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July 1982

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योग साधना में कई प्रकार की ध्यान धारणाएँ− प्राणायाम, बंध, मुद्रा, व्रत, उपवास, तितिक्षा आदि का अभ्यास करना पड़ता है और कराया जाता है। यह टानिक सेवन एवं चिकित्सा उपचार की तरह विशेष प्रयोग है। यह फलप्रद भी है और सहयोगी सहायक भी। इतने पर भी यह नहीं समझा जाना चाहिए कि कुछ समय तक कुछ क्रिया−प्रक्रिया करने भर से आत्मिकी की प्रयोगशाला की तरह कार्य−सत्ता को विकसित परिष्कृत किया जा सकेगा। इसके लिये चिन्तन में उत्कृष्टता और चरित्र में आदर्शवादिता का अधिकाधिक समावेश करना होता हैं।

*समाप्त*


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