ज्योतिष विज्ञान उपेक्षणीय नहीं है

May 1982

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मौसम की पूर्व जानकारी होने से तद्नुरूप व्यवस्था बनाली जाती है। वर्षा से सुरक्षा के लिए विभिन्न प्रकार के सरंजाम जुटाए जाते हैं। शीत ऋतु में ठण्ड से बचाव के लिए गरम कपड़े एवं विस्तार आदि बनवाने पड़ते है। गर्मी में उसके अनुरूप व्यवस्था करनी होती है। न केवल सुरक्षा का ही प्रबन्ध करना होता है। न केवल सुरक्षा का ही प्रबन्ध करना होता है वरन् दैनिक कार्यक्रमों को मौसम के अतरुप नये सिरे से निर्धारण भी करना पड़ता है। मौसम विज्ञान की पूर्व जानकारी हर दृष्टि से उपयोगी है,मानवी विकास के लिए एक सम्मत पृष्ठभूमि बनाने वाली एक विद्या भी है।

पृथ्वी पर उपलब्ध परिस्थितियाँ, वातावरण उसकी स्वयं की उपार्जित सम्पदा नहीं है। उसका एक बड़ा भाग अन्यान्य ग्रहों से प्राप्त होता है। उसका एक बड़ा भाग अन्यान्य ग्रहों से प्राप्त होता है। सूर्य को प्रकाश,ताप और प्राण का अधिष्ठाता माना जाता है। ये अनुदान पृथ्वीवासियों को सतत् सूर्य से ही प्राप्त होते रहते हैं। सूर्य ही नहीं सौर मण्डल के अन्यान्य ग्रहों का पृथ्वी पर अनुकूल वातावरण विनिर्मित करने में अपने अपने ढंग का योगदान है। समस्त और −मण्डल ही एक “इकॉलाजिकल” चक्र में बँधा हुआ है। ग्रहों की गति एवं स्वरूप में होने वाले हेर फेर से पृथ्वी का वातावरण और सम्बन्धित जीव तन्तु और वनस्पतियाँ समान रूप से प्रभावित होते है। मौसम में असामयिक होने वाले हेर फेर, प्रकृति विक्षोभों और असन्तुलनों में भी अंतर्ग्रही परिवर्तनों की महत्वपूर्ण भूमिका होती है। वर्षा, शीत और ग्रीष्म ऋतुओं की भाँति सौर−मण्डलीय गतिविधियों और उनमें होने वाले हेर फेर से पड़ने वाले पृथ्वी पर प्रभावों की जानकारी पहले ही मिल जाय तो उनके अनुरूप सुरक्षा व्यवस्था करने में भारी सहयोग भी मिलता है।

‘ज्योतिष विज्ञान’ पुरातन काल में यही प्रयोजन पूरा करता था। कालान्तर में यह विद्या धीरे−धीरे विलुप्त होती चली गई और उसके स्थान पर भ्रान्तियाँ अन्ध विश्वासों ने जड़ जमा ली। इतने पर भी उसकी गरिमा और उपयोगिता अपने स्थान पर यथावत हैं। ऐसी मान्यता है कि यह विज्ञान की सबसे प्राचीन शाखा है। इस विषय पर भारत ही नहीं चीन तथा यूरोप के विभिन्न देशों में प्रमाणिक पुरातन साहित्य उपलब्ध है जो ज्योतिष विद्या पर प्रकाश डालते हैं। बृहत्तर भारत के प्रसिद्ध ज्योतिर्विदों में श्रीधर,वाराह मिहिर,आर्य भट्ट भास्कराचार्य आदि के नाम ओर उनकी लिखी पुस्तकें आज भी कितनी ही देशों में चर्चा और शोध के विषय बने हुए है।

ज्योतिष विज्ञान को क्षेत्र इतना विस्तृत है कि इसे सभी विज्ञानों का अधिष्ठाता माना जा सकता है। इसकी आदर्श परिभाषा के सम्बन्ध में यह कहा जा सकता है कि यह ऐसा विज्ञान है जो खगोलीय पार्थिव व मानवीय घटनाओं से सम्बन्ध जोड़ता तथा ब्रह्मांड और मनुष्य और मनुष्य के बीच अन्तः सम्बन्ध स्थापित करने का प्रयास करता है। यह आकाश गंगाओं के संसार और जीवित कोशिकाओं के संसार को एक दूसरे से जोड़ने का प्रयत्न करता है।

