दूध पीना है तो गाय का ही पीयें

June 1976

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अपने देश में गाय की बहुत मान्यता है। हिन्दू धर्म में उसका देवोपम सम्मान है। इसका सामान्य कारण तो कृषि कर्म के लिए आवश्यक बछड़े तथा गोबर से उच्च स्तर का खाद मिलना माना जा सकता है, पर विशिष्ट कारण है उसके दूध की वह विशेषता, जो अन्य किसी पशु के दूध में नहीं पाई जाती। उसकी तुलना हम माता के दूध से कर सकते हैं।

गौ की महत्ता धर्म शास्त्रों और आयुर्वेद शास्त्रों में पग-पग पर भरी पड़ी है। उसे देवोपम पूज्य तो माना ही गया है साथ ही गो रस की उपयोगिता का भी महत्व कम नहीं बताया गया है। यथा-

गावः श्रेष्ठा पवित्राश्च पावना जगदुत्तमाः। ऋते दधिघृताभ्याँ च नेह यज्ञः प्रवर्तते॥

पयसा हविषा दध्ना शकृता मूत्रचमणा। अस्थिभिश्चोपकुर्वन्ति बालैः भृंगैश्च भारत॥

गोभिस्तुल्यं न पश्यामि धनं किचिदिहाच्युत। गावो लक्ष्म्याः सदा मूलं गोषु पाप्मा न विद्यते॥

मातरः सर्वभूतानाँ गावः सर्वसुखप्रदाः॥

-महाभारत

अर्थात्- गौएं सर्वश्रेष्ठ तथा पवित्र पूजा करने योग्य और संसार भर में सबसे उत्तम हैं, क्योंकि दही, घृत आदि गव्य के बिना संसार में कोई यज्ञ सम्पन्न नहीं हो सकता। हे अर्जुन! गौएं दूध से, घृत से, दही से, गोबर, मूत्र चर्म, हड्डियों, बालों तथा सींगों से भी हमारा भला करती है। हे पार्थ! मैं गोधन के समान संसार में और कोई धन नहीं देखता क्योंकि गौएं सदा लक्ष्मी की मूल हैं। इनमें पाप का निवास नहीं है, इसलिये ये प्राणीमात्र के लिए माता के समान समस्त सुख देने वाली हैं।

म दाग्निनां कृशानांच विशेषदतिसारिणाम्। उत्साहदीपनं वल्यं मधुर वातनाशनम्॥

-भा0 वि0

अर्थात्- गोदूध, मन्दाग्नि, कृश तथा अतिसार युक्त, रोगियों के लिए उत्साह, अग्नि बलवर्धक, दीपन, मधुर एवं वातनाशक है।

पथ्यं रसायनं बल्यं हृद्यं मेघ्यं गवाँ पयः। आयुष्यं पुस्त्वकृद्वातरक्तपित्तविकारनुत्॥164॥

-धनवन्तरीय निघण्टु, सुवर्णादि; षष्ठो वर्गः

गोदुग्ध पथ्य, सब रोगों या अवस्थाओं में सेवन करने योग्य, रसायन, बलकारक हृदय के लिए हितकारी, बुद्धि को बनाने वाला, आयुवर्धक, वीर्यवर्द्धक वातनाशक, और रक्तपित्त के विकारों को दूर करने वाला है।

स्वादुशीतं मृदु स्निग्धं बहलं श्लक्ष्णपिच्छिलम्। गुरू मन्दं प्रसन्नं च गव्यं दशगुणं पयः॥ 216॥

तदेवंगुणमेवौजः सामान्यादभिवर्धयेत्।प्रवरं जीवनीयानां क्षीरमुक्तं रसायनम्॥217॥

-चरक संहिता, सूत्र स्थान, अध्याय 27

“दूध-मधुर, शीतल, मृदु, स्निग्ध, बहल, श्लक्ष्ण, पच्छिल, गुरु, मन्द, प्रसन्न इन दश गुणों वाला गौदुग्ध है। ओज के भी ये ही दश गुण हैं इसलिए सामान्य होने से दूध ओज को बढ़ाता है। इसलिए जीवनीय वस्तुओं में दूध सबसे अधिक श्रेष्ठ गिना जाता है। वह रसायन है।”

