किं करोमिवव गच्छामि किं गृह्यामि त्याजामि किम्। आत्माना पूरितं सर्वं महाकल्पाम्षुना यथ॥ —योगवाशिष्ठ
जिस प्रकार प्रलयकाल में सर्वत्र जल ही जल होता है उसी प्रकार आत्मा की सर्वत्र उपस्थिति होती है, जब सब ओर ब्रह्मा ही− आत्मा ही व्याप्त है, तो क्या करूं, कहाँ जाऊँ? क्या छोड़ूं? इत्यादिक समस्त प्रश्नों का समापन हो जाता है।