संस्कृत का ‘ज्योतिष’ शब्द इसके वास्तविक स्वरूप की व्याख्या करता है। ज्योतिष का अर्थ होता है प्रकाश है विकिरण या प्रसरण। अस्तु ज्योतिर्विज्ञान को विकिरण विज्ञान माना जा सकता है हजारों वर्ष पूर्व आर्ष ऋषियों को इस विषय की गहन जानकारी थी। उन्हें विभिन्न प्रकार के पार्थिव क्रिया कलापों के आधार पर नक्षत्रों की गति व तारों के सापेक्ष स्थानों के बीच आपसी संबंध का ज्ञान था। फलतः समय समय पर वे भवितव्य की महत्वपूर्ण घटनाओं के सम्बन्ध में गणनाओं के आधार पर भविष्यवाणी भी किया करते थे। हजारों वर्ष बाद भी कितने ही पुरातन ग्रन्थों में वर्णित उनके कथन समय समय पर सही उतरते देखे गये हैं। ये ज्योतिर्विज्ञान की प्रामाणिकता का ही बोध कराते हैं।

विज्ञान की दूसरे ग्रहों में छलांग लगाने और टोह अनुभव किया जा रहा है कि ज्योतिष विज्ञान का नये सिरे से अध्ययन किया जाय। चिकित्सा एवं मने यह सत्य एक मत से स्वीकार किया जाने लगा है कि घटती बढ़ती चन्द्र कलाओं का मानव शरीर, स्वास्थ्य और मनःस्थिति पर असाधारण प्रभाव पड़ता है। जीवधारियों में पूर्णिमा के दिन सर्वाधिक व्यग्रता और विक्षोभ देखा जाता है। पागलपन के दौरे अधिक पड़ते हैं। अपराध भी इन्हीं दिनों अधिक होते हैं। भूगर्भ एवं खगोल शास्त्रियों के निष्पक्षों के अनुसार अमावस्या और पूर्णिमा के दिन भूकम्प अधिक आते है। सूर्य में धब्बों की वृद्धि होने से प्रकृति प्रकोप बढ़ते हैं। इन्फ्लुएंजा और दिल के दौरे जैसी बीमारियाँ अधिक होती है।

‘जॉन ग्रिविन’ जैसे खगोल शास्त्रियों का कहना है कि वायुमंडलीय आवेश का आयनीकरण सूर्य की लपटों से सम्बन्धित है। वायु से धनात्मक एवं ऋणात्मक आयनीकरण का स्वास्थ्य और मनोकायिक क्रियाओं पर गहरा प्रभाव पड़ता है। सन् 1971 में ‘अमेरिका इन्स्टीट्यूट ऑफ मेडिकल क्लाइमेटोलाजी ‘ संस्थानों ने अपने शोध के उपरान्त यह निष्कर्ष निकाला कि वायुमंडल में विद्यमान विद्युतीय आवेश हमारे अनुभवों,विचारों और व्यवहारों को प्रभावित करते हैं। वायुमण्डल के ये आवेश भी सूर्य की लपटों द्वारा नियंत्रित होते हैं।

आये दिन भूकम्पों,ज्वालामुखियों के फटने से भारी नष्ट होती है और मनुष्य असहाय,असमर्थ बना मूक रूप से अपनी बर्बादी पर आँसू बहाता रहता हैं। मानवी पुरुषार्थ और विज्ञान साधन भी उपसे अपनी सुरक्षा नहीं कर पाते। अन्तर्ग्रही असन्तुलनों के दुष्परिणाम ही इस प्रकार के प्रकृति प्रकोपों के रूप में प्रस्तुत होता है। ज्योतिर्विज्ञान की यदि ठीक तरह जानकारी होती तो समय के पूर्व ही मौसम में हुए हेर फेर के अनुरूप सुरक्षा व्यवस्था बनाने की तरह आवश्यक कदम उठाया जा सकता है। किन्तु अभी भी यह महत्वपूर्ण विद्या अंधकार के गर्त में पड़ी है। विश्व के मूर्धन्य भौतिक विज्ञानी अब इस तथ्य स्वीकार करने लगे है कि ज्योतिष विज्ञान के क्षेत्र में गहन शोध की आवश्यकता है। इससे कितने ही अविज्ञात का रहस्योद्घाटन होगा। प्रसिद्ध नाभिकीय भौतिक विद डॉ.’रुडाल्फ तोमास्कोक’ ने इस तथ्य को हृदय स्वीकार किया है। इन्होंने एक बार प्रख्यात भारतीय भौतिक शास्त्री डॉ. वी वी रमन एवं नार्लीकर से कहा “यह विचित्र बात है कि बयासी प्रतिशत से भी अधिक माताओं में भयंकर भूकंपों के दौरान जब पृथ्वी डोलती है तो ‘यूरेनस ग्रह’ याम्योत्तर के ठीक ऊपर होता है यह एक ऐसा रहस्य है जिसकी आपको गम्भीरता से खोज बीन करनी चाहिए। यह एक स्मरणीय तथ्य है कि श्री रमन व मार्लीकर दोनों ही विश्व स्तर पर काँस्माँलाजी व एस्ट्रानामी सम्बन्धी अपने सिद्धान्तों के लिये ख्याति प्राप्त विद्वान हैं।

