दी गई। तब रहस्य पर से पर्दा उठा। सम्राट के पूरे परिवार को सोगोरो परिवार के हत्याकाण्ड के उपरान्त चारों और प्रेतात्माएँ ही दिखाई पड़ने लगी थीं। सोते-जागते प्रेतों को देखकर वे भयभीत हुए। यह परिवर्तन उस डर का ही परिणाम था। अनेकों ओझा, ताँत्रिक हार गये किन्तु प्रेत भयानक त्रास देते ही रहे। अन्त में सम्राट का पतन हुआ और पड़ौस के राजा ने उसे बन्दी बना लिया और मृत्यु दण्ड दिया।

प्रसिद्ध वैज्ञानिक हेनरी प्राइस ने अपनी पुस्तक ‘फिफ्टी पिर्क्चस आफ साइकिकल रिसर्च’ में एक घटना का विवरण देते हुए लिखा है कि एक लड़की के पिता प्रथम विश्व युद्ध में मारे जा चुके थे। सन् 1921 ई. में उनकी लड़की रोसेली भी 6 वर्ष अल्पायु में ही मृत्यु को प्राप्त हो गई। मृत्यु के चार वर्ष बाद 1925 ई. से ही वह अपनी माँ को स्वप्न में दिखाई देने लगी। बाद में प्रत्येक बुधवार को वह घर के सभी सदस्यों को भी दीखने लगी। इस घटना की सत्यता प्रामाणित करने के लिए वैज्ञानिकों व पत्रकारों के दल ने 25 दिसम्बर 1937 को उसके घर वालों से संपर्क किया। प्रयोग के लिए कमरे की खिड़कियाँ दरवाजे बन्द कर लिये गये।

प्रयोग प्रारम्भ होते ही रोसेली की छाया धीरे-धीरे अपनी माँ के पास आयी। माँ ने पूछा- ‘रोसेली’, उसने उत्तर दिया- “हाँ”। तब पत्रकार व वैज्ञानिकों ने उस लड़की को स्पर्श करने की स्वीकृति उसकी माँ से लेकर लड़की के गले, हाथ सिर पर अपना हाथ फेरते हुए उसकी नाड़ी देखी जो चल रही थी। कमरे में प्रकाश करने पर रोसेली के हाथ, पैर व चेहरा सभी साफ-साफ शुभ्र संगमरमर जैसे दिखाई दे रहे थे। शरीर बड़ा ही कोमल था। प्रयोग 15 मिनट तक चलता रहा और वह लड़की ‘हाँ’ और ‘नहीं’ में बराबर उत्तर देती रही। तदुपरान्त उसका शरीर छाया में रूपांतरित हो अन्तर्ध्यान हो गया।

प्रेतात्माओं के अस्तित्व को नकारा नहीं जा सकता। उनका अस्तित्व होता है और अपनी गलतियों पर जीवित व्यक्तियों की ही तरह उन्हें पश्चाताप करते देखा गया है। ‘फेट’ पत्रिका के अगस्त 1962 के अंक में प्रकाशित श्रीमती सेना सरंजेस्की का संस्मरण ‘सिसकते भूत का सन्देश’ इस तथ्य पर प्रकाश डालता है। वे लिखती हैं- “में जिस मकान में रहती थी उसमें कभी-कभी सीढ़ियों पर और कमरों में किसी के टहलने की आवाज आया करती थी। एक दिन मुझे लगा कि पास ही कोई छाया खड़ी है। तभी मुझे टेड ऐलिसन नामक व्यक्ति का स्मरण हो आया जिसने कुछ मय पहले इसी मकान में आत्महत्या की थी। ऐलिसन के भूत की याद आते ही मुझे डर लगने लगा। किन्तु मैंने अपने को सम्हाला। साहस करके उससे पूछ ही लिया- ‘आप टेड तो नहीं हैं?’ मेरे आश्चर्य का ठिकाना न रहा। मैंने स्पष्ट सुना- ‘यस’। मैंने पुनः पूछा- ‘आप कुछ कहना चाहते हैं?’ पर इससे पूर्व कि कोई उत्तर सुनूँ, वह छाया अदृश्य हो गई और फिर कई दिन बाद आई। मैंने फिर साहस बटोर कर पूछा- ‘आप सिसकते क्यों हैं, क्या आप कुछ कहना चाहते हैं?” इस बार उसने बताया- ‘मैंने आत्महत्या नहीं की थी। किसी जहरीली औषधि के भूल से सेवन से यह दुर्घटना हुई। आप मेरी धर्म-पत्नी को कहना कि मैं अपनी बच्चियों को बहुत प्यार करता हूँ।’ इसके साथ ही वह छाया गायब हो गई और फिर कभी नहीं दिखाई पड़ी। बाद में मैंने श्रीमती टेड से बातचीत की तो उन्होंने बताया कि निःसन्देह वे अपने साथ इन्सूलिन की शीशी रखते थे और उसी के द्वारा उनकी मृत्यु हुई थी।”

