किमार्श्चयमतः परम्?

May 1982

Read Scan Version
<<   |   <   | |   >   |   >>

शक्ति, सामर्थ्य और विलक्षणता की दृष्टि से ज्ञात सृष्टि की तुलना में अविज्ञात का क्षेत्र कई गुना अधिक है। अभी तो प्रकृति की स्थूल शक्ति का एक छोटा-सा परिचय भर मिला है। जिसे प्राप्त कर दम्भी मनुष्य अपने को प्रकृति का स्वामी– नियंत्रणकर्ता मानने लगा है। पर सचमुच ही जिस दिन मानव को सृष्टि के स्थूल एवं सूक्ष्म घटकों–चेतना की रहस्यमय परतों तथा उनमें सन्निहित सामर्थ्यों की सही जानकारी प्राप्त होगी उसे यह अनुभव होगा कि सर्वत्र शक्ति का भण्डार भरा पड़ा है। जिसमें एक से बढ़ कर एक सम्पदाएँ भी विद्यमान है।

दृश्य की अपेक्षा अदृश्य जितना रहस्यमय है उतना ही सामर्थ्यवान भी। जड़ की तुलना में चेतन अधिक शक्ति सम्पन्न है। जड़ जगत की हलचलें भी उसे की शक्ति से प्रेरित है। प्रत्यक्ष न दीखते हुए भी जड़ एवं चेतन के बीच गहरा तारतम्य तथा अविच्छिन्न सम्बन्ध है। दोनों के परस्पर तालमेल एवं सहयोग से ही संसार का चक्र अविराम गति से गतिशील है। इन दोनों से भी विलक्षण है वह सूत्राधार जो सृष्टि का नियन्ता–संचालक है। मनुष्य तो अभी जड़ प्रकृति में उलझा पड़ा है। पदार्थ की शक्ति को प्राप्त कर ही गर्व करने लगा है। जिस दिन चेतना की अकूत सामर्थ्य और जड़−चेतन की सामर्थ्यों के आदि केन्द्र−सृष्टा के वास्तविक स्वरूप का मान होगा सचमुच ही वह दिन मनुष्य के लिए सर्वाधिक सौभाग्य का होगा।

कभी−कभी प्रकृति भी ऐसे घटनाक्रमों का परिचय देती है जिनका कोई कारण समझ में नहीं आता जिसे देखकर मानवी बुद्धि हतप्रभ रह जाती तथा उसे यह मानना पड़ता है कि उसकी जानकारियाँ सृष्टि के संदर्भ में अत्यल्प है। समय−समय पर घटित होने वाले घटनाक्रमों की कुछ गुत्थियाँ ऐसी हैं जो लम्बे समय के बाद भी अब तक नहीं सुलझाई जा सकीं। प्रकृति के स्थूल नियमों का उल्लंघन करने वाली से घटनाएँ आज भी रहस्यमय बनी हुई है।

जिन दिनों भारत का प्रथम स्वतन्त्रता संग्राम, जिसे ‘गदर’ के नाम से भी जाना जाता है छिड़ा, कैलीफोर्निया की नापाकाउण्टी स्टेट में एक विलक्षण घटना घटी। पर यह वर्षा सामान्य से भिन्न थी। बरसने वाले पानी में से अधिकाँश ने वर्षा के पानी को शर्बत जैसा मीठा बताया। कितने व्यक्तियों ने बरसात के जल को बड़े पात्रों में एकत्रित कर लिया तथा कई दिनों तक शर्बत के रूप में प्रयोग करते रहे। ‘नापा–काउण्टी ‘ के वैज्ञानिकों के एक दल ने जल का प्रयोगशाला में परीक्षण करने के उपरान्त पाया कि उसमें मिश्री घुली हुई थी जिसके रवे संसार बनायी जाने वाली मिश्री की ही विशेषताओं से सम्पन्न थे।

फ्रांस के राजकीय रिकार्ड में एक सदी पूर्व की एक घटना का उल्लेख मिलता है कि एक दिन क्लरमान्ट नगर में ऐसी वर्षा हुई जिसे आज भी लोग रक्त वर्षा के नाम से चर्चा करते हैं। किसी देवता का कोप मानकर नगर के अधिकाँश व्यक्ति उस दिन भयभीत हो गये। राज पुरोहितों ने इस घटना के बाद अनेकों प्रकार के धार्मिक अनुष्ठान किए। कोई दूसरी अन्य घटना तो नहीं घटीं पर वर्षों तक नगर में रक्त वर्षा के कारण भय संव्याप्त रहा।

विश्व में कितने ही ऐसे स्थान हैं जो अपनी विलक्षणता के लिए विख्यात है। एविग्वान के निकट एक ठण्डे पानी का कुण्ड है। उसे वाडक्लुर्स का स्रोत कहते हैं। समीप में ही सोरग्यू नामक नदी बहती है। नदी के दूसरे तट पर एक अंजीर का खूबसूरत पेड़ उगा हुआ है। बिना किसी प्रत्यक्ष कारण के नदी का जल स्तर मार्च माह में हर वर्ष अपने आप बढ़ जाता है और बाढ़ जैसी स्थिति आ जाती है। सबसे आश्चर्य की बात यह है कि नदी का जल प्रवाह उल्टी दिशा में ऊँचाई पर अवस्थित अंजीर की पेड़ की ओर बढ़ने लगता है और पेड़ की जड़ को स्पर्श करके वापस लौट जाता है। इस घटना की पुनरावृत्ति हर वर्ष नियंता समय पर मार्च में होती है। वैज्ञानिक लम्बे समय ये सोरग्यू नदी के जल स्तर के बढ़ने तथा मार्च माह में अंजीर के पेड़ को छूने के लिए चल पड़ने का कारण खोज रहे हैं, पर यह रहस्य अभी भी अविज्ञात बना हुआ है। एविग्नान के लोगों में लोक कथा प्रचलित है कि कोप भोजन बने हुए हैं उन्हें केवल मार्च माह में मिलने की छूट देवता द्वारा की गयी हैं। किंवदंती कहाँ तक सत्य है नहीं मालूम, पर इस विलक्षण दृश्य को देखने के लिए प्रति वर्ष वहाँ निश्चित समय पर भीड़ एकत्रित होती है।

