आलस्यं स्त्रीसेवा, सरोगता जन्मभमि वात्सल्यम्। सन्तोषो भीरुत्व षड् व्याघात महत्वस्य॥
‘आलस्य में समय बिताना, स्त्री में आसक्ति, अस्वस्थता, जन्मभूमि का अनावश्यक मोह, थोड़े बहुत में ही सन्तोष और भीरुता–ये छह−दोष मनुष्य की उन्नति में बाधक होते हैं।