सत्य और असत्य दो सहोदर भाई एक दिन चल पड़े नदी में स्नान के लिए। दोनों ने खूब स्नान किया। असत्य नदी से पहले बाहर आ गया और अपने भाई सत्य के कपड़े पहनने लगा। सत्य ने कहा भी ‘भाई! ऐसा क्यों करते हो?’ पर असत्य मौन रहा, कपड़े पहने और चलता बना।
सत्य स्नान कर बाहर आया तो कुछ देर खड़ा-खड़ा सोचता रहा, पर उसके सम्मुख बहुत बड़ी लाचारी थी। समाज में जाने के लिए कपड़ों का पहनना आवश्यक था। अतः इच्छा न होते हुए भी उसने असत्य के ही कपड़े पहने।
उसके बाद इन दोनों को देखकर बड़े-बड़े विवेकशीलों को धोखा होने लगा। जब वह सत्य और असत्य में भेद नहीं कर पाते तो असत्य को ही सत्य मानकर अपना लेते हैं और सत्य इस स्थिति को देखकर पछताता रहता है, रोता रहता है।
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