जिससे मृत्यु भी डरती हैं

July 1982

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यह सुनकर अत्यन्त आश्चर्य होता है कि प्राचीन काल में सौ वर्ष से अधिक आयु तक जीवित रहना एक सामान्य बात थी। कि ऐसे उदाहरण अब मात्र अपवाद बनकर रह गये हैं शतायु पार करने वाले व्यक्तियों को तो अब दैवीय सामर्थ्य से सम्पन्न मानकर संतोषकर लिया जाता है। पर वास्तविकता यह है कि प्राकृतिक जीवनचर्या अपना कर कोई भी व्यक्ति जीवन का लाभ प्राप्त कर सकता है, पर समय समय पर विरले व्यक्तियों के तो उदाहरण मिलते रहते हैं। जो शतायु को पार कर चुके हैं, पर हाल ही में एक ऐसे गाँव का उदाहरण सामने गाँव का कोई भी व्यक्ति सौ वर्ष के पूर्व नहीं मारता है।

सोवियत रूस से प्रकाशित होने वाली मासिक पत्रिका स्पूतनिक के मार्च 1882 अंक में ऐसे ही एक गाँव का उल्लेख है जहाँ कि शतायु प्राप्त करने वाले व्यक्तियोँ का जमघट है। रूस के दक्षिण पश्चिम भाग के अझैटवैजन प्रान्त के वृहत् काकेशश पहाड़ी के बीच तेट नेट नदी की घाटी में अवस्थित उस गाँव का नाम है− कासिंमबीना केण्ड। सारे संसार में मात्र यही एक ऐसा गाँव है जहाँ कि प्रायः अधिकांश व्यक्तियों की मृत्यु सौ वर्ष करने के बाद ही होती है। समुद्र तल से तीन हजार मीटर ऊपर बसे इस गाँव के चारों ओर गगनचुम्बी पर्वत की चोटियाँ गाँव के चारों ओर आठ माह तक बर्फ रूपी चादर ताने रहती हैं प्रकृति का यह अनुपम श्रृंगार देखते बनता है। ऐसी मान्यता है पहले यह गाँव सुनसान था। भीषण ठंड और आवागमन की असुविधा के कारण लोग वहाँ रहने से कतराते थे। कासिंमबीना केण्ड गाँव का नाम कासिंम नामक एक व्यक्ति के कारण पड़ा कहते है कि प्रकृति के इस उन्मुक्त ‘नयनाभिराम अंचल में स्थायी रूप से रहने का दुस्साहस उस व्यक्ति ने किया। धीरे धीरे परिवार की आबादी बढ़ती गयी और पूरा गाँव ही बस गया। कासिम की मृत्यु 130 वर्ष पूरे करने पर हुई। गाँव में परिवारों की संख्या अब दो सौ के लगभग है।

इस गाँव में अभी दर्जनों ऐसे हैं जिनकी आयु सौ वर्षों से ऊपर 148 वर्षीय गुलीयण्डम मेरी नामक वृद्धा जो अपने को युवती कहती है आज भी नव जवानों की भांति घुड़ सवारी करते देखा जा सकता है। दर्शक उसकी अधिकतम आयु पचास वर्ष आँकते हैं। ‘रुस्तम कीशी’ नामक व्यक्ति की आयु 120 वर्ष है। वन रक्षक का कार्य पूरी मुस्तैदी से संभलते उन्हें देखा जा सकता है। रुस्तम कीशी के साथ ही उसका 135 वर्षीय मित्र लकड़ी का व्यवसाय करता है। कईबार वन विभाग ने रुस्तम को सवैतनिक स्थायी रूप से छुट्टी देनी चाही पर उसने यह कहकर लेने से इंकार कर दिया कि काम के बिना तो मैं जिन्दा भी नहीं रह सकता।

उनके दीर्घ जीवन का रहस्य जानने के लिए विश्व के कितने ही देशों के विशेषज्ञ वहाँ जा चुके है। सबने एक स्वर से स्वीकार किया है कि गाँव के लोगों की निरोगता, स्वस्थता तथा दीर्घ जीवितता का एकमात्र रहस्य है− “उसकी प्राकृतिक जीवनचर्या। आज की तथाकथित सभ्यता की कृत्रिम जीवनचर्या के प्रभाव से ये अभी भी अछूते हैं। प्रसन्नता प्रफुल्लता चेहरे से टपकती रहती है। क्रोध एवं आवेश को वे रोगों की श्रेणी में गिरते हैं। आहार में दूध, फल, साग, सब्जियों की प्रधानता देते हैं। परिश्रम उनका आभूषण है। ग्रामवासियों के साक्षात्कार के लिए गये एक पत्रकार कहना है कि “ रुग्णता दुर्बलता एवं अशक्तता के दावानल में जलते सुख−सुविधाओं से युक्त आज के प्रगतिशीलों को जीवन कैसे जीना चाहिए, यह प्रेरणा इन पिछड़े ग्रामवासियों से लेनी चाहिए।”


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