इन घटनाओं से प्रतीत होता है कि दिवंगत आत्माएँ शरीरधारी स्वजनों के साथ सम्बन्ध स्थापित करके अपना मन हल्का करना चाहती हैं अथवा किसी छोटे-मोटे सहयोग की अपेक्षा लेकर इर्द-गिर्द मँडराती हैं।

“इन्टर प्रिटेशन ऑफ ड्रीम” नामक पुस्तक में सुप्रसिद्ध मनोविज्ञानवेत्ता डा. सिगमंड फ्रायड एक घटना का वर्णन करते हुए लिखते हैं-

“मेरे शहर के एक सम्भ्रान्त व्यक्ति के पुत्र का देहावसान हो गया। रात में अन्त्येष्टि सम्भव नहीं थी, अतएव प्रातःकाल अन्त्येष्टि का निर्णय कर लाश के चारों ओर मोमबत्तियाँ जलाकर छोड़ दी गईं। एक व्यक्ति पहरे पर नियुक्त कर मृतक का पिता अपने कमरे में जा सो रहा। थोड़ी ही देर बाद उसने स्वप्न देखा, उसका लड़का सामने खड़ा कह रहा है- “बाबा! तुम यहाँ सो रहे हो और में जल रहा हूँ। मेरा शरीर यहीं जल जाने दोगे क्या?” स्वप्न देखते ही पिता की नींद खुल गई। खिड़की से झाँककर देखा तो जिस कमरे में बच्चे का शव रखा हुआ था, तेज प्रकाश दिखाई दिया। अज्ञात आशंका से पिता वहाँ दौड़कर गया तो देखा कि पहरे वाला व्यक्ति अलग हटकर सो रहा है और मोमबत्ती गिरने से कफ़न में आग लग चुकी है। थोड़ी देर और पहुँचना न होता तो लाश का क्या, घर का ही पता न चलता, जलकर खाक हो जाता।

कई क्षुब्ध आत्माएँ शेष-आक्रोश से भरी होती हैं और छेड़ खानी करने वालों का अनिष्ट करने पर उतारू हो जाती हैं। उनके सम्बन्ध में सही जानकारी हो तो उनसे दूर रहने की नीति अपनाई जा सकती है और व्यर्थ की आफत मोल लेने की मुसीबत से बचा जा सकता है।

घटना अमेरिका की है। कैलीफोर्निया शहर के इण्डावरी मुहल्ले में एक मकान था। वह काफी दिनों से खाली पड़ा था। एक बार चार विद्यार्थी आये। उन्होंने मकान किराये पर ले लिया और रहने लगे। एक दिन जब चारों आँगन में कुर्सियों पर बैठे थे तो अचानक चारों कुर्सियाँ ऊपर उठने लगीं। सात-आठ फुट ऊपर जाकर चारों हवा में स्थिर हो गईं। वे चारों बहुत घबरा गये। पर यह न समझ पाये कि ऐसा क्यों हुआ, फिर भी उन्होंने मकान छोड़ा नहीं। एक रात जब वे सो रहे थे तो उन पर अचानक पत्थरों की वर्षा होने लगी। पत्थरों से भरा एक टूटा सन्दूक बिस्तर पर आ गिरा। इससे घबरा कर चारों मकान छोड़कर भग गये। खोज करने पर पता चला कि उस मकान में चार-पाँच वर्ष पहले एक डाक्टर ने आत्महत्या कर ली थी। उसी की विक्षुब्ध आत्मा वहाँ मंडराया करती थी।

