धरती से लोक लोकान्तरों का आवागमन मार्ग

July 1982

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वारमूडा त्रिकोण क्षेत्र में पाये गये ‘ब्लैक होल’ के प्रसंग को ध्यान में रखते हुए से शताब्दी के खगोल वेत्ताओं ने भारी खोज बीन की है और यह जानने में सफलता पाई है कि आखिर यह आकाश क्षेत्र में पाये जाने वाले यह अदृश्य भँवर है क्या?

पता चला है कि वह विस्तार के तारे जब मरते हैं तो अपनी स्मृति से एक विचित्र कुतुबमीनार या अशोक की लाट खड़ी कर जाते हैं। इन विजय स्तम्भों के साथ जितनी विभीषिकाएँ जुड़ी हुई हैं उतनी ही असीम शक्ति स्रोत के रूप में उनकी विशेषता भी प्रकाश में आती है। धरती निवासियों को एक ही ब्लैक होल से पाला पड़ा है और वह नितान्त कटु तथा भयानकता भरी छाप ही छोड़कर गया है। इतने पर भी यह कहा जा सकता है कि इस नियमित जो खोजें हुई हैं वे भावी सम्भावनाओं के सम्बन्ध में बिजली कौंधने जैसी आशा भारी चमक दिखाते है। ब्लैक होलों के माध्यम से लोकलोकान्तरों के मध्य आवागमन की एक कड़ी जुड़ती है। इन भंवरों से भरी असीम शक्ति स्रोत के साथ सम्बन्ध जुड़ जाने पर इतनी ऊर्जा उत्पन्न हो सकती है कि आवश्यकताएँ बिना किसी कठिनाई के सहज पूरी होती रह सकें।

ग्रह तारकों के जीवन मरण की अन्त्येष्टि और पिण्ड तर्पण प्रक्रिया पर भी इस खोज ने ऐसा प्रकाश डाला है जो इससे पूर्व उपलब्ध नहीं था। प्रयासों को गति मिली तो धरती निवासियों को अपनी मातृभूमि से भी अधिक महत्वपूर्ण ग्रह नक्षत्रों की रिश्तेदारी बिरादरी का भी बहुत कुछ परिचय प्राप्त हो सकेगा। कहना न होगा कि जिस प्रकार प्रकृति के अविज्ञात रहस्यों को जानकर मनुष्य निवासी न केवल प्राणि जगत का मूर्धन्य बना है वरन् इस ब्रह्माण्ड में अपनी विशेष स्थिति बनाकर रह रहा है। यह जानकारियाँ जिस अनुपात से बढ़ेगी उतने ही नये शक्ति स्रोत हाथ लगेंगे। सदुपयोग बन पड़ा तो मनुष्य धरती का नहीं समूची प्रकृति का भी अधिष्ठाता बन सकेगा।

ब्लैक होलों को मृतक तारा पिण्डों की समाधि का जा सकता है मिस्र के पिरामिड वहाँ के शासकों को सजीव स्मृति है। ताजमहल का नाम भी इस सिलसिले से अविस्मरणीय ही रहेगा ब्लैक होलों को मृत तारकों को कौतूहल युक्त तथा अनेक असंभावनाओं −रहस्यों से भी पूरी वाला समाधि कहा जाय तो अत्युक्ति न होगी

खगोल शास्त्रियों का कहना है कि यदि ब्लैक होल के शक्ति भण्डार का उपयोग किया जा सके तो ऊर्जा के लिए मुहताज न होना पड़े। ब्लैक होल का शक्ति भण्डार अनन्त काल तक चलाने वाला होता है, ऐसी मान्यता है

कोई एक विशालकाय तारा जब मृत्यु के सन्निकट पहुँचता है तब उस दृश्य का अवलोकन करते हुए खगोलशास्त्रियों ने बताया कि उस अवधि में तारे का प्रकाश करोड़ों गुना बढ़ जाता है। यह इतना अधिक बढ़ता है कि सम्पूर्ण तारा समूह का प्रकाश एक ओर इस मृतप्राय तारे का प्रकाश और विकिरण एक ओर। कई अरब वर्षों में एक तारे से जो प्रकाश शक्ति निःसृत होती है मृत्यु के कुछ घण्टे पूर्व उतनी ही मात्रा में शक्ति व प्रकाश प्रवाहित हो जाता है। यदि अति विशालकाय तारे की मृत्यु का गहराई से अध्ययन किया जाय तो उसकी मृत्यु के साथ कभी कभी एक ब्लैक होल का जन्म हो जाता है। खगोल शास्त्रियों ने मृतप्राय तारे की तुलना करने हुए बताया है कि जिस पर ज्वलनशील पदार्थ या लकड़ी से निर्मित 40−50 मंजिल का मकान जलते−2 ही टूटकर गिरने लगता है और अन्त में बहुत छोटे रूप में शेष रह जाता है उसी प्रकार तारा भी जलते−2 अपने करोड़ों गुने छोटे रूप में संकुचित हो जाता है।