“गोक्षीरमनभिष्यन्दि स्निग्धं गुरु रसायनम्। रक्तपित्तहरं शीतं मधुरं रसपाकयोः॥ जीवनयं तथा वातपित्तघ्नं परमं स्मृतम्॥

-सुश्रुतसंहिता, सूत्रस्थान अध्याय 45

‘गोदुग्ध’ दस्त को बाँधने वाला चिकना, भारी व रसायन है। रक्त-पित्त का शमन करने वाला शीतल, मधुर स्वादु और परिणाम में मधुर, जीवनवर्द्धक और वात-पित्त के विकारों को नष्ट करने वाला कहा गया है।”

दूध की उत्कृष्टता उसके चिकनाई भाग से मापने की आज भारी भ्रान्ति जन साधारण के मस्तिष्क में घुस पड़ी है। इसलिए चिकनाई प्रधान भैंस के दूध की ही सर्वत्र माँग है अस्तु भैंस का पालन बढ़ रहा है। गाय के दूध में चिकनाई कम होती है इसलिए लोग उसे पसंद नहीं करते। उसकी खपत नहीं होती तदनुसार गायों की उपेक्षा होती है और उनकी संख्या तथा स्थिति दिन-दिन घटती गिरती चली जा रही है।

हमें इस भ्रम को मस्तिष्क से निकाल देना चाहिए कि चिकनाई के लिए दूध का महत्व है। चिकनाई तो मूँगफली, तिल, सरसों, आदि से पर्याप्त मात्रा में मिलती है और सस्ती भी पड़ती है। प्रयोगात्मक दृष्टि से घी और तेल की चिकनाई में विशेष अन्तर नहीं है। दूध का वास्तविक लाभ तो उसमें पाये जाने वाले लवणों, खनिजों विटामिनों तथा दूसरे अति महत्वपूर्ण पोषक तत्वों की दृष्टि से ही है। यही वे विशेषताएं हैं जिनका बाहुल्य होने के कारण गौदुग्ध को प्रधानता मिली है और उसका पालन धार्मिक और आर्थिक दृष्टि से अति महत्वपूर्ण माना गया है।

गौदुग्ध में जो पाचक एनजाइम पाये जाते हैं उनमें पेरिक्सिडेज, रिडक्टेज, लाइपेज, प्रोटिएज, लैक्टेज, फास्फेटेज, ओलिनेज, गैटालेज मुख्य हैं।

इनके अतिरिक्त खनिज तथा दूसरे उपयोगी अंश इतने हैं कि गाय का दूध मनुष्य के लिए पूर्ण भोजन का काम दे सकता है।

इन्हीं सब तथ्यों को ध्यान में रखते हुए चरक सुश्रुत, वागभट्ट, भाव प्रकाश आदि आयुर्वेद ग्रन्थों में गोदुग्ध की भूरि-भूरि प्रशंसा की गई है। महाभारत में यक्ष युधिष्ठिर संवाद में- यक्ष पूछता है “अमृतं किम्” अमृत क्या है तो युधिष्ठिर उत्तर देते हैं- ‘गवा मृतम्’ अर्थात् गोदुग्ध ही अमृत है। अन्य खाद्य पदार्थों के साथ तुलना करने पर गाय का दूध वस्तुतः अमृत ही सिद्ध होता है।