इंग्लैंड में पोर्ट्स साउथ रोड इशरकाउण्टी के पास से जो भी मोटर गुजरती उसमें बंदूक की गोली इस प्रकार लगती कि शीशे, छत या दरवाजे पर एक इंच का साफ, गोल छिद्र बन जाता मानो किसी मशीन से किया गया हो। ऐसी घटनाएँ लगातार होती रहीं जिससे उस क्षेत्र में आतंक फैल गया। पुलिस की छानबीन तथा स्काटलैण्ड थार्ड की वैज्ञानिक जाँच भी इस घटना का कोई सुराग न लगा सकी। अन्ततः उस क्षेत्र में कड़ी सुरक्षा की व्यवस्था की गई, किन्तु वह भी बेकार गयी। धीरे-धीरे आवागमन ठप्प पड़ गया।

जब घटना के तथ्य को पता लगाने के सारे सूत्र विफल रहे तो तरह-तरह की किंवदंतियां कही जाने लगीं। परोक्ष जीवन और अदृश्य जगत पर विश्वास करने वाले इस घटना का सम्बन्ध प्रेतात्माओं से जोड़ने लगे। कहा जाता है कि क्लेयर माउण्ट स्टेट नामक यह स्थान पहले एक जागीरदार ‘ड्यूक ऑफ न्यू कॉन्सिल’ के पास था। उसने विलिक केन्ट नामक ठेकेदार से एक झील तैयार करवाई। तैयार होने पर ड्यूक ने उसका पैसा दबा लिया और उसे मार कर उसी झील में फिकवा दिया। शायद वही क्षुब्ध आत्मा ड्यूक मोटर मालिक के प्रति घृणा करने लगी हो और इसका प्रतिकार अन्य मोटर मालिकों से भी लेने लगी हो।

एक अन्य किंवदन्ती के अनुसार यह लार्ड क्लाइव की विक्षुब्ध आत्मा है जिसे मोटरों का शोर पसन्द नहीं। लार्ड क्लाइव ईस्ट इण्डिया कम्पनी की ओर से हिन्दुस्तान गया था तथा वहाँ उसने छल-कपट द्वारा अंग्रेजी राज्य बढ़ाया तथा अपना व्यक्तिगत स्वार्थ भी सिद्ध किया। वह जब इंग्लैंड लौटा तो करोड़ों की सम्पत्ति भारत से साथ ले गया। उससे उसने क्लेयर माउण्ट का इलाका खरीदकर उस जंगल में एक महल बनवाया। उसमें वह अनेक खानसामा, नौकरों, वेश्याओं के साथ रहने लगा। वहाँ वह पूर्व के कुकृत्यों को बार-बार स्मरण कर अर्द्ध विक्षित्त-सा हो गया। यह एक तथ्य है कि उसे मोटरों की आवाज नापसन्द थी। अतः उसने सनक से आकर उस सड़क को खत्म करवा दिया और मोटरों के लिए 12 मील दूर रास्ता बनवा दिया। एक दिन असह्य मानसिक तड़पन में उसने आत्म-हत्या कर ली। सम्भव है लार्ड क्लाइव की ही आत्मा उन मोटरों से द्वेष रखने के कारण अनोखे अस्त्रों से मोटरों पर आक्रमण करती हो। परोक्ष जीवन और अदृश्य जगत पर विश्वास करने वाले ऐसा ही मानते हैं।

घटनाएँ चाहे मृतात्मा के रोष की हों अथवा अदृश्य रूप में सहायता की, वे अनुसंधान का एक नूतन क्षेत्र खोलती हैं। आत्मा की अमरता, मरने के बाद भी उसका अस्तित्व, पुनर्जन्म, प्रेत-पितर योनि, कर्मफल जैसे सिद्धान्त जिन्हें भारतीय अध्यात्म विज्ञान पूरी मान्यता देता आया है, इन घटनाओं से सत्यापित होते हैं। इस प्रकरण का डराने वाला एवं इस माध्यम से धूर्तता का चक्र चलाने वाला पक्ष तो निन्दनीय है। फिर भी इससे वर्तमान को श्रेष्ठ बनाने, चिन्तन की उत्कृष्टता बनाये रख देवत्व युक्त जीवन जीने की प्रेरणा मिलती है। ‘परलोक सुधारना’ सम्भवतः इसी को कहा जाता रहा हो। कुछ भी हो, प्रेत-पितरों के अस्तित्व के विषय में कोई सन्देह नहीं है। अदृश्य जगत का अन्वेषण कुछ और भी गहराई से हो तो कई महत्वपूर्ण सूत्र हाथ लग सकते हैं।


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