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July 1982

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समाधौ क्रियमाणे तु विघ्ना आयन्ति वैबलात्। अनुसन्धानराहिल्यमालस्यं भोगलालसम्॥

लयस्तमश्च विक्षेपो रसास्वादश्च् शून्यता। एवं यद्विघ्नबाहुल्यं त्याज्यं ब्रह्विदा शनैः॥ —अपरोक्षानुभूति—127-128

‘समाधि का अभ्यास करते समय कौन−कौन से विघ्न आते हैं, जिनसे साधक को सावधान रहने की नितान्त आवश्यकता होती है। इस विषय में आचार्य शंकर का मत है कि—समाधि के अभ्यास के समय—अनुसन्धान राहिल्य, आलस्य भोगेच्छा, लय, तम, विक्षेप, रसास्वाद और जड़ता [शून्यता] आदि विघ्न हठात् आ जाते हैं। इन आने वाले विघ्नों के प्रति साधक—ब्रह्मवेत्ता—को समाधान रहना चाहिए और शनैःशनैः उसे दूर करना चाहिए।


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