जड़ चेतन में समाई हुई परमशक्ति

July 1982

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प्रकृति की समस्त हलचलों का केन्द्र बिन्दु एक केन्द्रीय शक्ति है। वही विविध रूप धारण करती तथा केन्द्रीय शक्ति है। वही विविध रूप धारण करती तथा संसार को रचती है। सम्पूर्ण सृष्टि में वही संव्याप्ति है। वेदान्त को रचियता हैं। सम्पूर्ण सृष्टि में वही सव्यसाची है। वेदान्त में इस महाशक्ति को ब्रह्म कहा गया है। वेदान्त दर्शन के अनुसार ब्रह्मा के अतिरिक्त ब्रह्माण्ड में और कुछ नहीं है। “एको ब्रह्मा द्वितीयोनास्ति” की उक्ति इसी तथ्य पर आधारित है। उसके प्रकाश से ही तारे, नक्षत्र, सूर्य सभी प्रकाशित हैं। जीव, जन्तु, वनस्पतियों में उसकी चेतन तरंगें ही क्रीड़ा−कल्लोल कर रही हैं। उत्पत्ति, विकास एवं विनाश की प्रक्रिया इस महाशक्ति द्वारा ही संचालित है।

जिस प्रकार सूर्य ओस की असंख्यों बूँदों में असंख्य प्रतीत होता है उसी प्रकार देश काल की परिधि में आकर उससे परे रहते हुए भी वह शक्ति में भिन्नता होते हुए भी कारणभूत सत्ता की दृष्टि से समस्त जड़ चेतन में वही विद्यमान है। सृष्टि की समस्त रचनाएं उसकी ही क्रमिक अभिव्यक्तियाँ हैं। इस तथ्य के अनुसार सारा संसार एक शक्ति के सूत्र में माला के मनके के मसान गुँथा हुआ है। गुँथने वाली इस शक्ति को ही लौकिक परिभाषा के अनुसार ‘मन’ कहा गया है। सबमें विद्यमान इस सूक्ष्म शक्ति द्वारा ही सृष्टा समस्त प्रकृति पर नियंत्रण रखता एवं संचालन करता है।

ब्रह्माण्ड की वास्तविक शक्ति सूक्ष्म में ही निहित है। ऊर्जा, प्रकाश,चुम्बकत्व, गुरुत्वाकर्षण, विद्युत उसी के विविध रूप हैं। इन सबके समष्टिगत स्वरूप कोही ब्रह्म कहा गया है। आधुनिक विकासवाद की अवधारणा भी इस सिद्धान्त पर ही अवलम्बित है। जीव द्रव्य (प्रोटोप्लाज्म) से जीव के विकास प्रक्रिया में एक शक्ति के अनेक में रूपांतरित होने का ही तथ्य छिपा है। सापेक्षवाद के प्रवर्तक भौतिक शास्त्र के मूर्धन्य वैज्ञानिक आइन्स्टीन के अनुसार सर्वत्र ऊर्जा संव्याप्त है। समस्त पदार्थ ऊर्जा के ही स्थूल रूप हैं। ठोस,द्रव्य,गैस की विभिन्न अवस्थाएँ ऊर्जा की क्रमशः स्थूल से सूक्ष्म तर स्थितियाँ हैं ये अवस्थाएँ परिवर्तनशील हैं। स्थूल से सूक्ष्म से स्थूल में बदलती रहती हैं। इसे जीवन चक्र नाम ऊर्जा के रूपांतरण प्रक्रिया के कारण ही दिया गया है। ठोस रूप में दिखायी पड़ने वाला पदार्थ भी अत्यधिक विकिरण के प्रभाव से सूक्ष्म से सूक्ष्मतर अवस्था में परिवर्तित हो जाता है। यह प्रकाश की गति प्राप्त करले तो पूर्णतया ऊर्जा में परिवर्तित हो जायेगा। इसका स्थूल स्वरूप अदृश्य हो जायेगा।

एक ही शक्ति किस प्रकार विभिन्न रूपों में रूपांतरित होती रहती है, इसे भौतिक विज्ञान के अनुसार समझा जा सकता है। किसी भी द्रव्य की तीन भौतिक अवस्थाएँ हैं—ठोस, द्रव एवं गैस। समयानुसार यह अवस्थाएँ परस्पर परिवर्तित होती रहती हैं। ठोस के रूप दिखाई पड़ने वाला बर्फ ताप के संपर्क में आते ही द्रव में बदल जाता है। तापक्रम बढ़ा देने से वाष्पित होकर गैस अवस्था प्राप्त कर लेता है। इसकी उल्टी प्रक्रिया भी चलती है। भाप शीत के संपर्क में आने पर अथवा कम ताप होने पर द्रव एवं तापमान न्यून हो जाने पर जमकर बर्फ बन जाती है। यह प्रक्रिया समस्त प्रकृति में चलती है। पानी का वाष्पित होकर बादलों में परिवर्तित होना तथा सघन होकर पानी के रूप में बरसना प्रकृति की एक अनिवार्य प्रक्रिया है। यही पानी नदी, नालों के माध्यम से जीव−जन्तुओं एवं वनस्पतियों के शरीर में पहुँचता है। शरीर के तत्वों से मिलकर रक्त, जीवनी शक्ति, स्थूल अंशों से संयुक्त होकर—माँस मज्जा एवं हड्डियों का निर्माण करता है। वनस्पतियों में घुल मिलकर वह उसका ही अंश बन जाता है। जीवों के मरने पर उसके स्थूल अवयव, जल एवं सड़गल कर पुनः सूक्ष्मावस्था में पहुँच जाते हैं। व्यक्त से अव्यक्त से अव्यक्त और अव्यक्त से व्यक्त अवस्था में ऊर्जा की रूपांतरण प्रक्रिया में समस्त सृष्टि का व्यापार चल रहा है। परिवर्तन की यह प्रक्रिया पदार्थ के असंख्यों परमाणुओं के परस्पर संयोग एवं वियोग के कारण ही हो पाती है। इन परमाणुओं की गतिशीलता के कारण ही स्वरूप में परिवर्तन होता है।

