ब्रह्मैवाहं समः शान्तः सच्च्दानन्द लक्षणः। नाहं देहो ह्यसद्रूपो ज्ञानभित्युच्यते बुधैः॥ अपरोक्षानुभूति–24
‘सभी के समान रहने वाला, शान्त, सच्चिदानन्द रूप ब्रह्म ‘मैं’ [जीवात्मा] ही हूँ। क्षण−भंगुर देह मैं नहीं हूँ–इसी को बुध जन ज्ञान कहते हैं।