प्रगति तो हुई-पर किस दिशा में

June 1976

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अपने इस युग को प्रगति का युग माना जाता है। कहा जाता है कि जो जानकारियाँ एवं सुविधाएँ पूर्वजों को प्राप्त थीं, उनकी तुलना में अपनी उपलब्धियाँ कहीं अधिक बढ़ी-चढ़ी हैं। यह दावा इस हद तक ही सही है कि निस्सन्देह बढ़ोतरी हुई है, पर प्रगति किस दिशा में हुई है यह विचारणीय है। बढ़ना उत्थान की दिशा में भी हो सकता है और पतन की ओर भी। साधनों की मात्रा बढ़ाने में नहीं वरन् उनका सदुपयोग कर सकने वाली बुद्धिमत्ता के बढ़ने पर ही यह कहा जा सकता है कि-प्रगति हुई। यदि बढ़े हुए साधन विनाश-विग्रह और पतन के लिए प्रयुक्त किये जा रहे हैं तो यही कहना पड़ेगा कि इस उन्नति की तुलना में वह अभावग्रस्तता अच्छी थी जिसमें मनुष्य स्नेह, सद्भाव और चैन सन्तोष के साथ रहने देता था।

वर्तमान प्रगति किस दिशा में हुई है उससे हमने क्या पाया है? मानसिक, शारीरिक और सामाजिक सुख-शान्ति के बढ़ने में-मानवी मूल्यों को बढ़ाने में उससे कितना योगदान मिला है। यह विचारने योग्य बात है।

योरोप का सबसे प्रगतिशील व्यवसायी देश है- पश्चिमी जर्मनी और इस महाद्वीप का सबसे अधिक सम्पन्न देश है फ्राँस। इन दोनों देशों की प्रजा बहुत सुसम्पन्न और साधनों से भरपूर है।

इस समृद्धि का उपयोग क्या हो सकता है यह उन्हें विदित नहीं। व्यक्तिगत विलासिता के अतिरिक्त और भी हो सकता है यह सोचने की उन्हें फुरसत नहीं है। विलासिता की मस्ती ही उन्हें जीवन की उपलब्धि प्रतीत होती है। अकेले पैरिस नगर में 1500 क्लब ऐसे हैं जिनमें युवा नर-नारी निर्वसन होकर नृत्य करते और राग-रंग में लीन रहते हैं। नशेबाजी आकाश चूमने लगी है। प॰ जर्मनी में 4 लाख पुरुष और 2 लाख स्त्रियाँ ऐसी हैं जो अहर्निशि नशे में चूर पड़े रहते हैं। फ्रांस में एक लाख आबादी पीछे हर साल 10 व्यक्ति नशे की अधिकता से दुर्घटनाग्रस्त होकर बेमौत मरते हैं। अमेरिका में नशेबाजी के कारण मरने वालों की वार्षिक संख्या 3,50,000 पहुँच चुकी है।

अस्त-व्यस्त, अनिश्चित आशंकाग्रस्त एवं एकाकी जीवन का तनाव इतना भारी पड़ रहा है कि लोग नींद की गोली खाये बिना मस्तिष्कीय उत्तेजना से पीछा छुड़ा ही नहीं पाते। यह नींद की गोलियाँ दैनिक आहार में शामिल हो गई हैं। दिन-दिन बढ़ता तनाव-नशीली गोलियों का घटता प्रभाव-अधिक मात्रा में सेवन करने के लिए विवश करता है उस समय तो लगता है कि अनिद्रा की व्यथा से छुटकारा पाने का अस्त्र हाथ लग गया किन्तु शरीर के सूक्ष्म संस्थानों में यह विषाक्तता इतनी गहराई तक घुस जाती है कि उनमें विविध प्रकार की व्याधियाँ उठ खड़ी होती हैं। सन्तानोत्पादन पर तो नशेबाजी का और भी बुरा प्रभाव पड़ता है। अमेरिका में हर वर्ष ढाई लाख बच्चे विकलाँग पैदा होते हैं। पिछले वर्ष ऐसे बच्चों की संख्या डेढ़ करोड़ से ऊपर निकल गई थी। इंग्लैंड में हर 40 नवजात शिशुओं में एक विकलाँग या अर्ध विक्षिप्त उत्पन्न होता है। हाँगकाँग में 87 के पीछे एक- स्पेन में 75 पीछे एक-आस्ट्रेलिया में 56 पीछे एक बच्चा विकलाँग पैदा होता है इसका एक कारण नशेबाजी की नर एवं नारियों की बढ़ती हुई आदतें रात को नींद की गोली लेना ही माना गया है। भारत इस सम्बन्ध में भी पिछड़ा हुआ है क्योंकि यहाँ शराब खोरी इतनी नहीं बढ़ी है इसलिए यहाँ 116 पीछे एक बच्चा ही विकलाँग पैदा होता है।