कोरिया में कोयम नदी के किनारे नाक्वाह्म नामक पत्थर की चट्टान है। सन् 660 में सम्बन्धित क्षेत्र पर चीन के राजा ने आक्रमण कर दिया। उसने स्थानीय राजा मन्त्री तथा सेना के अन्य वरिष्ठ अधिकारियों को बन्दी बनाकर चीन भेज दिया। राज्य साम्राज्ञी सहित 71 रानियों ने नाक्वाह्म चट्टान से नदी में कूदकर आत्महत्या कर ली। इस घटना को बीते लगभग 14 सौ वर्ष हुए। पर उसके बाद प्रति वर्ष चट्टान के पास एक ही नस्ल के मात्र 71 पौधे एक साथ उगते हैं और निश्चित समय पर 71 ही फूल आते हैं। ये फूल एक साथ ही कलियों के रूप में विकसित होते हुए पुष्पित होते हैं। ऐसा उल्लेख मिलता है कि बसन्त ऋतु के एक निर्धारित दिन को राज रानियों ने जौहर किया था, ठीक उसी दिन सभी 71 पुष्प एक साथ नदी में गिर जाते हैं। इस दृश्य को देखने तथा अपनी भाव श्रद्धा को समर्पित करने के लिए हजारों व्यक्ति उस स्थान पर आते हैं। उनका विश्वास है कि प्रति वर्ष पौधों के रूप रानियाँ शरीर धारण करती हैं तथा जौहर की घटना की पुनरावृत्ति करके फूलों के रूप में नदी में गिरकर देशवासियों को यह प्रेरणा देती है कि “अनीति अत्याचार के समक्ष कभी सिर न झुकाओ भले ही मृत्यु को वरण कर लो।”

‘एलवर्टा’ का एक किसान पानी भरने के लिए जब भी अपने कुएं की चादर की हटाता था तो कुएँ के तेल से तालबद्ध संगीत सुनाई पड़ती थी। यह खबर समीपवर्ती क्षेत्र में फैल गयी। अविश्वसनीय किन्तु सत्य घटना की पुष्टि अनेकों व्यक्तियों ने की। वैज्ञानिकों के एक दल को यह सन्देह हुआ कि शायद किसान ने कुएं में कहीं रेडियो सैट छुपाकर रख दिया हो। इसलिए उन्होंने कुएं के चप्पे−चप्पे की जाँच पड़ताल कर ली। पर सन्देह निराधार निकला। दूसरा सन्देह यह हुआ कि रेडियो संगीत को पकड़कर प्रतिध्वनित करने वाला कोई ऐसा स्रोत कुएं में विद्यमान हो, यह सोचकर गाँव के सभी रेडियो सैट बन्द करा दिए गये। पर आश्चर्य यह कि कुएं से तालबद्ध संगीत निरन्तर आती रही। थककर वैज्ञानिकों ने संगीत प्रसारित होने का कारण बता पाने में अपनी असमर्थता व्यक्त की। ऐसा ही एक विचित्र अनुभव नाइरियाल की एक महिला को हुआ। वह जब भी स्नान करने टब में जाती थी तो उसमें से मधुर संगीत ध्वनियाँ आने लगती थीं। प्रत्यक्ष दर्शियों ने भी यथार्थता की पुष्टि की। ध्वनि विशेषज्ञ लम्बे समय तक ध्वनि का कारण पता लगाते रहे, पर कुछ बता पाने में असमर्थ सिद्ध हुए। उनका कहना था प्रस्तुत घटना का कारण अदृश्य तथा अभौतिक तथा विज्ञान के नियमों की पकड़ सीमा के बाहर है।

ये घटनाक्रम प्रकृति की विलक्षणता तथा अदृश्य सृष्टि के रहस्य पक्षों पर प्रकाश डालता है। विलक्षणता ही नहीं सामर्थ्य की दृष्टि से भी अभी बहुत कुछ ढूँढ़ा जाना बाकी है। सृष्टि का एक नगण्य पक्ष स्थूल जड़ पक्ष का स्वरूप ही अब तक उजागर हो सका है। चेतन जगत अपने गर्भ में अनन्त रहस्यों एवं सामर्थ्यों को छुपाये हुए अविज्ञात बना हुआ है। सम्भवतः प्रकृति उपरोक्त विलक्षण घटनाओं द्वारा कभी−कभी इसी तथ्य का परिचय देती हैं। जड़ चेतन की आपसी तारतम्य और सम्बन्धित गुत्थियों को सुलझा सकना तथा सन्निहित प्रचण्ड सामर्थ्य का लाभ उठा सकना प्रचलित भौतिक विज्ञान द्वारा नहीं आत्म विज्ञान के अवलम्बन द्वारा ही सम्भव है।


<<   |   <   | |   >   |   >>

Write Your Comments Here:


Page Titles






Warning: fopen(var/log/access.log): failed to open stream: Permission denied in /opt/yajan-php/lib/11.0/php/io/file.php on line 113

Warning: fwrite() expects parameter 1 to be resource, boolean given in /opt/yajan-php/lib/11.0/php/io/file.php on line 115

Warning: fclose() expects parameter 1 to be resource, boolean given in /opt/yajan-php/lib/11.0/php/io/file.php on line 118