विज्ञान क्रमशः अध्यात्म के निकट आ रहा है

July 1982

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वह समय अब पीछे छूटता जा रहा है जब विज्ञान के क्षेत्र द्वारा सचाई खोज निकालने की ठेकेदारी का जोर शोर से घोषणा की जाती थी और साथ ही यह भी कहा जाता था कि अध्यात्म की मान्यताएँ काल्पनिक एवं निरर्थक है। पर अब स्थिति वैसी नहीं रही। विज्ञान और बुद्धिवाद को अब अपने पूर्व प्रतिपादनों पर नये सिरे से विचार करना पड़ रहा है।

जैसा−जैसा यह पुनर्विचार उपलब्ध नये तथ्यों को खोजता जा रहा हैं वैसे वैसे उसे अपनी पूर्व मान्यता बदलने को विवश कर रहा है। कारण यह है कि बुद्धिवाद पर नीति और उत्कृष्टता का अनुशासन आवश्यक प्रतीत हो रहा है। इसके बिना उच्छृंखल समर्थता भ्रष्टता और दृष्टता की ओर तेजी से बढ़ रही है साथ ही विनाश की ओर भी। इसी प्रकार तथ्य अब इन निष्कर्ष पर पहुँचते हैं कि संसार में सब कुछ जड़ ही नहीं है। पदार्थ पर अंकुश रखने वाली चेतन सत्ता का भी स्वतन्त्र अस्तित्व है और उसका विश्व व्यवस्था एवं प्राणि जगत् पर सुनिश्चित अनुशासन है।

विज्ञान का जैसे जैसे बचपन दूर हो रहा है और प्रौढ़ता परिपक्वता की स्थिति आ रही है वैसे वैसे विज्ञजनों ने अध्यात्मिक सत्ता, शैली एवं उपयोगिता के सम्बन्ध में अपनी पुरानी मान्यताएँ बदली है और कहा है− विज्ञान मात्र पदार्थ तक ही सीमित नहीं है। चेतना की वरिष्ठता को खोज निकालना और उसके सहारे जन जीवन को सर्वतोमुखी प्रगति पथ पर अग्रसर करना भी विज्ञान का ही काम है।”

इसके साथ ही अध्यात्म ने भी हठधर्मी छोड़ी है और यह स्वीकार है कि उसकी गरिमा विज्ञान की कसौटी पर अपने स्वरूप को निखारने से ही इस युग में सम्भव हो सकेगी।

परिवर्तित विचारधारा का परिचय विश्व के मूर्धन्य महामनीषियों द्वारा इन्हीं दिनों व्यक्त किये गये उद्गारों से मिलता है। इसका थोड़ा-सा संकलन नीचे है−

प्रसिद्ध वैज्ञानिक ओलीवरलॉज कहते थे−” मुझे विश्वास है अब वह समय निकट आ गया है जब कि विज्ञान को नये क्षेत्र में प्रवेश करना होगा। विज्ञान अब भौतिक जगत का ही सीमित नहीं रहेगा। चेतन जगत भी अब वैज्ञानिक प्रयोग परीक्षण का महत्वपूर्ण विषय बन गया है।”

इंग्लैंड की रॉयल सोसायटी के सेक्रेटरी सुप्रसिद्ध वैज्ञानिक ‘सर जेम्स जीन्स’ ने लिखा है −”पहले यह मान्यता थी कि जड़ जगत ही चेतन ही उत्पत्ति का आधार है। भौतिक तत्वों के समन्वय से ही मन की उत्पत्ति होती है। लेकिन यह पदार्थवादी मान्यता अब बदल गयी है। अब यह माना जाने लगा है कि चेतन सत्ता ही जड़ पदार्थों की उत्पत्ति करती है। इस जड़ जगत के पीछे एक विराट् चेतना काम कर रही है।”

सर जेम्स जीन्स ने “ दि न्यू बैंक ग्राउण्ड ऑफ साइन्स” नामक पुस्तक में यह उल्लेख किया है−