अनेकों रासायनिक जटिल प्रक्रियाओं से गुजरते हुए यह शक्ति भी उस महाशक्ति का ही भौतिक रूप है। विशिष्ट प्रक्रियाओं में आकर एक शक्तियों में रूपांतरित हो जाती है। प्रकाश, ताप विद्युत, चुम्बकत्व, गुरुत्वाकर्षण, घर्षण, दबाव उसके ही विविध रूप है। नवीन वैज्ञानिक शोधों द्वारा यह सिद्ध हुआ है कि गुरुत्वाकर्षण को छोड़कर सभी भौतिक शक्तियाँ मूल रूप सु चुम्बकीय स्वरूप भी पदार्थ के परमाणुओं की गतिशीलता के कारण ही उत्पन्न होता है।

आइन्स्टीन के सापेक्षवाद सिद्धान्त के अनुसार विविध सापेक्ष आधारों के कारण ही संसार का विभिन्न स्वरूप दिखायी पड़ता है। जड़−चेतन के बीच भेद भी सापेक्ष आधारों की विषमता के कारण है। यदि सम्पूर्ण प्रकृति एवं सभी जड़−चेतन को देखने का कोई निरपेक्ष आधार करतल गत हो जाय तो संसार के वास्तविकास्वरूप का पता लग सकता है। सर्वत्र एक सत्ता, एक शक्ति का बोध तो निरपेक्ष सत्ता के अवलम्बन से ही सम्भव है। विविधता तो आधारों की भिन्नता के कारण दृष्टिगोचर होती है। संसार को समझने एवं सर्वत्र व्याप्त एक महाशक्ति की अनुभूति करने के लिए उस अपरिवर्तनीय नित्य, चेतना का ही अवलम्बन लेना होगा। विज्ञान के बढ़ते हुए चरण अब उस केन्द्र बिन्दु पर पहुँच रहे हैं जहाँ से ऋषियों ने उद्घोष किया था।

ईशावस्यनिदं सर्वं यत्किञ्च लगत्याँ जगत्। — ईशावास्योपनिषद्

इस समस्त जगत में जो कुछ भी जड़ और चेतन दृष्टिगोचर हो रहे हैं वे सभी ईश्वर में ही व्याप्त हैं।

परमाणु के विविध कणों से विनिर्मित होने के सिद्धान्त से आगे बढ़कर विद्युत तरंगों के रूप में प्रतिपादित होने से पदार्थों की भिन्नता का सिद्धान्त भी खण्डित हो रहा है। नवीनतम शोधों के अनुसार विद्युत तरंगों की विविध गति के कारण ही एक पदार्थ के परमाणु दूसरे पदार्थ के परमाणु में अन्तर होता है यह अन्तर ही पदार्थों की भिन्नता के रूप दिखायी पड़ता है।

भौतिक शास्त्र के प्रख्यात विद्वान ‘सर जेम्स जीन्स’ का कहना है कि “विद्युत तरंगों का सिद्धान्त प्रकृति की एकरूपता एवं उसके असंख्यों संरचनाओं में व्याप्त एक महाशक्ति का बोध कराता है।” ‘जेम्स जीन्स’ का यह प्रतिपादन भारतीय दर्शन की एक शक्ति, अवधारणा का ही समर्थन करता है।

सैद्धान्तिक दृष्टि से दर्शन एवं विज्ञान सृष्टि में संव्याप्त एक महती चेतना की ही पुष्टि करते हैं। इसकी अनुभूति के लिए तो आत्म विज्ञान का ही अवलम्बन लेना होगा। साधना सोपानों पर चढ़ते हुए इस सत्य की अनुभूति की जाती है। सत्य के दिग्दर्शन के साथ ही उस महाशक्ति के सान्निध्य से मिलने वाले दिव्य अनुदानों का भी रसास्वादन किया जा सकता है। यह इतनी बड़ी उपलब्धि है जिसे प्राप्त करने के उपरान्त न कुछ जानना शेष रह जाता है और न ही कुछ पाने की कामना रह जाती है। इस एकत्व की अनुभूति ही जीवन का परम लक्ष्य है।


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