भैंस के दूध की तुलना में गाय का दूध कहीं अधिक उत्तम है। भैंस के दूध में चिकनाई का अंश अधिक रहने से वह गाढ़ा रहता है और जिन्हें चिकनाई स्वादिष्ट लगती है उन्हें वह पसन्द भी आता है, पर जो पोषक तत्व गाय के दूध में होते हैं उसकी तुलना में भैंस दूध में कहीं कम पाये जाते हैं। गाय के दूध की प्रोटीन अपेक्षाकृत सुपाच्य होती है। उसमें विटामिन ए0 बी0 और डी0 की मात्रा भी अधिक रहती है। शरीर में उत्पन्न होते रहने वाले टानिक्स और टोमस विषों के निवारण करने वाले जो एन्ज़ाइम गाय के दूध में हैं वे भैंस के दूध में नहीं हैं।

गौदुग्ध में ग्लासिन, एलनिन, वेलिन, ल्यूसिन, फेनाइलैलानिन, टाइरोसिन, सेरिन सिस्टिन, प्रोलिन, हाइड्राक्सी प्रोलिन, ग्लूमैटिक ऐसिड, हाइड्रोग्लूमैटिक एसिड, एस्पाटिथ एसिड, ट्रिप्टो फेन, आर्जिनिन, हिस्टिडिन, लाइसिन, मिथ योनाइन, डोडेकेमिनो एसिड, एमोनिया, फास्फोरस की इतनी मात्रा रहती है जितनी अन्य खाद्य पदार्थों में नहीं पाई जाती है।

विटामिनों में ए॰ ए-1 (कैरोटिन) डी0 ई॰ (टोकोकेराल) बी0-1 (थियामिन) बी-2 (रिवोफ्लेविन) बी0-3, बी0-4-विटामिन सी0 (एसकार्विक ऐसिड) पाये जाते हैं।

दूध में जो खनिज पाये जाते हैं उनमें कैल्शियम, फास्फोरस, लोहा, ताँबा, आयोडीन, मैग्नीज, फ्लोरीन, सिलिकॉन मुख्य हैं। विटामिनों में से ए0 बी0 सी0 डी0 ई0 तथा के वर्ग के क्षार न्यूनाधिक मात्रा में पाये जाते हैं। कार्बोहाइड्रेट जो दूध में पाये जाते हैं उनमें लैक्टोस मुख्य है। यह पाचन प्रणाली को ठीक रखने में बहुत सहायक होता है। दूध की आवश्यकता यों वयस्कों को भी है, पर बच्चों को तीन चार गिलास दूध मिल जाया करे तो आवश्यक पोषण की आवश्यकता बहुत अंशों में पूरी हो सकती है। उतने भर से हम अपनी 70 प्रतिशत कैल्शियम की- 25 प्रतिशत प्रोटीन की- 16 प्रतिशत विटामिनों की और 50 प्रतिशत रिवोफ्लाविन की आवश्यकता पूरी कर सकते हैं।

विश्व की कुल गाय भैंसों का एक चौथाई भाग भारत में है। पिछले सरकारी आँकड़ों के अनुसार देश भर में 17 करोड़ 60 लाख गायें तथा 5 करोड़ 30 लाख भैंसें हैं।

कोढ़ में खाज की तरह अपने देश में जो थोड़ा बहुत दूध उत्पन्न होता भी है उसे स्वाभाविक रूप में ग्रहण करने की अपेक्षा ऐसे बेतुके ढंग से प्रयुक्त किया जाता है कि उतने से भी जो लाभ मिलना चाहिए था वह भी नहीं मिल पाता।

अपने देश में दूध का प्रयोग इस प्रकार है :-

तरल दूध की खपत- 36.2 प्रतिशत

घी में परिवर्तित- 43.3 प्रतिशत

दही में परिवर्तित- 4.1 प्रतिशत

खोआ में परिवर्तित- 9.1 प्रतिशत

मक्खन और क्रीम में परिवर्तित- 6.9 प्रतिशत

आइसक्रीम में परिवर्तित- 0.6 प्रतिशत

घी, खोआ, आइसक्रीम, मक्खन द्वारा प्रयुक्त दूध में प्राकृत दूध के बहुत थोड़े अंश ही शेष रह जाते हैं। उनका अति महत्वपूर्ण भाग तो ऐसे ही जलाने भूनने में नष्ट हो जाता है। इन चारों मदों में 60 प्रतिशत दूध नष्ट हो जाता है। दूध और दही दोनों को मिलाकर वह खपत कुल 40 प्रतिशत ही शेष रह जाती है।