तारों के सामान्यतः तीन प्रकार होते है। (1) वामन (2) विराट् और (3) समरूप। तारों की पहचान सामान्यतः उनके तापमान से की जाती है रंग उनके तापमान का द्योतक है। लाल तारे औसतन ठण्डे तारे हैं। जबकि नीले तारे अत्यन्त गरम। इन दोनों के बीच नारंगी, पीले, पीतश्वेत और नीलश्वेत तारे आते है। लाल तारों का तापमान दो हजार से तीन हजार सेंटीग्रेट तक है। तारंगी का 4 हजार पीले का 6 हजार पीत श्वेत 8 हजार और नील श्वेत 10 अति नीले तारे का तापमान 20 हजार से 30 हजार सेंटीग्रेट होता है। हमारा सूर्य 6 हजार सेन्टीग्रेट तापमान वाला एक पीला तारा है।

तेजस्वी तारों को ‘विराट्’ तथा निस्तेज को वामन कहा गया है। हमारा सूर्य ‘समरूप’ है। श्वेत वामन का तापमान ज्यादा होने पर भी उनकी सतह बहुत छोटी होती है क्योंकि वामन तारे के द्रव्य की घनता बहुत अधिक है।

सभी तारों की तुलना में नील तारे कम उम्र वाले होते है इन्हें युवा तारे कहते हैं। लाल तारे अधेड़ उम्र के होते हैं। सूर्य जैसे समक्रम तारे अपना स्वरूप कई अरब वर्षों के बाद बदलकर लाल विराट् तारे के रूप परिवर्तित होते हैं। लेकिन इस स्थिति को प्राप्त करने से पूर्व कई परिवर्तन होते है। उसे रूपविकारा (पलसेटिंग) तारा कहते हैं। कई अरबों वर्ष बाद वह श्वेत तारा बनता है।

अपने सूर्य से जो तारे कम से कम तीन गुने बड़े हैं उनका ही ब्लैक होल में परिवर्तन हो सकता है। इससे छोटे श्वेत वामन बन जाते है। वैज्ञानिकों का कहना है कि जब कोई विराट तारा अपनी ऊर्जा शक्ति समाप्त कर चुका हो तब वह इतना संकुचित हो जाता है कि प्रकाश की बाहर नहीं निकल पाता।

यदि कोई विराट तारा जो सूर्य में 10 गुना बड़ा हो, उसकी मृत्यु हो तो वह ब्लैक होल में प्रवर्तित होता है। उस स्थिति में यह कितना संकुचित होता है इसे प्रकार समझा जा सकता है। गुरु पृथ्वी से 13 सौ गुना बड़ा है और सूर्य गुरु से 1 हजार गुना बड़ा है। तो 10 सूर्य जितने आकार का तारा पृथ्वी से 130 लाख गुना बड़ा होता। ब्लैक होल बनने के बाद यह विराट् तारा पृथ्वी पर स्थित किसी हवाई टापू जितना रह जाता है अपने स्वरूप से कितने अरबों गुना छोटा हो जाता है?

ब्लैक होल 2 प्रकार के होते है(1) भँवरदार और (2) बिन भँवर वाले। जैसे नदियों में कई स्थान पर गहरे पानी में भँवर होती है ठीक उसी प्रकार ब्लैक होल भी अपने पास जाने वाली किसी भी वस्तु को अपनी ओर लेता है। इसी एक लक्षण द्वारा ब्लैक होल का अनुमान लगाया जा सकता है। क्योंकि यह प्रकाश भी सोख लेता है।

सर्वप्रथम ब्लैक होल सिग्नस (नराश्व) तारा विश्व में पाया गया जिसे सिग्नस एक्स बन नाम दिया गया। वृश्चिक राशि (स्कोरपिओ) में भी एक ब्लैक होल पाया गया है जिसे जी एक्स 336 −4 नाम दिया गया है दिनों दिन ओर अधिक ब्लैक होलों का पता लगाया जा रहा है।

