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May 1982

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यस्य मौर्ख्य क्षयं यातं सर्व ब्रह्मेति भावनात्। नोदेति वासना तस्य प्राज्ञस्याम्बुमतिर्मरो॥ −योगवाशिष्ठ

‘सर्वत्र ही परमात्मा [ब्रह्मा] विद्यमान है−इस भावना के दृढ़ हो जाने पर अज्ञान का स्वयमेव विनाश हो जाता है इस स्थिति में −मति के निर्मल जल के समान शुद्ध हो जाने पर फिर वासना का उदय नहीं होता है।


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