यों मोटे तौर पर दूध का रासायनिक विश्लेषण किया जाय तो उसमें प्रतिशत 87.6 जल, 12.4 खनिज और लवण, 3.3 प्रोटीन, 3.6 चिकनाई और 4.7 कार्बोहाइड्रेट पाये जाते हैं। पर यह सभी वस्तुएं होती असाधारण स्तर की हैं। जल वैसा नहीं है जैसा कुएं या नदियों का होता है उस जल को ऐसे स्तर का कहा जा सकता है जिसमें पोषण और विसर्जन की अद्भुत क्षमता विद्यमान है। दूध की प्रोटीन में अमीनो एसिड के तीन वर्ग पाये जाते हैं (1) लाइसिना, (2) ट्रिप्टोफेन (3) हिक्टिडाइन। इन तीनों का प्राणिज मूल्य बहुत है। दूसरी प्रोटीनें कठिनाई से पचती हैं पर दूध की प्रोटीन प्रायः 97 प्रतिशत सरलता पूर्वक पच जाती है। अन्य खाद्य पदार्थ थोड़े ही अंश में शरीर में घुल पाते हैं और उनका अधिकाँश भाग बिना पचा ही बाहर निकल जाता है, पर दूध का 76 प्रतिशत अंश शरीर सोख लेता है।

पशु दुग्ध पर लम्बा पर्यवेक्षण करने वाले अमेरिका के पशु विशेषज्ञ डॉ0 एस0ए॰ पीपल्स ने कहा है कि घासों में पाये जाने वाले विष अक्सर उन्हें खाने वाले पशुओं के दूध में पाये जाते हैं पर गाय में न जाने क्या विशेषता है कि किसी विषैली घास का असर उसके दूध में नहीं पहुँचता। कीड़े मारने के लिए छिड़की गई विषैली रसायनें प्रायः घास और फसल पर छिड़की जाती हैं। वे सभी रसायनें विषाक्त होती हैं। जो भी दुधारू पशु उन पौधों को खाता है उनके दूध में उन विषों का एक बड़ा अंश पाया जाता है, निश्चित रूप से वह पीने वालों मनुष्यों के लिए हानिकारक होती है, पर यह बात गाय के दूध में नहीं देखी जाती। वे विषैले पौधे खाकर भी सर्वथा निर्दोष दूध देती हैं।

गौवंश की रक्षा न की जा सकी तो बैलों के बिना खेती किस प्रकार होगी? बैल को हटाकर ट्रैक्टर के सहारे भारत का गरीब किसान अपनी छोटी जोतों की कृषि कर नहीं सकेगा। 70 लाख ट्रैक्टरों की आवश्यकता पड़ेगी। उन्हें जुटाने को धन कहाँ से आवेगा? फिर छोटी देहातों में उन्हें चलाने वाले ड्राइवर और सुधारने वाले कारीगर कारखाने कैसे उपलब्ध होंगे? फिर उन ट्रैक्टरों के लिए तेल कहाँ से आयेगा? वे ट्रैक्टर गोबर तो देंगे नहीं अस्तु खाद की आवश्यकता कैसे पूरी होगी?

इन सब तथ्यों को ध्यान में रखते हुए हमें इसी निष्कर्ष पर पहुँचना पड़ता है कि कृषि, अर्थव्यवस्था स्वास्थ्य रक्षा एवं धार्मिक दृष्टि से गाय को संरक्षण मिलना ही चाहिए। उसके दूध को तो प्रमुखता मिलनी ही चाहिए।

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