पारिवारिक भ्रष्टता का बच्चों पर कितना बुरा असर पड़ता है इसका अनुमान इस एक ही जानकारी से लग जाता है कि 18 वर्ष की आयु तक पहुँचने से पूर्व ही हर छह में से एक अमेरिकी लड़के को किसी कड़े अपराध में जेल की हवा खा लेनी पड़ती है।

अनियन्त्रित और अविवेकपूर्ण कामुकता का दुष्परिणाम अनेकानेक समस्याएँ लेकर सामने आ रहा है। उससे स्वास्थ्य क्षीण हो रहे हैं, मानसिक सन्तुलन बिगड़ रहे हैं, अर्थ संकट उत्पन्न हो रहे हैं, स्नेह-सौजन्य घट रहे हैं-सबसे बड़ी बात यह हो रही है जनसंख्या दावानल की तरह सर्वभक्षी समस्या बनकर सामने आ रही है। कामुकता वृद्धि की दिशा में सिनेमा, साहित्य चित्र, संगीत आदि कला के सभी क्षेत्र एक जुट होकर पिल पड़े हैं, फलस्वरूप मनुष्य प्रत्येक दृष्टि से संकटग्रस्त होता चला जा रहा है। प्रगति के नाम पर उसे अवगति की हाथ लग रही है।

यदि यह क्रम यथावत चलता रहे तो अब से 500 वर्ष बाद वह पृथ्वी के थल क्षेत्र में हर वर्ग फुट पर एक आदमी को निर्वाह करना पड़ेगा। अर्थात् बोरी में आलू भरने की तरह ठूँस-ठूँसकर भरने पर भी इन जीवित मृतकों के लिए स्थान उपलब्ध न हो सकेगा। जब इतने ठसाठस आदमी भरे होंगे तो अन्य पशु-पक्षिओं, पेड़-पौधों के लिए जगह ही कहाँ बचेगी? वे मनुष्य कुछ हलचल भी नहीं कर सकेंगे। अपने स्थान पर हटने से पूर्व दूसरे को हटाकर नहीं मार कर जगह साफ करनी पड़ेगी। अन्यथा एक दूसरे से सटा हुआ आदमी लकड़ी के लट्ठों की तरह अड़ा खड़ा होगा। उसे सोने, नहाने, खाने, मल-मूत्र त्यागने के लिए भी जगह न होगी। व्यापार, शिक्षा, यातायात आदि की बात तो अलग रही। आदमी जरा भी अपने स्थान से हटना चाहे तो उसे पहला काम साथी को मारना होगा। पर समस्या का हल इससे भी न होगा, उस मरे हुए को फिर कहाँ पटका जाय यह प्रश्न सामने खड़ा होगा। यदि वे आदमी जीवित हुए तो उनके अन्न, जल की- मल-मूत्र त्याग की- स्थान व्यवस्था ही असम्भव हो जायगी।

भारत में हर महीने 10 लाख नये बच्चे पैदा होते हैं। दुनिया में अन्यत्र वार्षिक जन्म दर दो प्रतिशत बढ़ रही है, पर भारत अन्य किसी मामले में न सही बच्चे पैदा करने में सबसे अग्रणी है। उसकी दर पिछली दशाब्दियों में तीन प्रतिशत थी, अब साढ़े तीन प्रतिशत हो गई है और एक दो वर्ष में चार प्रतिशत हो जाने की आशा है। अर्थात् भारत अब यह कहने की स्थिति में पहुँच गया है कि दुनिया को चुनौती देकर कह सके कि वह किसी भी देश से इस क्षेत्र में दूनी प्रगति कर रहा है।

सुरक्षा और शान्ति के साधन बढ़ाने के स्थान पर मृत्यु को अति सरल और अति निकट बना देने वाले साधनों का विकास, आविष्कार तेजी से हो रहा है। लाठी, फरसे से होने वाली मार-काट की तुलना में यह निश्चय ही प्रगति कही जा सकती है, पर इस विकास ने व्यापक विनाश को कितना सस्ता और सरल बनाकर रख दिया है यह विचारणीय है। कोई एक सिरफिरा आदमी एक मिनट में इस सुन्दर संसार को भस्मीभूत करके रख सकता है जबकि ‘पिछड़ेपन’ के दिनों में ऐसे सर्वभक्षी संकट की कल्पना भी नहीं की जा सकती थी।