“उन्नीसवीं सदी में विज्ञान का मूल विषय भौतिक जगत था लेकिन अब प्रतीत हो रहा है कि विज्ञान जड़ पदार्थों से अधिकाधिक दूर होता जा रहा है।”

“दि मिस्टीरियस युनिवर्स” में उन्होंने लिखा है− “वैज्ञानिक विषय के संदर्भ में हमने जो पूर्व मान्यता बना ली है अब उसकी पुनः परीक्षण की आवश्यकता है। जड़ जगत को जो प्रधानता दे बैठे थे− अब प्रतीत हो रहा है कि वह गौण है। जड़ जगत के पीछे एक नियामक सत्ता काम कर रही है।

प्रो.ए.एस. एडिंगटन ने का है− “अब विज्ञान इस निर्णय पर पहुँचा है कि समस्त सृष्टि को एक अज्ञात शक्ति गतिमान कर रही है”

“अब विज्ञान का जड़ पदार्थों से लगाव समाप्त हो गया। चेतन, मन, आत्मा का अस्तित्व माना जाने लगा है। चेतन सत्ता ही जड़ जगत की उत्पत्ति का मूल कारण है।”

प्रसिद्ध वैज्ञानिक हरवर्ट स्पेन्सर ने कहा−” जिस शक्ति को मैं बुद्धि की पहुँच से परे मानता हूँ वह धर्म का खण्डन नहीं करती अपितु उसे और अधिक बल पहुँचाती है।”

प्रसिद्ध वैज्ञानिक एल्फ्रेड रसेल वैलेस ने अपनी पुस्तक “सोशल इनवाइरमेन्ट एण्ड मॉरल प्रोग्रेस “ में स्पष्ट लिखा है− “ मुझे विश्वास है कि चेतना ही जड़ पदार्थों को गति प्रदान करती है।”

सन् 1934 में “दि ग्रेट डिजाइन” नामक पुस्तक में चौदह वैज्ञानिकों ने अपना मत इस प्रकार प्रकट किया− “यह संसार चेतना रहित कोई मशीन नहीं है। इसका निर्माण अकस्मात् ऐसे ही नहीं हो गया। ब्रह्माण्ड के सभी क्रिया कलापों को एक चेतन शक्ति नियन्त्रित कर रही है चाहे हम उसे कुछ भी नाम दे दें।”

अलबर्ट आइंस्टीन ने कहा है−”मैं ईश्वर को मानता हूँ। इस अविज्ञात सृष्टि के अद्भुत रहस्यों में वह ईश्वरीय शक्ति ही परिलक्षित होती है। अब विज्ञानों भी इस बात का समर्थन कर रहा है कि सम्पूर्ण सृष्टि का नियमन एक अदृश्य चेतन सत्ता कर रही है।”

जे.बी.एम. हैलडेन ने लिखा है −” अविज्ञात सृष्टि के कुछ ही रहस्यों को हम जान पाये हैं। सृष्टि को हम एक निर्जीव मशीन मात्र समझ रहे थे − यह हमारी भूल थी। वास्तव में यह सृष्टि चेतन शक्ति से सम्बद्ध है। जड़ पदार्थों का संचालन यह चेता शक्ति कर रही है।”

आर्थर एस. एडिंगटन ने लिखा है − “ईश्वर का अस्तित्व नहीं है यह मान्यता टूट चुकी है। चूँकि धर्म खण्डन नहीं किया जा सकता।”

आर्थर एस. क्राँम्पटन ने कहा है—”हमारे चिन्तन मनन को न केवल मस्तिष्क ही प्रभावित करता है वरन् इससे भी आगे एक शक्ति की सम्पूर्ण जानकारी तो नहीं मिल पायी है लेकिन यह निश्चित है कि मृत्यु के बाद भी उस चेतना का अस्तित्व तना रहता है।”


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