हमारे मंदाकिनी तारा ‘विश्व’ में ही 50 लाख से ब्लैक होने की सम्भावना है। एक बड़ी ब्लैक होल कन्या राशि में पाया जाता है जिसका एम 85 नाम है। एवं पृथ्वी से 6 करोड़ प्रकाश वर्ष दूर है।

प्रसिद्ध भौतिकविद् ‘जॉन ए विलर’ की मान्यता है कि एक ब्रह्माण्ड से दूसरे ब्रह्माण्ड में जाने के लिए गुप्त सुरंग मार्ग ब्लैक हो सकते है।

कैंब्रिज यूनिवर्सिटी के अनुसंधानकर्ता स्टीफन होडिंग के अनुसार ब्लैक होल में स्थल और समय का कोई बन्धन नहीं होता। ब्लैक होल के माध्यम से मनुष्य वर्तमान से कई लाखों वर्ष पूर्व और लाखों वर्ष आगे भी पहुँच सकता हैं।

स्टीफन ने कहा है ब्लैक होल में कण और प्रति कण एक दूसरे को नष्ट करते रहते हैं

जिस प्रकार ब्लैक होल प्रत्येक प्रकार के पदार्थ एवं प्रकाश किरण सोख लेता है और कही कुछ दिखाई नहीं देता है। इसी ब्रह्माण्ड में खगोलविदों ने ऐसे स्थान पाये हैं जहाँ पहले कुछ नहीं था वहाँ तीव्र गति से प्रकाश गति से प्रकाश एवं अनेकों प्रकार के आयोनाइज कण पाये गये। ऐसे स्थानों को ‘व्हाइट होल’ और ‘व्हाइट होल’ के बीच आपस सम्बन्ध है। दोनों के माध्यम को ‘वर्महोल’ कहते हैं।

व्हाइट होल की खोज के बाद वैज्ञानिक अनुमान लगा रहे हैं कि संलग्न व्हाइट होल और ब्लैक होल के माध्यम से किसी अन्य ब्रह्माण्ड में भी पहुँचा जा सकता है क्या? इस संदर्भ में वैज्ञानिकों ने अनुमान लगाया है कि इन संलग्न ब्लैक और व्हाइट होल के माध्यम में किसी अन्य ब्रह्माण्ड में कुछ ही समय में पहुँच सकते है क्या? जबकि यदि सीधे मार्ग से चला जाय तो कई अरब वर्ष लग जायेंगे।

महाभारत काल में भगीरथ से पूर्व सगर राजा ने अश्वमेध यज्ञ किया था। इस यज्ञ का घोड़ा घूमते घूमते किसी ऐसे अज्ञात स्थान में पहुँच गया जिसका पता नहीं लगा। उसे ढूंढ़ने में 60 हजार का जन समुदाय भी गायब हो गया। किंवदंती है वे सब पाताल पहुँच गये और भगीरथ ने तप द्वारा गंगा अवतरण कर उनका उद्धार किए। ऐसी ही कुछ गति इन तारकों का भी होती होगी।

1980 में ‘स्पेस शटल’ नामक अन्तरिक्ष यान पर गामाकिरण संवेदनशील टेलिस्कोप लगाने की योजना थी जो ऐसे ब्लैक होलों पर लगा सके। इस वर्ष यह योजना पूरी हो गयी है।

यदि हमारे सूर्य मण्डल में ऐसे कुछ के ब्लैक होल का पता लगा सके तो उसके ऊर्जा भण्डार का उपयोग कर सकते हैं। ब्लैक होल की प्रचण्ड ऊर्जा शक्ति को माइक्रोवेव में परिवर्तित करके पृथ्वी की भ्रमण कक्षा में प्रवेश करने की कल्पना वैज्ञानिक कर रहे हैं। अनुमान है कि अनन्त काल तक विश्व की ऊर्जा ईंधन की समस्या का हल हो सकता है।

यह अनुमान उन अनन्त सम्भावनाओं में से एक है जिसमें ब्लैक होलों से लाभान्वित होने के बात सोची गई है। अधिक महत्वपूर्ण बात वह है जिसमें लोक लोकान्तरों के आवागमन का द्वार खुलता है और उनके साथ आदान प्रदान का सिलसिला चल पड़ने पर ऐसी सम्भावनाओं का स्वरूप निखरता है जिसमें मनुष्य का स्थिति पौराणिक देवताओं से कम नहीं वरन् अधिक अच्छी ही रहेगी।


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