एक राजा को धातु उद्योग का विकास करने में बड़ा उत्साह था। उसने धातुकारों से कहा वे कलात्मक वस्तुएं बनायें यदि न बिकेंगी तो राज्यकोष में उन्हें खरीद लिया जायगा।
इस घोषणा से उत्साहित होकर अनेक धातु शिल्पी तरह-तरह की कलात्मक वस्तुएं बनाने लगे। एक शिल्पी ने नौ ग्रहों की नौ सुन्दर मूर्तियाँ बनाईं। इनमें से आठ को तो लोगों ने खरीद लिया पर शनि देवता को किसी ने नहीं खरीदा। भला अपने घर में दरिद्र और संकट के देवता को कौन स्थान देता।
शिल्पी राजदरबार में पहुँचा। उसने अपनी कठिनाई बताई। राजा भी एक बार शनि को खरीदने पर उत्पन्न होने वाले संकट से डरा, पर सोच-विचार के बाद में अपने वचन का पालन करने की दृष्टि से उसे खरीद ही लिया।
इसी रात राजा ने भयंकर सपना देखा। एक-एक करके धन, यश, बल, पराक्रम, सफलता के देवता आये और कहने लगे या तो शनि देवता को निकाल दो नहीं तो हम लोग चले जायेंगे।
राजा असमंजस में पड़ गया। वह शनि देव की स्थापना अपने संग्रहालय में विधिवत् करा चुका था। हटा देने पर वचन पालन की अवज्ञा होती थी। कुछ सोचने के बाद राजा ने उन सब को विदाई दे दी और कहा-मैं अपने दिये वचन की रक्षा करूंगा और कर्तव्य पालन से किसी भी कारण पीछे नहीं हटूँगा। आप लोग यदि जाना चाहें तो प्रसन्नता पूर्वक चले जाएं।
प्रातःकाल राजा उठा तो सारी परिस्थितियाँ बदली हुई थीं। धन, यश, बल, पराक्रम सभी कुछ तेजी से विदा होने लगा शनि देवता की स्थापना का दुष्परिणाम सामने था दरबारियों ने भी उसे हटाने के पक्ष में सलाह दी, पर राजा यही कहता रहा वचन का पालन और कर्त्तव्य का निर्वाह हर कीमत पर किया जाना चाहिए।
संकट बढ़ता ही गया और अपने अन्तिम चरण तक पहुँच गया। राजा वनवास जाने की तैयारी करने लगा। तभी एक रात्रि को वे सभी देवता पुनः उपस्थित हो गये और कहने लगे अब हम आपके यहाँ रहने के लिए वापिस आ गये। चिन्ता छोड़ें। जो कुछ गया है वह सब कुछ जल्दी ही वापिस आ जायगा।
राजा ने उस वापसी का कारण पूछा तो उन सब का सम्मिलित उत्तर एक ही था-कर्तव्य पालन की परीक्षा में उत्तीर्ण व्यक्ति के यहाँ हमें विवश होकर रहना ही पड़ता है।
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