गेरावाल्डी ने अपने देश का स्वतन्त्रता संग्राम जिस कुशलता और बहादुरी से लड़ा उसकी चर्चा उन दिनों दूर देशों तक फैली हुई थी और उन्हें बहुत कुछ माना जाता था और बहुत बड़ा भी।
एक देश के सेनापति सैन्य संचालन सम्बन्धी कुछ महत्वपूर्ण परामर्श करने उनके पास पहुँचे। इन दिनों वे एक बहुत ही मामूली डेरे में रहते थे। साज-सज्जा के सामान का अभाव था। उसी सादगी के वातावरण में सारगर्भित वार्तालाप होता रहा।
अन्त में सेनापति को एक गोपनीय नक्शा दिखाकर स्थानीय परिस्थितियों के सम्बन्ध में पूछताछ करनी थी। पर कठिनाई यह थी कि लालटेन का कोई प्रबन्ध नहीं था। अस्तु नक्शे को देखना दिखाना सम्भव ही न हो सका।
गेरावाल्डी जैसे विश्व विख्यात व्यक्ति को इतनी सादगी, गरीबी और अभावग्रस्त स्थिति में देखकर सेनापति को आश्चर्य मिश्रित दुःख हुआ।
दूसरे दिन प्रकाश होने पर जब नक्शे के सम्बन्ध में परामर्श करने के लिए सेनापति आये तो उन्होंने बड़ी नम्रता और सम्मान के साथ पाँच हजार पौंड भेंट किये और कहा अपनी आवश्यकताएँ पूरी करने के लिए मेरी यह नगण्य - सी भेंट स्वीकार करने का अनुग्रह करें।
गेरावाल्डी ने मुस्कराते हुए कहा-वस्तुतः मुझे कभी उन चीजों की आवश्यकता ही अनुभव नहीं हुई जिन्हें आप अभाव समझते हैं। इस पैसे की मुझे तनिक भी आवश्यकता नहीं है।
सेनापति का अत्याधिक आग्रह देखा और अस्वीकार करने पर उन्हें खिन्न पाया तो फैसला यहाँ समाप्त किया गया कि सेनापति पाँच पौण्ड वजन की मोमबत्तियाँ दे जायँ ताकि भविष्य में रात्रि के समय कोई परामर्श करने आवें तो उसके लिए सुविधा हो सके।
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