शान्ति कुँज के प्रशिक्षण - साधना सत्रों का अभिनव स्वरूप

February 1983

Read Scan Version
<<   |   <   | |   >   |   >>

नि प्रज्ञा पुत्रों को आत्मा - कल्याण और लोक-कल्याण की दुहरी साधना सम्पन्न करती है, उनके लिए शान्तिकुँज में एक-एक महीने के युग श्ल्पी सत्र हर महीने चलते रहे हैं जब डाक्टर, इंजीनियर प्रोफेसर, कलाकार, शिल्पी अपने-अपने विषयों का लम्बे समय तक प्रशिक्षण प्राप्त करने और प्रवीण होने पर काम में हाथ डालते हैं तो युग सृजन जैसे असाधारण कार्य के लिए शिक्षण प्राप्त न करना पड़े ऐसा हो नहीं सकता। मोटर कितनी ही बढ़िया क्यों न हो, रास्ता कितना ही निरापद क्यों न हो पर ड्राइविंग का अभ्यास तो होना ही चाहिए अन्याि लक्ष्य तक पहुँचने के साथ एक्सीडेन्ट होने और ड्राइवर समेत सवारियों की जान-जोखिम का संकट सोमने खड़ा रहेगा। युग सृजन में अधर्म का उन्मूलन और धर्म का संस्थापन कर सकने वाले युग समस्याओं के अनुरूप अनेक कार्यक्रमों का समावेश है। जनमानस का परिष्कार और आस्था संकट का उन्मूलन किसी एक स्थान पर नहीं 450 करोड़ मनुष्यों को एक-एक मोर्चा मान कर उन सभी पर एक साथ सम्पन्न किया जाना है। इतने बड़े उत्तरदायित्व को उठाने वाले, अनुीव और अभ्यास न होने पर भी उसे ठीक तरह कर गुजरेंगे इसकी आशा कोई नहीं कर सकता। ऐसी दशा में यह नितान्त आवश्यक था कि कार्य क्षेत्र में उतरने वाले प्रज्ञापुत्र एक-एक महीने की ट्रनिंग युग शिल्पी सत्र में सम्मिलित होकर प्राप्त करें।

अब तक गायत्री शक्ति पीठो प्रज्ञा पीठों के लिए जिन कार्यकर्ताओं की स्थायी रूप से नियुक्ति हुई है उनके लिए यह ट्रेनिंग आवश्यक समझी और सम्पन्न कीजाती रही हैं। अब इनमें एक नया अध्याय जड़ा है-स्वाध्याय मंडलों के मचालकों को भी उसी प्रक्रिया का अनुभव अभ्यास कराने का।

स्वाध्याय मण्डल असल में बिना निजी इमारत छोटे दायरे में काम करने वाले - एक व्यक्ति के प्रयास से चल पड़ने वाले प्रज्ञा संस्थान ही हैं। दोनों के कार्यक्रम और उत्तरदायित्व समान हैं। दोनों का कार्य अपने-अपने क्षेत्रों में स्वाध्याय प्रक्रिया द्वारा युगान्तरीय चेतना का आलोक वितरण से आरम्भ होता है और दोनों को ही थेड़ा समर्थन-सहयोग उपलब्ध होने लगने पर पंच सूत्री कार्यक्रम हाथ में लेना पड़ता है। एक दशा में अन्तर केवल छोटे या बड़े का रह जाता है। गतिविधियाँ सर्वथा एक जैसी हैं। फिर भी यह निश्चित है कि प्रज्ञा संस्थानों के लिए नियुक्त कार्यकर्ताओं को जिस प्रकार ट्रेनिंग की आवश्यकता होती है उसी प्रकार स्वाध्याय मण्डलों के रूप में छोटे प्रज्ञा संस्थानों की बारी है। यह भी हो सकता है कि प्रज्ञा पीठों की तरह वह भी सौ गुना अधिक बढ़ चले और 24 हजार के स्थान पर 24 लाख की संख्या में प्रज्ञा संस्थान-स्वाध्याय मण्डल-विनिर्मित हो चुकें। युग सन्धि का प्रज्ञा अभियान एक अद्वितीय एवं अभूत पूर्व तूफान है उसका प्रखरता और व्यापकता अपनी शक्ति और सफलता का जितना प्रभाव परिचय देने लगे उतना ही कम हैं।

ऐसी दशा में ट्रेनिंग इन स्वाध्याय मण्डलों के संस्था पकों की भी होनी है। इतने बड़े काम की शिक्षा एक महीने से कम में किसी प्रकार भी सम्पन्न नहीं हो सकती। उसके साथ जो पाठ्यक्रम जुड़े हैं वे कल्प साधना सत्र की तुलना में कही अधिक कठिन और जटिल है। ऐसी दशा में एक महीने से कम में उनकी शिक्षा भी पुरी नहीं हो सकती। वह नई व्यवस्था कैसे हो? आवश्यकता आविष्कार की जननी कही गई है। अतः इस असमंजस का भी हल खोज निकाला गया है। एक महीने के कल्प साधना सत्रों का भविष्य में नया स्वरूप यह होगा कि प्रातः 4 से 12 तक कल्प साधना की श्क्षा साधना चला करेगी। अपराह्न 12 से 8 तक युग शिल्पी शिक्षा का समावेश रहेगा। अब यह दो पाली में चलेगा। अब इस विद्यालय में दो शिफ्टों का समावेश रहेगा। दोनों के लिए पूरे आठ-आठ घन्टे का समय है। जो उत्साही साहसी हैं वे एक साथ दोनों शिक्षा भी सम्पन्न करते रह सकते हैं। कई छात्र एक साल में दो दर्जे भी पास कर लेते हैं। एम.ए. और कानून की कक्षाएँ एक ही समय में साथ-साथ पूरी करते देखे गये हैं। प्रस्तुत प्रशिक्षण क्रम भी दुहरा हो सकता है। कल्प साधना और युग शिल्पी सत्र के जो दुहरे उपक्रम पूरा करना चाहें उन्हें अब वैसी सुविधा व्यवस्था बना दी गई है। जो इनमें से एक ही शिक्षा प्राप्त करना चाहें उन पर कोई दबाव नहीं है कि उन्हें दोनों ही पूरी करनी पड़ेगीं। वे अपना इच्छित एक सत्र भी चलाते रह सकते हैं।

