उद्देश्य स्वाध्याय और सत्संग को ध्यान योग का ही अंग माना गया है। उत्कृष्टता की गरिमा पर श्रद्धा केन्द्रित करने को ‘चिन्तन’ और उसे आज की स्थिति में क्रियान्वित करने को आकाँक्षा उभारना—योजना बनाना—मनन कहलाता है। योगाभ्यास की ध्यान योजना के अंतर्गत आत्म−समीक्षा, आत्म−परिष्कार, आत्म−निर्माण, आत्म−विकास की सुविस्तृत रूपरेखा खड़ी करना तथा उसे सफल बनाने के लिए कटिबद्ध होना प्रमुख कार्य है। इसी के निमित्त साधना, स्वाध्याय, चिन्तन, मनन के चार आधार अपनाने पड़ते हैं। एकाग्रता, मेडीटेशन, ध्यान योग के अंतर्गत यह प्रयोजन भी जुड़े रहते हैं अन्यथा मन को एक कल्पना तक देर तक रोके रहने से योगाभ्यास का वह उद्देश्य पूरा न हो सकेगा जिसके आधार पर आत्म−सत्ता की आत्मिकी को प्रयोगशाला के रूप में परिणित करने की सम्भावनाओं को साकार किया जाना है।