इन्हीं दिनों अमेरिका ने एक नये किस्म का मिसाइल चलाने वाला विमान बनाया है। इसका नाम है- बी. 1 इसमें अणु बमों से लैस मिसाइलें जमा दी जाती हैं और उन्हें आकाश से ही चलाकर लक्ष्यवेध किया जाता है। अब तक ऐसी मिसाइलें जमीन पर से ही चलाई जा सकती थीं। शत्रु पक्ष जासूसी द्वारा यह पता रखता था कि प्रतिपक्षी ने कहाँ-कहाँ इन्हें चलाने के अड्डे बना रखे हैं। उन्हें नष्ट करने के लिए निशाना साधने की सुविधा कम्प्यूटरों द्वारा प्राप्त हो जाती थी। अणु शस्त्र फेंकने और शत्रुपक्ष की मार से बचने के लिए इसी आधार पर अब तक युद्ध नीति बनाई गई थी।

पर अब बी.-1 ने नई समस्या उत्पन्न की है। मिसाइलें उस पर लदी होंगी। उनमें अणु बम फिट किये गये होंगे। आकाश से ही निशाने पर गोले दागे जायेंगे। यह बम वर्षक इतना ऊपर उड़ रहा होगा कि वहाँ तक तोपों के गोले नहीं पहुँच सकेंगे। राकेटों से तोड़ने की बात सोची जाय तो वह भी कठिन है क्योंकि उस बम वर्षक के चालक यान को सीधी दिशा में और एक जैसी चाल में नहीं उड़ायेंगे। आकाश में उलटी-पुलटी चाल पर जमीन से फेंके जाने वाले गोले असफल रहेंगे। बम वर्षक बिना जोखिम उठाये अपना काम कर सकेगा।

इस बी0-1 जेट बम वर्षक को कैलिफोर्निया के रासवेल इंटर नेशनल प्लान्ट से प्रथम बार उड़ाया गया। उसकी चाल 2400 किलो मीटर प्रति घण्टा थी। इसकी मार 9600 किलो मीटर तक पहुँचती है। उसका भार 1 लाख 15 हजार पौंड और मूल्य 50 करोड़ डालर है। लंबाई 144 फुट ऊँचाई 34 फुट और पंख 137 फुट के हैं।

आकाश द्वारा इतनी लम्बी मार को रोकने के लिए आत्म-रक्षा का कोई उपाय नहीं सूझ रहा है इसलिए रूसी और चीनी क्षेत्रों में नये सिरे से अपनी युद्ध नीति पर विचार करना पड़ रहा है। अब तक की सारी योजनाएँ रद्दी हो गईं। जमीन पर से राकेट द्वारा अणु बम फेंकने एवं रोकने की स्थिति में ही आक्रमण और बचाव की बात सोची गई थी। आकाश में उड़ने वाले यान जब आक्रमण करेंगे तब उनके स्थान का पता लगाना, उन्हें रोकना या नष्ट करना कैसे हो सकता है इसके लिए युद्ध नीति उसी तरह निर्धारित करनी पड़ेगी जैसे कि भाले, तलवार युग में बन्दूक का आविष्कार होने पर की गई थी। पिछले दिनों युद्ध का नशा कुछ ठंडा होता दीख रहा था, पर इस नये आविष्कार ने नई खलबली मचा दी है। स्पष्ट है कि कुछ ही दिनों से रूस भी इस साधन को बना रहा है तब सुरक्षा का प्रश्न अमेरिका के सामने भी उसी प्रकार आ खड़ा होगा जैसा कि आज रूस के सामने है।

मात्र जानकारियों और साधनों की अभिवृद्धि करके गर्व करने और गौरवान्वित होने का कोई कारण नहीं। प्रगति तो तब कही जायगी जब साधनों, जानकारियों और उपलब्धियों को सदुद्देश्य के लिए प्रयुक्त करने की समझदारी भी बढ़े। वस्तुतः प्रगति का मूल आधार सदाशयता की उस अभिवृद्धि के आधार पर ही आँका जा सकता है जिसके कारण मनुष्य स्वल्प साधनों में सुखी रह सकता है और दूसरों को सुखपूर्वक रहने दे सकता है।

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