युग शिल्पी सत्रों में चार शिक्षाएँ हैं। यह चारों ही ऐसी हैं जिनमें से एक को भी छोड़ते नहीं बनता। (1) जन-संपर्क के लिए सम्भाषण कला, सभा गोष्ठियों में वक्तृता। (2) प्रचार कार्यक्रमों को आकर्षक एवं प्रभावी बनाने के लिए युग संगीत (3) ईसाई चर्चों की तरह लोक सेवा एवं आकर्षण का आधार चिकित्सा उपचार (4) यज्ञादि धार्मिक कर्मकाण्डों के माध्यम से श्रद्धा, प्रज्ञा और निष्ठा का समर्थ जागरण। इन चारों को व्यावहारिक शिक्षा कहा जा सकता है। मिशन के सिद्धान्तों और निर्धारणों का स्वरूप एवं भविष्य समझना पाँचवाँ कार्यक्रम है जो तत्वदर्शन के रूप में इन्हीं चारों के साथ धुला दिया गया हैं।

(1) कितने कार्यकर्ता भय, संकोच, अभ्यास, घबराहट, आत्महीनता के कारण अपने विचार व्यक्त नहीं कर पाते। यह झिझक छूटनी चाहिए और हर युग शिल्पी को मुखर होना चाहिए। विचार विनिमय हर स्तर के हर व्यक्ति के साथ बिना झिझक संकोच कर सकने की आदत रहनी चाहिए। इसी प्रकार जन्म दिवसोत्सवों से लेकर पर्व आयोजनों और विशेष समारोह सम्मेलनों को ओजस्वी ढंग से भाषण कर सकने की क्षमता होनी चाहिए। यह भाषण और सम्भाषण कक्षाएँ परस्पर सम्बद्ध हैं। इनका अभ्यास होने पर ही जन संपर्क सफल हो सकता है।

(2) अपने देश में 70 प्रतिशत लोग छोटे देहातों में रहते हैं। प्रायः 70 प्रतिशत ही बिना पढ़े हैं। युगान्तरीय चेतना का आलोक हमें इसी बहुसंख्यक और असली भारत के घर-घर में पहुँचाना है। सामान्यतया संगीत के बिना भाषणें को हृदयंगम कर सकना कठिन पड़ता है। मध्यकाल के तात्कालीन संतों में से अधिकाँश ने अपना प्रचार कार्य संगीत के माध्यम से ही सम्पन्न किया था। सूर, तुलसी, नानक, दादू, कबीर, रैदास, मीरा, चैतन्य आदि सभी ने लोक जागरण के लिए संगीत उपचार को अनिवार्य माना और अपनाया था। युग शिल्पियों के लिए भी यह आवश्यक समझा गया है। और ढपली घुंघरू के माध्यम से स्ट्रीट सिंगर स्तर का युग संगीत एक महीने में सम्पन्न करा देने का निश्चय किया गया है।

(3) आसनों द्वारा शरीरगत स्वास्थ्य रक्षा, प्राणायाम द्वारा मानसिक रोगों की चिकित्सा, चौबीस जड़ी−बूटियों द्वारा सामान्य रोगों की घरेलू चिकित्सा यह तीनों ही उपक्रम योग चिकित्सा की परिधि में आते हैं। ईसाई चर्चों में से प्रत्येक में चिकित्सालय है। जन-सेवा और घनिष्ठता के लिए यह प्रक्रिया बहुत ही प्राणवान है। युग शिल्पी को एक महीने में इन तीनों उपचारों का अभ्यास करा दिया जाता है।

(4) धर्म तन्त्र से लोक शिक्षण प्रक्रिया के अंतर्गत प्रत्येक शुभारम्भ में यज्ञ की प्रमुखता रहती है। संस्कार पर्व, जन्मदिन, नवरात्रि सत्र, शुभारम्भ, उद्घाटन, प्रतिमा पूजन, व्रत संकल्प, अनुष्ठान आदि में कर्मकाण्ड कराने की आवश्यकता पड़ती है। उन्हीं क्रिया-कृत्यों के साथ-साथ लोक-शिक्षण जुड़ा रहता है। अस्तु इस पौरोहित्य में भी प्रत्येक युग शिल्पी की प्रवीणता होनी चाहिए।

इस प्रकार अब कल्प साधक और युग शिल्पी एक ही महीने में दोनों अति महत्वपूर्ण शिक्षा साधनाएँ सम्पन्न कर सकते हैं। टाइम टेबिल ऐसा बना दिया गया है कि इस दुहरी पद्धति को बिना थके, ऊबे भली प्रकार सम्पन्न किया जा सके।


<<   |   <   | |   >   |   >>

Write Your Comments Here:


Page Titles