पश्चिमी देशों के वैज्ञानिकों में ज्योतिर्विज्ञान के विषय में इन दिनों अभिरुचि जगी है। कितने ही देशों में इस दिशा में प्रयास भी आरम्भ हो गये हैं। ‘आइन्स्टीन’ अट्टकि का वेधशाला केपटाऊन (दक्षिण अफ्रीका), माउन्ट विल्सन वेधशाला−यू.एस.ए.,रूस का जाईस संस्थान,हारवर्ड वेधशाला, डोमिनियन एस्ट्रो फिजिकल इन्स्टीट्यूट,रायल आँब्जर बेटरी एडिन वर्ग, बावेल्स वर्ग आब्जर बेटरी प. बर्लिन आद में ग्रहों की स्थिति एवं गति और उनमें होने वाले परिवर्तनों के सम्बन्ध में व्यापक स्तर पर खोज बीन चल रही है। ये आरंभिक चरण हैं। दूसरा महत्वपूर्ण पक्ष अभी अछूता है−अन्तर्ग्रही प्रभावों के अन्वेषण का। जिसकी उपेक्षा अब तक होती रही है।

कार्ल जुंग जैसे मनोवैज्ञानिक का कहना है कि “ज्योतिर्विज्ञान में कितनी ही महत्वपूर्ण सम्भावनाएँ विद्यमान हैं अब तक इस विज्ञान की उपेक्षा हुई। फलतः आधुनिक सभ्यता ने खोया अधिक पाया कम है। वस्तुतः एक प्राचीन किन्तु उपयोगी विद्या की अवहेलना से उससे मिलने वाले लाभों से हम वंचित रह गये हैं।”

फलित ज्योतिष की मूढ़ मान्यताएं, भाग्यवाद,मुहूर्तवाद जैसे अन्ध−विश्वासों से जड़ जमा लेने के कारण भी विचार शील वर्ग द्वारा इस विज्ञान की उपेक्षा होती रही। ज्योतिष विज्ञान के प्रति अविश्वास और विरोध जो समय समय पर प्रकट होते है इसका एक मात्र कारण इस विद्या के संबंध में फैली हुई भ्रान्तियाँ भी हैं। आज भी कितने ही तथाकथित ज्योतिषी इस विद्या की आड़ में भ्रम एवं भय फैलाते, शोषण करते तथा जन सामान्य में अश्रद्धा उत्पन्न करते हैं। वे ज्योतिर्विज्ञान के वास्तविक स्वरूप से स्वयं तो अपरिचित होते ही हैं। साथ ही अंध विश्वासों को बढ़ावा देते हैं।

प्रचलित भ्रान्तियों का निवारण और ज्योतिष विद्या का वास्तविक स्वरूप प्रस्तुत किया जा सके तो यह आज भी उतना ही उपयोगी हो सकता है जितना कि प्राचीन काल में था। विज्ञान की अन्यान्य शाखाओं की भाँति ही यह मानव जाति की प्रगति में सहायक हो सकता है। आवश्यकता इतनी भर है कि इस दिशा में अभिरुचि जगे और खोज के लिए सुव्यवस्थित प्रयास चलें। विश्व के विभिन्न देशों में इस सम्बन्ध में छुटपुट चल भी पड़े हैं। भारत

में भी कर्नाटक विश्व विद्यालय ने ज्योतिष विज्ञान को अपने पोस्ट ग्रेजुएट डिप्लोमा कोर्स में सम्मिलित कर विधिवत् अध्ययन की व्यवस्था बनायी है। यह प्रसन्नता की बात है। अन्य स्थानों पर भी इस तरह के प्रयत्न चलने चाहिए।

ज्ञान की अन्यान्य विद्याओं विद्याओं की तुलना में ज्योतिर्विज्ञान की महत्ता कम नहीं,अधिक ही आँकी जानी चाहिए। इसके लिए ज्योतिष शास्त्र को वैज्ञानिक स्तर पर शोध कार्य में सम्मिलित करने के प्रयास भी अब चल पड़े हैं।


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