वर्नेड रसेल (kahani)

June 1976

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दार्शनिक वर्नेड रसेल भ्रमण पर गये हुए थे। जंगल में उन्होंने एक बहुत हारी, थकी, लँगड़ाती, कराहती लोमड़ी को देखा। लगता था वह किसी आपत्ति से बचने के लिए बेतरह घबराई हुई है।

थोड़ी देर में सामने से शिकारी आ पहुँचे। उन्होंने रसेल से पूछा-आपने इधर से लोमड़ी जाती देखी है।

रसेल ने कहा- ‘हाँ’ तो वह किधर गई? शिकारियों ने उत्सुकतापूर्वक पूछा।

रसेल ने उँगली का इशारा किया और ठीक उलटी दिशा बता दी। इस प्रकार शिकारी भटक गये और लोमड़ी की जान बच गई।

वर्नेड रसेल ने अपने इस संस्मरण का उल्लेख करते हुए अपने दर्शन ग्रन्थ में लिखा है-मैं नहीं मानता कि मैंने असत्य, व्यवहार किया। जिसमें मनुष्य का उद्देश्य ऊँचा हो वह व्यवहार में कुछ भी क्यों न हो, सत्य ही कहा जाना चाहिए। यदि मैं लोमड़ी के जाने की दिशा सही बता देता तो मेरी दृष्टि में वह सत्य दिखाई पड़ने वाला व्यवहार वस्तुतः असत्य ही होता।

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