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May 1982

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देवताओं के पूजा लोलुप, मन्त्रों के बाजीगरी कौतुक, तथा छुटपुट कर्मकाण्डों से स्वर्ग मुक्ति जैसी मान्यताओं में से एक भी ऐसी नहीं है जो अपनी यथार्थता प्रामाणित कर सके। इस मकड़ी के जाले के स्थान पर ऐसे आधारों की प्रतिष्ठापना करनी होगी जिसके परिणाम प्रतिफल नकद धर्म की तरह प्रत्यक्ष देखे जा सकें। इस निर्धारण में नया कुछ करना है मात्र ऋषि युग की धारणाओं और प्रयोग विधियों को फिर से खोजना और अपनाना भर पड़ेगा, इसे खोये को ढूँढ़ लेना– भूले को याद करना भर समझा जा सकता है।


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