अंतरिक्षीय परिस्थितियों का धरा धरा पर प्रभाव

May 1982

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ज्योतिर्विज्ञान का मुख्य उद्देश्य है ब्रह्माण्ड में बिखरे ज्योतिर्पिंडों के संदर्भ में पृथ्वी ग्रह के निवासियों के वातावरण एवं जैविक परिवर्तनों का विश्लेषण। यह एक सुनिश्चित तथ्य है कि अन्तरिक्षीय पिंडों का मानव जीवन से अविच्छिन्न सम्बन्ध है। आकाश तो अनंत है पर उसके तीन प्रमुख भाग हैं− भूलोक पृथ्वी व उसका वायुमण्डल,द्युलोक −तारामण्डल, अन्तरिक्ष−भूलोक तथा द्युलोक का सन्धिस्थल।

एक विज्ञ ज्योतिर्विज्ञानी अपने विशद ज्ञान के माध्यम से वर्तमान तथा भूत−भविष्य में हुए,हो सकने वाले अन्तरिक्षीय ग्रह सन्तुलन परिवर्तन का अध्ययन करता है। इसे (वेध) करने की प्रक्रिया कहा जाता है। वेधशाला चाहे वह चिरपुरातन स्टोन आब्जर्वेटरी हो अथवा आधुनिक दूरदर्शी यन्त्रों से सुसज्जित,उसका एक ही उद्देश्य व्यवस्था का चिन्तन। मानव शरीर, मन, वनस्पति जगत, प्राणी जगत एवं इकॉलाजिकल सन्तुलन पर ग्रहों के छोटे से परिवर्तनों के बड़े महत्वपूर्ण प्रभाव होते से परिवर्तनों के बड़े महत्वपूर्ण प्रभाव होते देखे गए हैं। पृथ्वी का मौसम पूरी तरह ग्रहों के सन्तुलन पर निर्भर है। थोड़ा-सा भी व्यतिरेक भूकम्पों, अनावृष्टि जैसे विनाशकारी परिवर्तनों के रूप में निकलता है। इसके विपरित ज्योतिर्विज्ञान की विद्या अपने गणितीय अनुमान तथा तथ्यों के आधार पर ऐसे कदम उठाने की दिशा निर्देश देती है जिससे वातावरण में वाँछित मोड़ लाया जा सके, प्रतिकूल को पलटा जा सके। वातावरण अनुकूलन प्रक्रिया आर्षकालीन महामानवों द्वारा इसी माध्यम से सम्पन्न की जाती रही है। सूर्या तो हमें दूर है, हमारे समीप उसकी किरणें ही पहुँच जाती हैं। सूर्य से प्रकाश तो एक ही वर्ण का उत्सर्जित होता है लेकिन यह बुध, शुक्र, चन्द्रमा, मंगल, गुरु शनि आदि ग्रहों से परावर्तित होकर मिश्रित रूप में हम तक पहुँचता है। ये सभी ग्रह हमें हमारी धरती की रश्मियों के माध्यम से ही प्रभावित करते हैं।

इसी प्रकार सारी वनस्पतियों −आयुर्वेद वर्णित औषधियों की जीवनीशक्ति चन्द्रमा के अधीन है इसी को सोम कहते हैं। पन्द्रह दिन तक उनकी एक एक कला के रूप पत्ता घटता चला जाता है। सारे औषधीय वनस्पति जगत पर चन्द्र कलाओं का प्रभाव पड़ता है। इसीलिये नक्षत्र विशेष में चन्द्रकलाओं की विशेष स्थिति में ही जड़ी बूटीयों को चिकित्सा हेतु चयन करने का विधान है। संक्षेप में चन्द्रमा पृथ्वी के समीपस्थ होने के कारण आकाश मण्डल में विद्यमान तारों की रश्मियों को हम तक पहुँचाने से संचार उपग्रह का काम करता है। सत्ता इसी दिन के अपने चक्र में वह 27 नक्षत्रों से भिन्न−भिन्न प्रकार की दिव्य रश्मियाँ प्रदान करता है। इसीलिये इसे ‘ग्रहाधीन जगत् सर्वत्’ के चिर पुरातन सिद्धान्तानुसार ग्रह संसार के सभी जड़ चेतन पदार्थों को प्रभावित करते हैं। सूर्य उदित होने पर कमल पुष्पों का खिलना, सूरजमुखी पुष्प का क्रमशः अपनी दिशा बदलना आदि सूर्य के वनस्पतियों पर प्रत्यक्ष चमत्कारी प्रभाव के कतिपय उदाहरण हैं। कभी कभी वे

पृथ्वी से भी भयंकर छेड़छाड़ कर बैठते हैं। ऐसे प्राकृतिक प्रकोपों में भूकम्पों का नाम अग्रणी है। एक वर्ष में बड़े लगभग 20 भूकम्प आते है। समुद्र में तूफान ज्वार भाटे पृथ्वी पर भूचाल आदि का प्रमुख कारण ग्रहों का गुरुत्वाकर्षण प्रभाव ही है।

सूर्य कलंकों के अनेकानेक विकिरण कारक घातक प्रभाव प्राणी जगत पर होते पाये गये है सन् 82 में 9 ग्रहों की युति का मार्च से नवम्बर तक प्रभावी होना,सौर−कलंकों की सम्भावित वृद्धि,7 प्रकार के ग्रहणों की घटना एक अभूतपूर्व स्थिति है। ऐसे में सूक्ष्म जगत को प्रभावित करने वाले सामूहिक धर्मानुष्ठान ही कारगर सिद्ध हो सकते हैं।


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